प्रस्तावना
देश की वित्तीय तथा आर्थिक प्राथमिकताओं को नियमित करने और पुनर्निरूपित करने के लिए सरकार के हाथों में बजट एक शक्तिशाली नीतिगत दस्तावेज है। बजट न केवल वृहत् आर्थिक स्थिरता लाने वाला एक उपाय है अपितु विकास को बढ़ाने, गरीबी को कम करने और रोजगार का सृजन करने संबंधी विकासात्मक लक्ष्यों को प्राप्त करने का भी एक तंत्र है। यह सरकार के वृहत् आर्थिक और वित्तीय उद्देश्यों को दर्शाने के साथ-साथ देश की प्रगति, समृद्धि और लोगों के कल्याण के लिए अपनी वचनबद्धता को भी दर्शाता है।
बजट क्या है?
(What is budget)
बजट में केंद्र सरकार के 3 वर्ष के आय और व्यय का लेखा-जोखा होता है| वित्तमंत्री संसद में यह बताते हैं कि पिछले साल सरकार की आय और व्यय कितनी थी, वर्तमान वर्ष में कितनी है और अगले साल ‘आय और व्यय’ कितनी होने की उम्मीद है| इस प्रकार बजट के माध्यम से सरकार पूरे देश को यह बताती है कि वह जनता की कमाई का एक-एक पैसा योजनाबद्ध तरीके से इस्तेमाल कर रही है |
बजट की परिभाषा - बजट एक लेखा(वित्तीय ) वर्ष मे सरकार द्वारा किये गए अनुमानित आय तथा अनुमानित व्यय का विवरण होता है।
सविधान मे बजट का उल्लेख
भारतीय सविधान मे कही भी बजट शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है परन्तु इसके अनुच्छेद 112 मे वित्तीय विवरण का उल्लेख है। इसके अनुसार राष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों में भारत सरकार के लिये उस अवधि हेतु अनुमानित प्राप्तियों और व्ययों का विवरण रखवाएंगे।
बजट प्रक्रिया का आरभ
आम तौर पर बजट बनाने की शुरुआत अगस्त-सितंबर के बीच जारी होने वाले बजट परिपत्र से होती है दरअसल वित्त मंत्रालय का बजट विभाग अगस्त के आखिर या सितंबर की शुरुआत में ही बजट परिपत्र जारी करता है। इस परिपत्र में भारत सरकार और उसके सभी मंत्रालयों से संबंधित आय तथा व्यय का पूरा विवरण मांगा जाता है। इसके आधार पर बजट की रूप-रेखा तैयार की जाती है। इसके बाद सितंबर के आखिर तक अगले वित्त वर्ष के लिए सरकारी खर्च का अनुमानित आंकड़ा तैयार किया जाता है।
संसद मे बजट पारित होने की प्रक्रिया
संसद में बजट निम्नलिखित 6 स्तरों से गुजरता है:
1. बजट का प्रस्तुतिकरण।
2. आम बहस।
3. विभागीय समितियों द्वारा जांच।
4. अनुदान की मांग पर मतदान।
5. विनियोग विधेयक का पारित होना।
6. वित्त विधेयक का पारित होना।
1. बजट का प्रस्तुतिकरण: 2017 से पहले बजट दो रूपों में प्रस्तुत किया जाता है-रेलवे बजट और आम बजट तथा इन्हे अलग अलग प्रस्तुत किया जाता था परन्तु 2017 के बाद दोनों को एक साथ प्रस्तुत किया जाता है।
परिपाटी के अनुसार, बजट वित्त मंत्री द्वारा लोक सभा में प्रति वर्ष फरवरी के अंतिम सप्ताह को अपराह्न 5 बजे प्रस्तुत किया जाता था । तथापि, वर्ष 1999 में सामान्य बजट पूर्वाहन 11 बजे और वर्ष 2000 में अपराह्न 2 बजे प्रस्तुत किया गया था।वर्ष 2001 से सामान्य बजट को अपराह्न 5 बजे के बजाय पूर्वाह्न 11 बजे प्रस्तुत किए जाने की प्रथा का पालन किया जा रहा है। परन्तु 2017 यह फरवरी के अंतिम सप्ताह की जगह फरवरी के प्रथम सप्ताह मे पूर्वाह्न 11 बजे पेश किया जा रहा है
आम बजट को प्रस्तुत करते समय वित्त मंत्री सदन में जो भाषण देता है, उसे बजट भाषण कहते हैं। लोकसभा में भाषण के अंत में मंत्री बजट प्रस्तुत करता है। राज्यसभा में इसे बाद में पेश किया जाता है।
2. आम बहसः साधारण बजट को प्रस्तुत करने की तिथी के कुछ दिन बाद तक बजट पर आम बहस चलती रहती है। दोनों सदन इस पर तीन से चार दिन बहस करते हैं । इस चरण में लोकसभा इसके पूरे या आंशिक भाग पर चर्चा कर सकती है इससे संबंधित प्रश्नों को उठाया जा सकता है। बहस के अंत में वित्त मंत्री को अधिकार है कि वह इसका जवाब दे।
3. विभागीय समितियों द्वारा जांच:बजट पर आम बहस पूरी होने के बाद सदन तीन या चार हफ्तों के लिए स्थगित हो जाता है। इस अंतराल के दौरान संसद की स्थायी समितियां अनुदान की मांग आदि की विस्तार से पड़ताल करती हैं और एक रिपोर्ट तैयार करती हैं। इन रिपोर्टों को दोनों सदनों में विचारार्थ रखा जाता है।
स्थायी समिति की यह व्यवस्था 1993 (वर्ष 2004 में इसे विस्तृत किया गया) से शुरू की गई। यह व्यवस्था विभिन्न मंत्रालयों पर संसदीय वित्तीय नियंत्रण के उद्देश्य से प्रारंभ की गयी थी।
4. अनुदान की मांगों पर मतदान: विभागीय स्थायी समितियों के आलोक में लोकसभा में अनुदान की मांगों के लिए मतदान होता है। मांगें मंत्रालयवार प्रस्तुत की जाती हैं। पूर्ण मतदान के उपरांत एक मांग, अनुदान बन जाती है।
इस संदर्भ में दो बिंदु उल्लेखनीय हैं-एक, अनुदान के लिए मतदान लोकसभा की विशेष शक्ति है, जो कि राज्यसभा के पास नहीं है। दूसरा, राज्यसभा को मतदान का अधिकार बजट के मताधिकार वाले हिस्से पर ही होता है तथा इसमें भारत की संचित निधि पर भारित व्यय शामिल नहीं होते हैं (इस पर केवल चर्चा की जा सकती है)।
बजट में प्रत्येक मांग पर लोकसभा में अलग से मतदान होता है। इस दौरान संसद सदस्य इस पर बहस करते हैं। सदस्य अनुदान मांगों पर कटौती के लिये प्रस्ताव भी ला सकते हैं। इस प्रकार के प्रस्ताव को कटौती प्रस्ताव कहा जाता है, जिनके तीन प्रकार होते हैं:
(अ) नीति कटौती प्रस्ताव यह मांग की नीति के प्रति असहमति को व्यक्त करता है। इसमें कहा जाता है कि मांग की राशि 1 रुपये कर दी जाये । सदस्य कोई वैकल्पिक नीति भी पेश कर सकते हैं।
(ब) आर्थिक कटौती प्रस्ताव इसमें इस बात का उल्लेख होता है कि प्रस्तावित व्यय से अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ सकता है। इसमें कहा जाता है कि मांग की राशि को एक निश्चित सीमा तक कम किया जाये (यह या तो मांग में एकमुश्त कटौती हो सकती है या फिर पूर्ण समाप्ति या मांग की किसी मद में कटौती)।
(स) सांकेतिक कटौती प्रस्ताव यह भारत सरकार के किसी दायित्व से संबंधित होता है। इसमें कहा जाता है कि मांग में 100 रुपये की कमी की जाये।
एक कटौती प्रस्ताव का महत्व इस बात में है कि-(अ) अनुदान मांगों पर चर्चा का अवसर प्रदान करता है एवं
(ब) उत्तरदायी सरकार के सिद्धांत को कायम रखने के लिए सरकार के कार्यकलापों की जांच करना। हालांकि, कटौती प्रस्ताव की प्रायोगिक रूप से ज्यादा उपयोगिता नहीं है। ये केवल सदन में लाये जाते हैं तथा इन पर चर्चा होती है लेकिन सरकार का बहुमत होने के कारण इन्हें पास नहीं किया जा सकता। ये केवल कुछ हद तक सरकार पर अंकुश लगाते हैं।
अनुदान मांगों पर मतदान के लिये कुल 26 दिन निर्धारित किये गये हैं अंतिम दिन अध्यक्ष सभी शेष मांगों को मतदान के लिये पेश करता है तथा उनका निपटान करता है फिर चाहे सदस्यों द्वारा इन पर चर्चा की गयी हो या नहीं इसे गिलोटिन के नाम से जाना जाता है।
गिलोटिन की परिभाषा -: यह बिना चर्चा किए सभा द्वारा शेष मांगों पर मतदान कर वित्तीय प्रस्तावों संबंधी चर्चा को समाप्त करने का एक उपाय है
5. विनियोग विधेयक का पारित होनाः संविधान में व्यवस्था की गई है कि भारत की संचित निधि से विधि सम्मत विनियोग के सिवाए धन की निकासी नहीं होगी, तदनुसार भारत की निधि से विनियोग के लिए एक विनियोग विधेयक पेश किया जाता है, ताकि धन को निम्न आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्रयुक्त किया जाए:
(अ) लोकसभा में मत द्वारा दिये गये अनुदान। तथा
(ब) भारत की संचित निधि पर भारित व्यय । विनियोग विधेयक की रकम में परिवर्तन करने या अनुदान के लक्ष्य को बदलने अथवा भारत की संचित निधि पर भारित व्यय की रकम में परिवर्तन करने का प्रभाव रखने वाला कोई संशोधन, संसद के किसी सदन में प्रख्यापित नहीं किया जाएगा।
इस मामले में राष्ट्रपति की सहमति के उपरांत ही कोई अधिनियम बनाया जा सकता है। इसके बाद ही संचित निधि से किसी प्रकार के धन की निकासी की जा सकती है । इसका अर्थ है कि, विनियोग विधेयक के लागू होने तक सरकार भारत की संचित निधि से कोई धन आहरित नहीं कर सकती है।
इसमें काफी समय लगता है तथा यह अप्रैल तक खिंच जाता है। लेकिन सरकार को 31 मार्च के बाद विभिन्न कार्यों के लिये धन की आवश्यकता होती है। इस स्थिति से निपटने के लिये संविधान द्वारा लोकसभा को यह शक्ति दी गयी है कि वह इस प्रकार के आवश्यक कार्यों के लिये विशेष प्रयासों के माध्यम से धन का आहरण कर सकती है। इसे लेखानुदान के नाम से जाना जाता है। इसे बजट पर आम बहस के उपरांत पारित किया जाता है। इसमें सामान्यतः कुल अनुमान के 1-6 भाग के बराबर को दो माह के व्यय हेतु स्वीकृति दी जाती है।
6. वित्त विधेयक का पारित होना: वित्त विधेयकः इसमें आगामी वित्तीय वर्ष के लिए नए कराधान, विद्यमान कर ढांचे में संशोधन अथवा विद्यमान कर ढांचे को जारी रखने के लिए सरकार के प्रस्ताव शामिल होते हैं। धन विधेयक होने के कारण वित्त विधेयक को लोक सभा द्वारा पारित किए जाने के बाद इसे सिफारिश हेतु राज्य सभा को भेजा जाता है।
अनन्तिम कर संग्रहण अधिनियम, 1931 के अनुसार, वित्त विधेयक को 75 दिनों के भीतर प्रभावी हो जाना चाहिए। वित्त अधिनियम बजट के आय पक्ष को विधिक मान्यता प्रदान करता है और बजट को प्रभावी स्वरूप देता है।
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