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विकेन्द्रीकरण क्या है? (What is Decentralisation)

विकेन्द्रीकरण क्या है?

(What is Decentralisation)


आज की व्यावसायिक जटिलताओं एवं व्यवसाय को बढ़ते हुए स्वरूप के कारण किसी भी उपक्रम में केन्द्रित व्यवस्था सम्भव नहीं है। अब व्यवसाय क्षेत्रीय न रहकर अन्तर्राष्ट्रीय हो गया है जिसमें समय-समय पर अनेक जटिलताओं का सामना करना पड़ता है। इन जटिलताओं पर विजय प्राप्त करने के लिए आवश्यक है कि व्यवसाय प्रत्येक स्तर पर महत्वपूर्ण निर्णय लेने के कार्य किये जायें और अधीनस्थों को सम्पूर्ण अधिकार व उत्तरदायित्व प्रदान किये जायें। उपक्रम में ऐसी व्यवस्था ही अधिकार सत्ता के विकेन्द्रीयकरण की व्यवस्था कहलाती हैं इस प्रकार विकेन्द्रीयकरण में उच्च अधिकारी द्वारा अपने अधीनस्थों को अधिकार एवं दायित्व प्रदान किये जाते हैं। विकेन्द्रीयकरण से आशय उन समस्त कार्यों से है जिनके द्वारा अधीनस्थ व्यक्ति की भूमिका अथवा महत्व में बढ़ोत्तरी होती हैं अर्थात् जब उपक्रम या संस्थान का कोई उच्चाधिकारी अपने अधिकारों में से कुछ अधिकार स्थायी रूप में अपने अधीनस्थों को भारार्पित कर देता है, तो ऐसे अधिकारों के प्रत्यायोजन को केन्द्रीयकरण कहा जायेगा। विकेन्द्रीयकरण का कार्य इस प्रकार प्रत्यक्ष रूप में अधिकार सौंपने के कार्य से सम्बन्धित है। दूसरे शब्दों में विकेन्द्रीयकरण प्रत्यायोजन की ही एक प्रमुख समस्या एवं विस्त त रूप हैं। विकेन्द्रीयकरण संगठन की वह अवस्था है जिसके अन्तर्गत अधिकार सत्ता (Authority) एवं उत्तरदायित्व (Responsibility) का प्रत्यायोजन अधिकाधिक एवं स्थायी रूप में होता है। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि अधिकार सत्ता का एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति (अधीनस्थ ) को सौंपना एवं साथ ही उस अधीनस्थ व्यक्ति को उस कार्य के लिए जिम्मेदार ठहराना विकेन्द्रीयकरण के अन्तर्गत आता है।


विकेन्द्रीयकरण की प्रमुख परिभाषायें निम्नलिखित है

 

हेनरी फेयोल (Henri Fayol) के अनुसार, "वे समस्त कार्य जिनसे अधीनस्थ की भूमिका के महत्व में वद्धि होती है, विकेन्द्रीयकरण कहलाता है।"

प्रबन्ध विद्वान फेयोल के विचारों का विश्लेषण करने से स्पष्ट होता है कि विकेन्द्रीयकरण क्रिया में अधीनस्थों को सौंपे गये प्रत्येक कार्य से उनकी भूमिका के महत्व में वद्धि होती है।

कीथ डेविस (Keith Devis) के मतानुसार, "संगठन की छोटी से छोटी इकाई तक जहां तक कि व्यावहारिक हो, सत्ता एवं दायित्व का वितरण ही विकेन्द्रीयकरण कहलाता है। *

लुइस ए. एलन (Lewis A. Allen) के अनुसार, "विकेन्द्रीयकरण का अर्थ केंद्रीय बिन्दुओं के अतिरिक्त निम्नतम स्तरों तक समस्त अधिकार सत्ता के प्रत्यायोजन के व्यवस्थित प्रयासों से होता है। विकेन्द्रीयकरण उत्तरदायित्व के सन्दर्भ में अधिकारों के प्रदान किये जाने से सम्बन्धित होता है।"

एल डी वहाइट (L.D. White) के अनुसार, "उच्च स्तर से निम्न स्तर को अधिकारों का हस्तान्तरण विकेन्द्रीयकरण की प्रक्रिया है।"

जोसेफ एल. मैसी (Joseph L. Massie) के अनुसार, "विकेन्द्रीयकरण संगठन अवधारण के रूप में, निर्णयन क्रिया को संगठन के निम्नतम स्तर तक ले जाने के कार्य को कहते हैं। "

उपरोक्त परिभाषाओं के निष्कर्षानुसार हम कह सकते हैं कि विकेन्द्रीयकरण वह प्रक्रिया है जिसमें उच्चाधिकारी द्वारा अपने अधिकारों में से कुछ अधिकार स्थायी रूप से अधीनस्थों को सौंपे जाते हैं, जिनमें उनकी भूमिका के महत्त्व में वद्धि होती है और वे अपने दायित्वों को निभाने हेतु स्वतंत्र निर्णय लेने के अधिकारीि हो जाते हैं साथ ही उन्हें अपने कार्यों के लिए उच्चाधिकारी के प्रति उत्तरदायी ठहराया जा सकता है

विकेन्द्रीयकरण के लक्षण

(Charactersitics of Decentralization)

उपर्युक्त परिभाषाओं के विश्लेषण से विकेन्द्रीयकरण के निम्नलिखित लक्षण दष्टिगोचर होते हैं

1. विकेन्द्रीयकरण में प्रबन्ध के निम्नतम स्तर पर अधिकाधिक निर्णय लिए जाते हैं।

2. प्रबन्ध के निम्नतम स्तर पर अधिक महत्वपूर्ण निर्णय लिये जाते हैं।

3.विकेन्द्रीयकरण में संस्था के अधिकांश कार्य प्रबंध के नीचे के स्तम्भ पर लिये गये निर्णयों से प्रभावित होते हैं।

4.विकेन्द्रीयकरण और अधीनस्थों की भूमिका का महत्व बढ़ता है।

5.विकेन्द्रीयकरण में सम्पूर्ण संगठन की प्रशासकीय इकाई को कई उपविभागों में बांट दिया जाता है।

6. विकेन्द्रीयकरण से केन्द्रीय स्टाफ को पर्याप्त सुविधा रहती है।

7. विकेन्द्रीयकरण में अधीनस्थों की क्रियाओं पर नियंत्रण रखने हेतु एक सीमा तक नियंत्रण भी लागू किये जाते हैं।

विकेंद्रीयकरण के लाभ

(Advantages of Decentralisation)


1. विकेंद्रीकरण से प्रशासकीय शीर्ष पर पक्षाघात एवं सिरों में रक्ताल्पता की आशंका समाप्त हो जाती है। सत्ता कार्यों तथा उत्तरदायित्वों को वितरित करने के भार में दबी हुई केंद्रीय सत्ता को राहत मिलने के साथ-साथ इसमें क्षेत्रीय एजेन्सियों तथा जनता से सम्पर्क रखने वाली इकाइयाँ मजबूत बनती हैं।

2.जो व्यक्ति प्रशासकीय कार्यक्रमों एवं कार्यों से प्रत्यक्षतः प्रभावित होते हैं उन्हें प्रशासन से घनिष्ट रूप में संबंधित होने पर अनुकूलता तथा व्यवस्थित होने का अवसर मिलता है।

3. सत्ता के विकेंद्रीयकरण से तुरन्त कार्यवाही को प्रोत्साहन मिलता है तथा विलम्ब एवं लालफीताशाही कम हो जाती है।

4. अधीनस्थ प्रशासकों को अपने साधन तथा आत्मविश्वास को बढ़ाने का अवसर प्राप्त होता है और इस स्थिति में उन्हें अपने स्वयं के निर्णय लेने होते हैं एवं उत्तरदायित्व वहन करने पड़ते हैं।

5. विकेन्द्रित व्यवस्था में सम्पर्क संगठन एक ही कार्यप्रणाली का अनुमान करने के लिए बाध्य नहीं है। संगठन की विभिन्न इकाइयों को अपने प्रयोग की सुविधा होती है।

6. चार्ल्सवर्प के शब्दों में- "विकेन्द्रीकरण में मात्र प्रशासकीय कुशलता के अतिरिक्त कुछ लाभ भी हैं। नागरिक के व्यक्तिगत औचित्य की भावना के विकास पर इसका सीधा प्रभाव पड़ता है। अतः इसमें कुछ आत्मिक गुण भी होते हैं।"

विकेंद्रीयकरण की हानि

(Demerits of Decentralisation)


1. अत्यधिक विकेंद्रीकरण अराजकता को जन्म दे सकता है।

2. प्रत्येक अवस्था में विकेंद्रीकरण प्रशासकीय कार्यो में समन्वय एकीकरण को कठिन बना देता है।
 

 3. कर्मचारियों संबंधी कार्यों, बजट निर्माण, कर एकीकरण लेखाकार्य, योजना कार्यक्रम के निर्माण आदि में पूर्ण विकेंद्रीकरण न तो संभव है और न ही वांछनीय है ।

4. यातायात एवं संचार की अत्यधिक दुतगामी साधन, आधुनिक सुरक्षा की आवश्यकताएँ और आर्थिक नियोजन की अनिवार्यताएँ निस्संदेह विकेंद्रीकरण की अपेक्षा केंद्रीकरण का समर्थन करती हैं।

5. सम्पूर्ण देश का रहन-सहन का स्तर, निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा तथा मद्यनिषेध में एक सी नीति अपनाने की घोषणाएँ प्रशासन की अनिवार्यता पर बल देती है।
किन्तु विकेंद्रीकरण को केवल एक सीमा तक ही लागू किया जा सकता है। अतः प्रशासकीय प्रणाली में इस हेतु कुछ आरक्षणों की व्यवस्था आवश्यक है।

अपने कार्यों का विपरीत करने के पूर्ण केंन्द्रीय अधिकारियों को निम्नलिखित बातों के संबंध में निश्चित हो जाना आवश्यक है।

1. स्थानीय अधिकारियों को एक से अधिक केंन्द्रीय अधिकारी या कार्यालय के प्रति उत्तरदायी नहीं होना चाहिए।

2. अधिकार क्षेत्र का निर्धारण बड़ी सावधानी से किया जाना चाहिए। 

3. अनेक क्षेत्रीय संस्थानों की प्रक्रियाएँ एक विशेष समान स्तर की होनी चाहिए, यह आवश्यक नहीं हैं कि वे एक सी ही है।

4. स्थानीय एजेन्सी का पर्याप्त नमनीय या लचीला भौतिक एवं मनौवैज्ञानिक ढाँचा होना चाहिए जिससे वह संस्था स्थानीय परिस्थितियों के अनुकूल स्वयं को ढाल सके।

5. क्षेत्रीय इकाई को ऐसे निर्णय लेने चाहिए जिनका समग्र नीति पर प्रभाव पड़े। परिस्थिति उत्पन्न होने पर उसे स्वयं निर्णय लेने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।

6. तुरन्त अपील की जा सके, ऐसी पद्धति विद्यमान होनी चाहिए।

7. क्षेत्र द्वारा केन्द्र को मुक्त रूप से सुझाव दिए जाने चाहिए।

8. प्रतिवेदन एवं निरीक्षण की समुचित प्रणाली द्वारा केंद्रीय सत्ता को संगठन की दूरस्थ या क्षेत्रीय इकाइयों का पूरा ज्ञान प्राप्त होते रहना चाहिए।

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