परिस्थितिकीय द ष्टिकोण
(Ecological Approach)
प्रशासन तथा वातावरण अथवा पर्यावरण में घनिष्ट सम्बन्ध है। वे दोनों परस्पर प्रभावित करते हैं। वह दष्टिकोण जो प्रशासन तथा वातावरण में सम्बन्ध अथवा अंतः क्रिया पर प्रकाश डालता है को पारिस्थितिकीय दष्टिकोण (Ecological Approach) कहते हैं।
इस द ष्टिकोण के मुख्य प्रतिपादक जॉन एम. गॉस (John M. Gaus) रावर्ट ए. डाहल (Robert A. Dahl), रॉस्को मार्टिन (Rasco Martin), एफ. डब्लयू रिगज (E.W. Riggs) आदि हैं।
इस दष्टिकोण के अनुसार सभी संस्थानों (Institutions) पर समाज के वातावरण तथा संस्क ति का प्रभाव पड़ता है। क्योंकि लोक प्रशासन भी एक उप-व्यवस्था (Sub-system) है इसकी सामाजिक व्यवस्था के साथ अन्तः क्रिया होती रहती है। सामाजिक व्यवस्था लोक प्रशासन को प्रभावित करती है तथा प्रशासन इसे प्रभावित करता है। प्रशासन का आकार एवं स्वरूप इसके चहुँ ओर विद्यमान वातावरण पर निर्भर है तथा सामाजिक व्यवस्था प्रशासन पर निर्भर है। एफ. डब्लयू रिगज (F.W. Riggs) के अनुसार, “किसी भी प्रशासनिक प्रतिरूप या नमूने (Pattern) का महत्त्व उसकी स्थिति के अन्तर्गत होता है।" यह अब सामान्य रूप में स्वीकार किया जाने लगा है कि किसी समाज में राजनीतिक, आर्थिक तथा सामाजिक सांस्क तिक घटनाओं की प्रशासनिक व्यवस्था के साथ उसी प्रकार परस्पर क्रिया है। जैसे सभी सामाजिक व्यवस्थाएं (जिनमें प्रशासनिक व्यवस्थाएं भी सम्मिलित हैं) अपने वातावरण के साथ अंतःक्रिया करती है। तथा उनको प्रभावित करती है तथा उनसे स्वयं प्रभावित होती है।
पारिस्थितिकी अथवा पर्यावरण (Ecology) शब्द जीवन विज्ञान से लिया है जिसका अभिप्राय सभी जीवत जीव (Organisms) तथा उनके वातावरण में अन्तःसम्बन्ध से है, दूसरे शब्दों में इससे यह ज्ञात होता है कि किस प्रकार प्राणी तथा प्राकतिक एवं सामाजिक वातावरण एक दूसरे को प्रभावित करते हैं तथा इन दोनों में कसे संतुलन रखा जा सकता है।
शास्त्रीय दष्टि से पारिस्थितिक का अर्थ है संगठन तथा उसके वातावरण में पारस्परिक सम्बन्ध। इसी दष्टि से समाज शास्त्रियों ने इसका प्रयोग संगठन तथा उसके वातावरण के बीच पारस्परिक सम्बन्ध के लिए किया है। उनके अनुसार प्रशासकीय व्यवस्था सभी परिस्थितियों में एक स्वतन्त्र प्रक्रिया के रूप में कार्य नहीं कर सकती बल्कि यह अपने गिर्द होने वाली परिस्थितियों के प्रभावाधीन कार्य करती है तथा उन्हें प्रभावित करती है। क्योंकि प्रशासन विद्यमान परिस्थितियों के अन्तर्गत कार्य करता है इसलिए इसके अन्तर्गत उन परिस्थितियों का अध्ययन करना अवश्य हैं जो इसे प्रभावित करती है।
लोक प्रशासन में इस द ष्टिकोण का सबसे पहले प्रयोग 1947 में जॉन. एम. गॉस (John M. Gaus) ने एक सेमिनार लेख में किया जो बाद में उसकी रचना रिफलैक्शन आन पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन (Reflections on Public Administration) में प्रकाशित हुआ । इसमें गॉस ने सार्वजनिक नौकरशाही और उसके पर्यावरण की अनिवार्य परस्पर निर्भरता का अध्ययन करने के लिए पर्यावरण की धारणा के प्रयोग करने की आवश्यकता पर बल दिया। गॉस ने इस द ष्टिकोण का प्रयोग लोक प्रशासन की नवीन विषय-वस्तु तथा व्यक्ति एवं परिस्थितियों अथवा पर्यावरण के पारस्परिक प्रभावित करने की प्रक्रिया की खोज के लिए किया। उसने यह दर्शाने की चेष्टा की कि लोक प्रशासन किस प्रकार सामाजिक वातावरण से प्रभावित होता है। गॉस के अनुसार, “लोक प्रशासन के परिस्थितिकीय द ष्टिकोण का निर्माण स्थान के तत्त्व-भू-भाग, जलवायु, स्थान, वहां रहने वाले लोग, उनकी संस्था, आयु तथा ज्ञान, भौतिक और सामाजिक टेकनालॉजी और उनका पारस्परिक सम्बन्ध करते हैं। प्रशासन तथा वातावरण में पारस्परिक अन्तःप्रभाव को देखते हुए गॉस ने इस बात पर बल दिया कि लोक प्रशासन के विद्यार्थियों को वातावरण का अवलोकन (Observe) इस प्रकार से करना चाहिए कि वे यह अनुभव करें कि वातावरण की विशेषताओं का प्रशासन संस्थापन के विकास पर किस प्रकार प्रभाव पड़ता है। परिस्थितिकीय तत्त्वों (Ecological Elements) का संचित ज्ञान प्रशासकों को इस योग्य बना देता है कि वे अपनी संस्थाओं में बाहरी परिस्थितियों के कारण उठने वाली मांर्गो तथा चुनौतियां का सामना समझदारी से कर सकते हैं।
इसी वर्ष राबर्ट ए. डाहल (Robert A. Dahl) ने लोक प्रशासन के साहित्य का एक संस्क ति तक सीमित होने की विशेषता की आलोचना करते हुए अन्त सांस्क तिक अध्ययनों की आवश्यकता, प्रशासनिक ढांचों तथा व्यवहार पर वातावरण के प्रभाव पर बल दिया। उन्होंने कहा कि लोक प्रशासन राष्ट्रीय मनोविज्ञान तथा राजनीतिक, सामाजिक एवं सांस्क तिक पर्यावरण, जिसमें यह विकसित होता है, के प्रभावों से नहीं बच सकता। उन्होंने तथाकथित लोक प्रशासन के सिद्धान्तों तथा उनकी सामान्य स्थिति के बीच सम्बन्धों की लगभग पूर्ण अज्ञान की आलोचना की। राबर्ट ए. डाहल ने परिस्थितिकी द ष्टिकोण की विवेचना तीन विवादास्पद निष्कर्षो के आधार पर की
1. एक राष्ट्र के अनुभव पर आधारित सामान्यीकरण (Generalisations) सर्वव्यापक (Universal) नहीं हो सकते। उन्हें अन्य प्रशासकीय व्यवस्थाओं में सभी प्रकार की पर्यावरण सम्बन्धी स्थितियों में कार्यान्वित नहीं किया जा सकता।
2. प्रशासन के सिद्धान्तों तथा धारणाओं का निर्माण करने से पूर्व उनकी वैद्यत की सभी प्रकार की सामाजिक परिस्थितियों में आनुभाविक रूप में जांच कर लेनी चाहिए ताकि यह देखा जा सके कि क्या सर्वव्यापी है।
3. निष्कर्षतः लोक प्रशासन केवल अपनी सीमा का विस्तार करने के लिए नहीं अपितु अपने अध्ययन को अधिक वैज्ञानिक तथा सभी प्रकार की समाजों से सम्बन्धित करने के लिए वास्तव में अन्तः अनुशासनीय तथा परिस्थितिकीय है। 1950 के पश्चात् पर्यावरण तथा लोक प्रशासन में अंतःसम्बन्धों में लेखकों की रूचि में व द्धि होने लगी। इसी काल में संयुक्त राज्य अमेरिका का तकनीकी सहायता कार्यक्रम प्रारंभ हुआ। उस समय लोक प्रशासन के विद्वान (विशेषकर संयुक्त राज्य अमेरिका के विद्वान) नए-नए स्वतंत्र होने वाले राष्ट्रों के प्रशासनिक स्वरूपों के अध्ययन करने में रूचि लेने लगा जिससे तुलनात्मक प्रशासन (Comparative Administration) की धारणा को बल मिला तथा विभिन्न प्रशासनिक स्वरूपों से लोक प्रशासन पर भिन्न-भिन्न सामाजिक स्थितियों के प्रभावों के अध्ययन करने के लिए प्रेरणा मिली।
तत्पश्चात् फ्रेड डब्लयू. रिगज (Fred W. Riggs) ने थाईलैंड (Thailand) तथा फिलीपाईन (Philippines ) के प्रशासन के अध्ययन के आधार पर अपने विचार प्रकट करते हुए कहा कि पर्यावरण प्रशासन पर कैसे प्रभाव डालता है? रिगज के अनुसार परिस्थितिकी से अभिप्राय है प्रशासकीय व्यवस्थाओं की सम्पूर्ण व्यवस्था, राजनीतिक, सामाजिक एवं सांस्कतिक तथा आर्थिक उप-व्यवस्थाओं से अन्तः सम्बन्ध रिगज के अनुसार एक देश का सामाजिक, सांस्कतिक, ऐतिहासिक तथा स्थापत्य कला सम्बन्धी वातावरण आचरण को कैसे प्रभावित करते हैं तथा इसकी तुलना में प्रशासन समाज को कैसे प्रभावित करता है-इन प्रश्नों का सम्बन्ध परिस्थितिकीय द ष्टिकोण से है। रिगज के विचार में केवल अनुभववादी वैधिक तथा वातावरण से प्रभावित (Empirical, Nomothetic and Ecological) अध्ययन ही परिस्थितिकीय माने जा सकते हैं। इस द ष्टिकोण के अनुसार प्रशासन प्रक्रिया को एक ऐसी व्यवस्था माना जाता है जो किसी विशेष वातावरण में कार्य करती है तथा इसका उस वातावरण के साथ क्रिया-प्रतिक्रिया हो। इसलिए परिस्थितिकीय द ष्टिकोण के समर्थकों का यह मत है कि किसी देश के लोक प्रशासन की प्रकति का समुचित रूप में अध्ययन करने के लिए उस सामाजिक स्थिति तथा रूप रचना को समझना आवश्यक है जिसमें वह कार्य कर रहा है। इसे समझे बिना प्रशासन के स्वरूप को जानना सम्भव नहीं। मूल रूप में परिस्थितिकीय द ष्टिकोण इस बात का संकेत देता है कि प्रशासकीय व्यवहार अनियमित (Randon) नहीं है। यह सांस्कतिक विशेषताओं, मूल्यों तथा प्रशासन में अन्तर्क्रिया की उपज है। संक्षेप में प्रशासनिक संस्क ति महान सामाजिक संस्क ति का प्रसारण (Extension) है।
इस द ष्टिकोण का विशेष गुण यह है कि यह आधुनिक प्रजातांत्रिक देशों के लिए बहुत उपयोगी है। इस द्वारा किसी देश के प्रशासन का अध्ययन वहां के लोगों और उनके वातावरण के संदर्भ, उनकी सामाजिक समस्याओं तथा मनोव त्तियों को ध्यान में रखते हुए किया जा सकता है तथा यथा आवश्यक शासन पद्धति नीतियों में सुधार किया जा सकता है। एक प्रजातान्त्रिक देश में एक सफल प्रशासन के लिए लोगों का सहयोग आवश्यक है और यह तभी सम्भव है यदि प्रशासन लोगों की समस्याओं तथा सामाजिक मूल्यों के प्रति जागरूक हो क्योंकि परिस्थितिकीय द ष्टिकोण लोगों के सामाजिक, सांस्कतिक, आर्थिक तथा परम्परागत संस्थाओं की जानकारी प्राप्त करने में सहायता करता है। इस लिए इसके द्वारा जनता का सक्रिय सहयोग प्राप्त किया जा सकता है। अतः लोकतन्त्रात्मक प्रशासन के सकुशल तथा लोकप्रिय होने के लिए इसके आचरण का परिस्थितिकीय होना अनिवार्य है।
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