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पंचायती राज की समस्याएं (Problems of Panchayati Raj)

 पंचायती राज की समस्याएं

(Problems of Panchayati Raj)


फिर भी यह तो कहना ही पड़ेगा कि पिछले 38 वर्षों का अनुभव विशेष उत्साहवर्द्धक नहीं रहा। ये संस्थाएं ग्रामीण जनता में नयी आशा और विश्वास पैदा करने में असफल रही हैं। वस्तुतः जब तक ग्रामीणों में चेतना नहीं आती तब तक ये संस्थाएं सफल नहीं हो सकतीं। किन्तु इसका यह तात्पर्य कदापि नहीं कि पंचायती राज व्यवस्था असफल हो गयी है। कुछ राज्यों में तथा कुछ विशिष्ट क्षेत्रों में इन संस्थाओं ने सराहनीय कार्य किया है। यह कार्य मुख्यतः नागरिक सुविधाओं के ही सम्बन्ध में हुआ है। पंचायती राज संस्थाओं के समक्ष कुछ नयी समस्याएं उत्पन्न हो गयी हैं; कुछ पहले ही थीं, जिनका निराकरण करना आवश्यक है, ये समस्याएं हैं:

1. सत्ता के विकेन्द्रीकरण की समस्याः लोकतान्त्रिक विकेन्द्रीकरण की असफलता की पहली शर्त सत्ता का स्थानीय संस्थाओं को हस्तान्तरण करना है। पंचायती राज संस्थाओं को स्वायत्त शासन की शक्तिशाली इकाइयां बनाना था। यह तभी संभव है जब प्रेरणा नीचे के स्तरों से शुरू हो और उच्च स्तर केवल मार्ग निदेशन करे। राज्य सरकारें इन संस्थाओं को अपने आदेशों का पालन करने वाला एजेण्ट मात्र न समझें, इसके लिए नौकरशाही की मनोव त्ति में परिवर्तन की आवश्यकता है।

2. अशिक्षा एवं निर्धनता की समस्याः अशिक्षा और निर्धनता ग्रामीणों की विकट समस्या है। इसके कारण ग्रामीण नेत त्व का विकास नहीं हो पा रहा है और वे अपने संकीर्ण दायरों से ऊपर नहीं उठ पाते हैं। किन्तु वर्तमान में शिक्षा की दिशा में शासन द्वारा किए गए कार्यों से हमारे उत्साह में वद्धि हो रही है।

3. दलगत राजनीतिः पंचायती राज की सफलता के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा दलगत राजनीति है। पंचायतें राजनीति का अखाड़ा बनती जा रही हैं। पंचायतों में छोटी-छोटी बातों को लेकर झगड़े हुआ करते हैं, दलबन्दी होती है और बहुत-सा समय लड़ने-झगड़ने में निकल जाता है। यदि हमारे राजनीतिक दल पंचायतों के चुनावों में हस्तक्षेप करना बन्द कर दें तो पंचायतों को गन्दी राजनीति के दलदल से निकाला जा सकता है।

4. धन की समस्याः धन की समस्या पंचायती राज संस्थाओं के सामने शुरू से ही रही है। इन संस्थाओं को स्वतन्त्र आर्थिक स्रोत या तो दिए ही नहीं गए या फिर जो भी दिए गए वे अर्थशून्य हैं। परिणामतः शासकीय अनुदानों पर ही जीवित रहना पड़ा है। अतः आय के पर्याप्त एवं स्वतन्त्र स्रोत पंचायती संस्थाओं को दिए जाने चाहिए ताकि उनकी आर्थिक स्थिति सुद ढ़ बन सके।
इनके अतिरिक्त और भी कई समस्याएं हैं, राजनीतिक जागरूकता की कमी, विकास कार्यों की उपेक्षा, शासकीय अधिकारियों एवं निर्वाचित प्रतिनिधियों में सहयोग का अभाव, आदि। इसके अतिरिक्त सभी राज्यों में राज्य के विधानमण्डल और संसद


पंचायती राज की सफलता के लिए सुझाव

भारत के लिए गांव आर्थिक समद्धि का प्रतीक है। देश तभी फलेगा-फूलेगा जब उसकी आत्मा के रूप में गांव की प्रगति हो गांवों का सर्वांगीण विकास पंचायतों की सफलता के द्वारा ही सम्भव है। पंचायतों की सफलता के लिए निम्नांकित सुझाव दिए जा सकते हैं: 

प्रथम , पंचायती राज संस्थाओं में व्याप्त गुटबन्दी को समाप्त करना होगा: 

द्वितीय, पंचायतों के चुनावों में मतदान को अनिवार्य करना होगा और जो मतदाता चुनाव में भाग न ले उस पर कुछ दण्ड लगाया जाए, जो पचास रुपयों से अधिक न हो;  

ततीय, पंचायतों की वित्तीय हालत सुधारनी होगी; 

चतुर्थ, अधिकारियों को पंचायतों के मित्र, दार्शनिक और पथ-प्रदर्शक के रूप में कार्य करना चाहिए।

पंचम, पंचायतों के निर्वाचित प्रतिनिधियों को प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए और अन्त में, पंचायतों पर विश्वास करना होगा, वे गलतियां करेंगी और हमारा द ष्टिकोण उनके प्रति उदार अपेक्षित है।  

 

पंचायती राज संस्थाओं के प्रति राज्य सरकारों तथा जिला अधिकारियों का उदासीन होना इनके लिए घातक सिद्ध होगा राज्य सरकारों, उनके तकनीकी अभिकरणों तथा जिला अधिकारियों को पंचायती राज संस्थाओं का मार्ग निदेशन करना तथा उन्हें प्रोत्साहित करना है। जिला अधिकारियों को इन विकेन्द्रीकृत लोकतन्त्रीय संस्थाओं के मित्र, दार्शनिक तथा 'पथ-प्रदर्शक ' बनना है। उन्हें जनता को अधिकतम पहल करने का मौका देने वाले शिक्षकों का कार्य करना है। अधिकारीगण विकेन्द्रीकृत लोकतन्त्र की गतिविधियों में सक्रिय हिस्सेदारों के रूप में सम्मुख आने चाहिए। इसके साथ ही उन्हें अहंकार व वर्ग उच्चता की खोखली धारणाओं को त्यागना होगा। नौकरशाही की पुरानी उच्चता वाली मनोव त्ति से काम नहीं चलेगा। अगर 'खण्ड विकास अधिकारी' 'बड़े साहब' वाला रुख अपनाने का प्रयास करेगा तो पंचायती राज आन्दोलन को भीषण कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा।  पंचायती राज के फलस्वरूप एक महत्त्वपूर्ण तथ्य यह सामने आया है कि ग्रामीणों के मस्तिष्क से अधिकारियों का भय जाता रहा है। अंग्रेजी शासन के युग में ग्रामीण जन नौकरशाही की शक्ति से आतंकित थे। अब ग्रामीण जन खण्ड विकास अधिकारी के पास जाकर विश्वास के साथ उससे अपनी समस्याओं पर बातचीत कर सकते हैं।

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