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अन्तर्राष्ट्रीय या वैश्विक आतंकवाद (international or global terrorism )

जब आतंकवादी संगठन के सदस्य संगठित होकर राष्ट्र की सीमाओं को लांघकर दूसरे देशों में आतंकवादी घटनाएँ करते हैं, तो उसे अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद कहा जायेगा। अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद में कोई आतंकवादी संगठन अनेक देशों में अपना नेटवर्क फैलाकर किसी समुदाय, राष्ट्र या देश या सरकार के विरुद्ध अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए आतंक फैलाने की घटनाएँ कर सकता है। इस प्रकार जब आतंकवाद की घटनाओं का सम्बन्ध एक देश विशेष की स्थानीय समस्याओं से सीमित न रहकर दो देशों के सम्बन्धों को प्रभावित करता है तो उसे अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद कहा जा सकता है।


अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद का आगमन


 1960 के दशक में कई एक आतंकवादी समूह / संगठन यूरोप में दिखाई देने लगे, जैसे-इटली में रैड ब्रिगेड तथा पश्चिमी जर्मनी में रैड आर्मी फैक्शन इन दोनों समूहों ने अपने देशों में विद्यमान व्यवस्थाओं को नष्ट करके नई व्यवस्थाओं की स्थापना के लिए आतंकवापद का सहारा लिया। 1960 से 1990 के समय के दौरान शीत युद्ध ने प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष दोनों तरह से आतंकवाद की उत्पत्ति तथा तीव्रता को बढ़ावा दिया शीत युद्ध के दोनों खेमों में उभरी शस्त्र दौड़ ने शस्त्र उत्पादन तथा शस्त्र व्यापार को बहुत बढ़ावा दिया।

अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था में कई अवैध शस्त्र बाजार में अस्तित्व में आ गए तथा उन्होंने विभिन्न देशों में विद्यमान विद्रोही संगठनों और आतंकवादी समूहों को शस्त्र बेचने प्रारंभ कर दिये। कुछ देशों ने भी ऐसे संगठनों को शस्त्र देकर अपने प्रतिद्वन्द्वियों के विरूद्ध अपने हितों की सुरक्षा करने की नीति अपनाई।

 इस प्रक्रिया में विभिन्न देशों में कई आतंकवादी संगठन सक्रिय हो गये और अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद, सीमा पार आतंकवाद, जातीय आतंकवाद, धार्मिक आतंकवाद तथा नशीले पदार्थों की तस्करी से जुड़ा आतंकवाद उत्पन्न हो गया। कुछ राज्यों ने परोक्ष युद्ध में आतंकवादी संगठनों का प्रयोग करना आरंभ कर दिया।


स्लामिक आतंकवाद या इस्लामिक जिहादी आतंकवाद की उत्पत्ति तथा प्रसार


1980 के दशक में इस्लामिक जिहादह आतंकवाद उत्पन्न हुआ। इस्लामिक जिहादी समूहों ने विश्व भर में इस्लाम को फैलाने के लिए आतंकवादी कार्यवाहियों का सहारा लेने की नीति अपनाई। उन्होंने उन प्रदेशों को स्वतंत्र करवाने का उद्देश्य अपनाया जो कभी भी भूतकाल में मुस्लिम शासकों के अधीन रहे थे। साथ ही उन्होंने गैर मुस्लिम देशों में रहने वाले मुसलमानों के अधिकारों को सुरक्षित करने का लक्ष्य अपनाया। इन्होंने अपनी गतिविधियों के लिए कई देशों, जैसे अफगानिस्तान, पाकिस्तान,

सूडान, मध्य एशिया, केन्द्र एशिया, पश्चिमी एशिया में अपने स्कूल और प्रशिक्षण केन्द्र स्थापित कर लिए। जो देश इन इस्लामिक जिहादियों के प्रशिक्षण अड्डे बने उनके पड़ोसी देशों को इन जिहादियों की गतिविधियों से उत्पन्न तनावपूर्ण परिस्थितियों का सामना करना पड़ा।


इसे जरूर पढ़े -आतंकवाद क्या है -अर्थ,परिभाषाए, उद्देश्य तथा प्रकार (What is a Terrorism -meaning, Definations, objectives and Types)


अफगानिस्तान संकट और अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद का विकास


 1989 में अफगानिस्तान संकट ने अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद के फैलाव का मार्ग प्रशस्त किया। भूतपूर्व सोवियत संघ के अफगानिस्तान में सैनिक हस्तक्षेप के बाद, कई इस्लामिक संगठनों ने इसके विरुद्ध शस्त्रपूर्ण विरोध शुरू कर दिया। इस कार्यवाही में इनको संयुक्त राज्य अमरीका, पाकिस्तान तथा अनेक पश्चिमी तथा इस्लामिक राष्ट्रों का भारी समर्थन मिला। इन्होंने न केवल इनको आर्थिक सहायता दी, अपितु शस्त्र पूर्ति सहायता भी दी।

धीरे-धीरे इन इस्लामिक संगठनों ने अपने आपको इस्लाम के सैनिक-जिहादी कहना प्रारंभ कर दिया तथा इस्लाम के विस्तार तथा मुसलमानों की रक्षा के लिए अपनी शस्त्र गतिविधियों को दृढ तथा तीव्र कर दिया। अफगानिस्तान-पाकिस्तान का क्षेत्र इस्लामिक संगठनों-जिहादी समूहों का केन्द्र बन गया। इन क्षेत्रों में प्रशिक्षित जिहादी समूह अपने धर्म की सुरक्षा के सम्बन्ध में कट्टरवादी समूह बन गये तथा अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में आतंकवादी कार्यवाहियों में संलग्न हो गये। भारत में इनकी गतिविधियाँ, विशेष रूप से कश्मीर और पंजाब में काफी उग्र रूप धारण कर गई।


आतंकवाद का एक वैश्विक व्यवस्था के लिए खतरे के रूप में उभरना


20वीं शताब्दी के अन्तिम दशक में विश्व समुदाय ने विश्व के कई देशों किरगिस्तान, रूस, चीन, तजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, मिस्त्र, अल्जीरिया तथा भारत के विभिन्न क्षेत्रों मध्य एशिया, दक्षिणी पूर्वी एशिया, केन्द्रीय एशिया, पश्चिमी एशिया, अफ्रीका तथा यूरोप के कई भागों में अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद के उभरने को चिंतापूर्ण रूप में देखा। यह अपने विभिन्न रूपों में विश्व के कई भागों में फैल गया। सीमा पर आतंकवाद पार राष्ट्रीय आतंकवाद तथा नशीले पदार्थों की तस्करी से जुड़ा आतंकवाद सभी ने मिलकर अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद को एक गंभीर समस्या बना दिया तथा अफगानिस्तान पाकिस्तान तथा केन्द्रीय एशिया के क्षेत्र इसके गढ़ बन गये। आतंकवादी संगठनों की कार्यवाहियों ने विभिन्न देशों की सुरक्षा व्यवस्था को प्रभावित करना प्रारंभ कर दिया। 1989 से आज तक भारत सीमा पार आतंकवाद का सामना कर रहा है। रूस, मिस्त्र, अल्जीरिया, रूस (चेचन्या) और कई अन्य देश जिहादी संगठनों की गतिविधियों के कारण अपनी-अपनी सुरक्षा व्यवस्थाओं के लिए खतरा अनुभव कर रहे हैं। हरकत-उल-अन्सार, लश्कर-ए-तोयबा, हिजबुल मुजाहिद्दीन, अल बदर, हम्मास जैसे कई समूह आज विश्वभर में आतंकवादी कार्यवाहियों में संलग्न हैं। आज सीमा पार आतंकवाद के द्वारा पाकिस्तान जैसे देश अपने संकीर्ण हितों की पूर्ति का प्रयत्न कर रहे हैं। 2011 तक ओसामा बिन लादेन अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद का एक प्रमुख संरक्षक तथा नेता बना रहा। उसके नेतृत्व में कार्य कर रहे जिहादी समूह संयुक्त राज्य अमेरिका को अपना निशाना बनाए हुए हैं। आज विभिन्न देशों की सरकारों को अस्थिर बनाकर परोक्ष युद्ध को सहारा लेकर, हवाई जहाज अगवा कर निर्दोष व्यक्तियों का कत्ल कर बम विस्फोट करके तथा अन्य आतंकवादी कार्यवाहियों द्वारा यह जिहादी संगठन विश्व शांति और सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बने हुए हैं।


अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद के दुष्प्रभाव


अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद के कारण उत्पन्न हो रहे खतरों दुष्प्रभावा को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है


(1) अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद एक सीमा पार राष्ट्रीय क्रिया है। यह दूसरे देशों में विरोध तथा हिंसा के कीटाणु फैलाने की योग्यता रखता है। कुछ क्षेत्र जिनका वैसे विरोध के साथ कोई सम्बन्ध नहीं होता, विरोध में फंस जाते हैं।

(2) आतंकवादी घटनाएँ, बिना किसी पूर्व चेतावनी के परम्परागत युद्ध को आरंभ कर सकती हैं। युद्ध छेड़ने के एक सोचे-समझे षड्यंत्र के अधीन एक विशेष प्रकार की आतंकवादी घटनाएँ एक राज्य के विरुद्ध प्रयुक्त की जा सकती हैं।

(3) आतंकवाद तथा युद्ध के बीच की रेखाएँ कमजोर होने से भी एक युद्ध आरंभ हो सकता है।

(4 ) आतंकवाद तथा संगठित अपराध (आतंकवाद तथा नशीले पदार्थों की तस्करी) के बीच दिखाई दे रहे तथा बढ़ रहे सम्बन्ध राज्य की सत्ता के प्रभाव को सीमित कर रहे हैं। आतंकवादी बल प्रयोग तथा संगठित अपराध द्वारा एवं राज्य में भ्रष्टाचार फैलाकर यह कार्य करते है।

(5) आतंकवाद में शामिल युद्ध जैसी हिंसक तथा तोड़-फोड़ की कार्यवाहियों एक राज्य में फैल कर विकास को अवरुद्ध करती हैं तथा राज्य की अर्थव्यवस्था को खराब कर देती हैं।

(6) आतंकवादी समूह आत्मनिर्णय के अधिकार राष्ट्रीय मुक्ति संग्राम स्वतंत्रता आंदोलन, अल्पसंख्यकों के अधिकार. मानवाधिकार तथा स्वतंत्रता जैसी अवधारणाओं का प्रयोग करके एक राज्य पर दबाव बना कर उसकी शक्ति व प्रभाव को कमजोर करने का प्रयास करते हैं।

(7) किसी राज्य में हो रही आतंकवादी कार्यवाहियों के कारण अन्तर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को खतरे का नाम देकर शक्तिशाली राज्य अपने हस्तक्षेप करने का आधार बना सकता है।

8 ) आतंकवाद के कारण किसी भी क्षेत्र में युद्ध का खतरा उत्पन्न हो सकता है। ये सभी खतरे अन्तर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिए गंभीर और भयानक खतरा पैदा कर देते हैं। विश्व के सभी क्षेत्रों के लोग अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद की मुसीबत के साथ रह रहे हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका के लोगों ने 21वीं शताब्दी में आतंकवाद के भयानक स्वरूप को अनुभव किया तथा आज उनका देश अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद की समाप्ति के लिए कार्य कर रहा है परन्तु उसकी इराक नीति ने निश्चित रूप से इस्लामी जहादी आतंकवाद को अधिक सक्रिय कर दिया है। दुख की बात यह है कि कुछ राज्य शासन भी आतंकवाद को शरण, समर्थन तथा सहायता देते रहे हैं। लीबिया तथा पाकिस्तान ऐसे ही देश रहे हैं। यद्यपि आज वे भी अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद की समाप्ति के लिए सहयोग की बात कह रहे हैं। आज विश्व का कोई भी क्षेत्र अथवा राज्य आतंकवाद की मार का निशाना बन सकता है। इस कारण यह आवश्यक है कि इसका सामना सभी देश मिलकर अन्तर्राष्ट्रीय कार्यवाही द्वारा करें, तभी इसकी समाप्ति को संभव बनाया जा सकता है।

  अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद की समाप्ति के प्रयास

अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद को समाप्त करने या इसके खतरे को समाप्त करने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय जगत में अनके प्रयास किये गये हैं, जिनमें प्रमुख इस प्रकार हैं:

 A. संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा प्रयास संयुक्त राष्ट्र संघ ने अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद को दूर करने के दो उपाय बताय

(1) कानूनी उपाय-कानूनी क्षेत्र में संयुक्त राष्ट्र संघ तथा इसकी विशिष्ट ऐजेंसियों ने आतंकवाद के खिलाफ बुनियादी कानूनी दस्तावेज की रचना करने वाले अन्तर्राष्ट्रीय समझौतों के नेटवर्क को विकसित किया है। ऐसी विशिष्ट ऐजेंसिया हैं- अन्तर्राष्ट्रीय नगर विमानन संगठन, अन्तर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन, अन्तर्राष्ट्रीय आणविक ऊर्जा ऐजेन्सी, बुनियादी कानूनी दस्तावेज की रचना करने वाले अन्तर्राष्ट्रीय समझौते हैं। इनमें प्रमुख निम्न हैं--

(i) विमानों पर किए गए अपराधों एवं कतिपय अन्य कार्यों पर टोक्यो कन्वेंशन, 1963 ।

(ii) विमानों के गैर कानूनी कब्जे के विरोध हेतु हेग कन्वेंशन, 1970|

(iii) नागर विमानन की सुरक्षा के खिलाफ गैर कानूनी कार्यों के निरोध पर मांट्रियल कन्वेंशन, 1971 तथा प्रोटोकॉल 1988 |

(iv) राजनयिक प्रतिनिधियों सहित अन्तर्राष्ट्रीय रूप से सुरक्षा प्राप्त लोगों के खिलाफ अपराधों के निरोध एवं दण्ड पर न्यूयार्क कन्वेंशन, 1973 |

(v) आणविक सामग्री की भौतिक सुरक्षा पर वियेना कन्वेंशन, 1980 ।

 (vi) समुद्री नौकायन की सुरक्षा के खिलाफ गैर कानूनी कार्यों के विरोध पर रोम कन्वेंशन, 1988 |

(vii) महाद्वीपीय समुद्री चट्टान श्रेणी पर स्थित फिक्स्ड प्लेटफार्मों की सुरक्षा के खिलाफ गैर कानूनी कार्यों के निरोध रोम प्रोटोकॉल, 1988
महासभा ने चार कन्वेंशन प्रस्तुत किये हैं

(1) बन्धक बनाने के खिलाफ कन्वेंशन, 1979 

 (2) संयुक्त राष्ट्र एवं सहयोगी कर्मचारियों की सुरक्षा पर कन्वेंशन, 1994 

(3) आतंकवादी बमबारी के निरोध के लिए अन्तर्राष्ट्रीय कन्वेंशन, 1997

 (4) आतंकवाद को वित्त पोषण करने के निरोध हेतु अन्तर्राष्ट्रीय कन्वेंशन, 1999


(2) राजनैतिक उपाय -राजनतिक क्षेत्र में महासभा ने 1994 में अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद की समाप्ति के उपायों पर घोषणा की और 1996 में, 1994 की घोषणा की सम्पूर्ति के लिए घोषणा स्वीकार की जिसमें आतंकवाद के सभी कार्यों और व्यवहारों को अपराध ठहराते हुए उनकी भर्त्सना की ।

11 सितम्बर, 2001 को अमरीका पर हुए भयंकर आतंकवादी हमलों ने आतंकवाद को अन्तर्राष्ट्रीय कार्य सूची के केन्द्र में ला दिया। 12 सितम्बर को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने अमरीका पर हुए आतंकवादी हमलों की निन्दा करने सम्बन्धी संकल्प 1368 पारित किया। उसके बाद 28 सितम्बर, 2001 को उसने संकल्प 1373 (2001) पारित किया जिसमें अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद का प्रतिकार करने के लिए विविध और व्यापक नीतियों का उललेख है। इस संकल्प में अन्य बातों के साथ-साथ सभी राज्यों से तंकवादी कृत्यों को धन देने से रोकने और उनका दमन करने, संभावित आतंकवादियों की सभी वित्तीय परिसम्पत्तियों तथा आर्थिक संसाधनों पर रोक लगाने, आतंकवादियों को किसी प्रकार का समर्थन देने जिसमें भर्ती और प्रशिक्षण आदि शामिल हैं, से बचने का आवाह्न किया गया है।


आतंकवाद का सामना करने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ में अभी दो प्रक्रियायें चल रही हैं


(i) भारत द्वारा प्रस्तावित (वर्ष 1996 में) अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर एक व्यापक अभिसमय का अन्तिम रूप दिया
(ii) संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा सितम्बर 2006 में अंगीकार की गई वैश्विक आतंकवादरोधी रणनीति इसके क्रियान्वयन के लिए सदस्यों की अनौपचारिक बैठक दिसम्बर, 2007 में आयोजित की गई ताकि अभी तक किये गये प्रयासों का मूल्यांकन किया जा सके।


B.संयुक्त राज्य अमेरिका की आतंकवाद के विरूद्ध जंग की नीति


 11 सितम्बर, 2001 को घटना के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति बुश ने आतंकवाद के विरोध में निम्न जंग नीति अपनायी। इस नीति के अन्तर्गत उसने आतंकवाद के विरोध में निम्न अभियान चलाया


  • (i) आतंकवाद के विरुद्ध विश्व जनमत को साथ लेने की कूटनीति-अमरीका ने अपने आतंकवादी जंग को प्रारम्भ करने से पहले विश्व जनमत को अपने साथ लेने का अभियान चलाया। उसकी इस राजनयिक पहल में अमेरिका को पूरी सफलता मिल गई। अमेरिका ने नाटो के सभी देशों और रूस से भी इस षड्यंत्र के अपराधियोंको खोजने व ढूँढने में सहायता माँगी।उसने संयुक्त राष्ट्र संघ की साधारण सभी की बैठक आयोजित करने की पहल की ताकि आतंकवादियों के खिलाफ कार्यवाही में अधिकतम समर्थन जुटा सके।


  • (ii) आतंकवादियों के विरूद्ध सशस्त्र संघर्ष की नीति-आतंकवाद के विरुद्ध अमेरिका ने एक तरफ पाकिस्तान की धरती से तथा दूसरी तरफ अफगानिस्तान के उत्तरी गठबन्धन को सैनिक तथा आर्थिक सहायता देकर सशस्त्र संघर्ष प्रारम्भ कर दिया और इस संघर्ष में तालिबान सरकार का पतन हो गया तथा अफगानिस्तान से आतंकवादियों का सफाया हुआ इस प्रकार अमेरिका ने अलकायदा आतंकवाद के विरुद्ध संघर्ष को जारी रखा।


  • (iii) आतंकवाद को इस्लाम से अलग करने की नीति- आतंकवाद के विरुद्ध अमेरिका की सशस्त्र संघर्ष की नीति को अलकायदा तथा लादेन ने इसे इस्लाम के विरुद्ध अमरीकी साम्राज्यवाद का तरफ अमेरिका ने आतंकवाद को इस्लाम से पृथक करने का प्रयत्न किया। इस प्रकार अमरीका ने आतंकवाद और इस्लाम को अलग-अलग कर अफगानी आतंकवाद के विरुद्ध संघर्ष किया

C.भारत की आतंकवाद विरोध की नीति

भारत ने प्रारंभ से ही सभी तरह के आतंकवाद के विरोध की नीति अपनायी है। आतंकवादी गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए भारत सभी छोटे-बड़े देशों से इस बुराई के खिलाफ संगठित होकर कार्य करने पर बल दे रहा है। 6 जनवरी, 2002 को भारत ब्रिटिश नई दिल्ली घोषणा पत्र में आतंकवाद के विरुद्ध चार मूल बिन्दु निर्धारित किये गये जिनके प्रति प्रतिबद्धता दोनों देशों में व्यक्त की ये मूल बिन्दु इस प्रकार हैं

  1. आतंकवाद को किसी भी आधार पर न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता, जहाँ कहीं भी यह हो, उसकी कड़ी निन्दा की जानी चाहिए तथा इसका उन्मूलन किया जाना चाहिए।
  2. आतंकवाद को समर्थन देने वाले सभी लोगों आतंकवादियों को शरण, प्रशिक्षण एवं वित्तीय सहायता प्रदान करने वाले सभी व्यक्तियों एवं संगठनों की निन्दा की जाए।
  3. विश्व में आतंकवाद को समूल समाप्त करने के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के प्रस्ताव संख्या 1373 का दोनों देशों ने समर्थन किया।
  4. आतंकवाद विरोधी गतिविधियों के संचालन के लिए दोनों राष्ट्रों द्वारा पारस्परिक सहयोग हेतु समिति बनाने की बात पर सहमति हुई। सितम्बर, 2007 में सपन्न संयुक्त राष्ट्र महासभा के 62वें अधिवेशन में भी भारत ने आतंकवाद के विरूद्ध एकजुट होकर संघर्ष की हिमायत की।

दक्षेस के 18वें शिखर सम्मेलन (नवम्बर 2014 ) में दक्षिण एशिया में बढ़ा आतंकवाद और धार्मिक कट्टरपंथ को समाप्त करने व आपराधिक मामलों में परस्पर सहयोग के भारत के आवाहन का सभी सदस्य देशों ने समर्थन किया तथा आतंकवाद, चरमपंथ और उग्रवाद से सामूहिक रूप से लड़ने कर प्रतिज्ञा की सितम्बर 2016 में चीन में हुए जी-20 के शिखर सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आतंकवाद के विरूद्ध जीरो टॉलरेंस की नीति बल दिया तथा कहा कि जो देश आतंकवाद को बढ़ावा दे रहे हैं, उन्हें अलग-थलग किया जाना चाहिए। 21.13.4 आतंकवाद को रोकने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय संगठन- आतंकवाद को रोकने के लिए निम्नलिखित संगठनों का निर्माण किया गया हैं

  • (i) काउंटर टेरेरिज्म कमेटी (सीटीसी) संयुक्त राष्ट्र के अधीन कार्यरत यह कमेटी राष्ट्र संघ द्वारा पारित आतंकवाद विरोधी प्रस्तावों के क्रियान्वयन का कार्य करती है तथा आतंकवाद से जूझ रहे देशों की सहायता करती है।
  • (ii) फिनांशियल एक्शन टास्क फोर्स- यह अन्तर्राष्ट्रीय संस्था आतंकवादियों के वित्तीय स्त्रोतों एवं लेन-देन पर निगाह रखती है। इसके 33 देश सदस्य हैं।
  • (iii) आपरेशन ग्रीन क्वेट - न्यूयॉर्क स्थित यह संगठन आतंकवादियों के वित्तीय स्त्रोतों पर रोकथाम का कार्य करता है। इसे अमेरिका ने स्थापित किया था ।
  • (iv) काउन्टर टेरेज्मि ग्रुप (सीटीजी) यह संगठन भी आतंकवादियों के वित्तीय स्त्रोतों पर निगाह रखता है। इसके 8 सदस्य हैं।


निष्कर्ष


उपर्युक्त अध्ययन से स्पष्ट है कि आज आतंकवाद का सामना करने के लिए यह आवश्यकता है कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर एक ऐसी नीति या नियमों का निर्धारण किया जाये जिसका अनुकरण सभी देश ईमानदारी से करें तथा विश्व के शक्तिशाली व विकसित राष्ट्र इस समस्या के समाधान हेतु विशेष भूमिका निभायें



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