राजनीतिक सिद्धान्तों की विशेषतायें (Characteristics of Political Theory)
दूसरे, राजनीतिक सिद्धान्तों में व्यक्ति, समाज तथा इतिहास की व्याख्या होती है। ये व्यक्ति और समाज की प्रकृति की जाँच करते हैं: एक समाज कैसे संगठित होता है और कैसे काम करता है, इसके प्रमुख तत्त्व कौन से हैं, विवादों के विभिन्न स्रोत कौन से हैं, उन्हें किस प्रकार हल किया जा सकता है आदि।
तीसरे, राजनीतिक सिद्धान्त किसी विषय विशेष पर आधारित होते हैं, अर्थात्, हालाँकि एक विचारक का उद्देश्य राज्य की प्रकृति की व्याख्या करना ही होता है परंतु वह विचारक एक दार्शनिक, इतिहासकार, अर्थशास्त्री, धर्मशास्त्री अथवा समाजशास्त्री कुछ भी हो सकता है। अतः हम कई तरह के राजनीतिक सिद्धान्त पाते हैं जिनमें इन विषयों की अद्वितीयता के आधार पर अंतर किया जा सकता है।
चौथे, राजनीतिक सिद्धान्तों का उद्देश्य केवल राजनीतिक वास्तविकता को समझना और उसकी व्याख्या करना ही नहीं है बल्कि सामाजिक परिवर्तन के लिये साधन जुटाना और ऐतिहासिक प्रक्रिया को तेज करना भी है। जैसा कि लास्की लिखते हैं, राजनीतिक सिद्धान्तों का कार्य केवल तथ्यों की व्याख्या करना नहीं हैं। परन्तु यह निर्धारण करना भी है कि क्या होना चाहिए। अतः राजनीतिक सिद्धान्त सामाजिक स्तर पर सकारात्मक कार्य तथा उनके कार्यान्वयन
के लिए सुधार, क्रांति अथवा संरक्षण जैसे साधनों की सिफारिश करते हैं। इनका संबंध साधन तथा साध्य दोनों से है। ये दोहरी भूमिका निभाते हैं: 'समाज को समझना और उसकी गलतियों में सुधार करने के तरीके जुटाना ।
' पांचवें, राजनीतिक सिद्धान्तों में विचारधारा का समावेश भी होता है। आम भाषा में विचारधारा का अर्थ विश्वासों, मूल्यों और विचारों की उस व्यवस्था से होता है जिससे लोग शासित होते हैं। आधुनिक युग में हम कई तरह की विचारधाराएँ पाते हैं जैसे उदारवाद, मार्क्सवाद, समाजवाद आदि। प्लेटो से लेकर आज तक सभी राजनीतिक सिद्धान्तों में किसी-न-किसी विचारधारा का प्रतिबिम्ब अवश्य है। राजनीतिक विचारधारा के रूप में राजनीतिक सिद्धान्तों में उन राजनीतिक मूल्यों, संस्थाओं और व्यवहारों की अभिव्यक्ति होती हैं जो कोई समाज एक आदर्श के रूप में अपनाता है। उदाहरण के लिये, पश्चिमी यूरोप और अमरीका के सभी राजनीतिक सिद्धान्तों में उदारवादी विचारधारा प्रमुख रही है। इसके विपरीत चीन और पूर्व सोवियत यूनियन में एक विशेष प्रकार के मार्क्सवाद का प्रभुत्व रहा। इस संदर्भ में ध्यान देने योग्य बात यह है कि प्रत्येक विचारधारा स्वयं को सर्वव्यापक और परम सत्य के रूप में प्रस्तुत करती हैं और दूसरों को अपनाने के लिये बाध्य करती हैं। परिणामस्वरूप, वैचारिक संघर्ष आधुनिक राजनीतिक सिद्धान्तों का एक विशेष अंग रहा है।
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