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जर्मन मे नाज़ीवाद का उदय -कारण और परिणाम (The rise of Nazism in German - causes and consequences)

जर्मनी में हिटलर के नेतृत्व में बीसवीं शताब्दी के तीसरे दशक में जैसे आंदोलन का जन्म हुआ जो जर्मन नागरिकों की भावनात्मक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए हुआ था, परंतु यह सिर्फ एक राजनीतिक आंदोलन नहीं था।परंतु इसका बहुत ही व्यापक आयाम था जिसने जर्मन राज्य के सामाजिक आर्थिक पहलुओं को भी प्रभावित किया नाजीवाद फासीवाद का ही जर्मन स्वरूप था इटली के फासीवाद की तरह जर्मन का नाजीवाद भी राजनीतिक लोकतंत्र तथा नागरिक स्वतंत्रता का विरोधी था तथा युद्ध की महिमा का गुणगान करता था नाजीवाद एक तरह की अधीनवादी व्यवस्था थीजो प्रकृति से सर्वाधिकारवादी थी तथा सत्ता की पूरी शक्ति एक ही व्यक्ति में निहित होगी|

  
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जर्मन मे नाजीवाद के अभ्युदय(उदय)के कारण


1. वर्साय संधि द्वारा उपेक्षा :-

वर्साय की संधि में जर्मनी को मित्रराष्ट्रों द्वारा वैश्विक धरातल पर तिरस्कार का सामना करना पड़ा। इस सन्धि से पारम्परिक गौरव व स्वाभिमान को ठेस पहुँची थी तथा इस अपमान को वे भुला नहीं पाये । तत्कालीन जर्मनी को एक ऐसे शक्तिशाली नेतृत्व की आवश्यकता थी जो उसके खोये हुये गौरव को पुनः लौटा सके। वर्साय की संधि का जर्मनी में बहुत अधिक दुष्प्रभाव हुआ। जिसके फलस्वरूप जर्मनी का आर्थिक ढाँचा बिखर गया। इस आर्थिक संकट ने वहाँ के लगभग 60 लाख लोगों को बेरोजगार बना दिया और वहाँ भयावह भुखमरी और निर्धनता चारों ओर नजर आने लगी।

कृषक भारी कर्ज के नीचे दबने लगे। हिटलर ने इस अवसर का लाभ उठाया और जनता में यह प्रचारित किया कि इन बदतर हालात की जिम्मेदार जर्मनी की तात्कालीन अशक्त प्रजातांत्रिक सरकार है। हिटलर ने वहाँ की जनता का, किसानों का कर्ज माफ करके, बेरोजगार जनता को रोजगार दिलवाने तथा युद्ध हर्जाने पर प्रतिबंध लगाने के लिए आश्वस्त कर दिया। इससे वह जल्द ही जनता के बीच में लोकप्रिय हो गया। जर्मनी की अत्यन्त निराश जनता को हिटलर के नेतृत्व में एक आशा की किरण नजर आने लगी। धीरे-धीरे जनमत का झुकाव हिटलर की ओर होने लगा।

2. वाइमर गणतंत्र की असफलता :-

वाइमर गणतंत्र का उदय जर्मनी की दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति में हुआ आरम्भ में ही इस गणतंत्र को वर्साय संधि पर हस्ताक्षर करने पड़े जिसमें उसने लगभग अपना सबकुछ खो दिया था। जर्मनी के जनतांत्रिक संविधान में अनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली थी। इस कारण वहाँ अनेक दलों का निर्माण हो गया था। जिससे जर्मनी में कुशल सरकार स्थापित नहीं हो सकी इसके कारण जनता में वाइमर गणतंत्र के प्रति असंतोष था। अधिनायकवाद की ओर उसका विश्वास और अधिक प्रबल हो गया | इस स्थिति का लाभ हिटलर को मिला जो कि वहाँ एक अधिनायकवादी शासन की स्थापना करना चाहता था।

3. जनतांत्रिक प्रणाली से मोहभंग :-

नाजी दल के अस्तित्व में आने का यह भी एक मुख्य कारण था कि वहाँ कि जनता का जनतान्त्रिक प्रणाली से मोहभंग हो गया था। सरकार जिस प्रकार से कार्य कर रही थी उससे वहाँ की जनता सन्तुष्ट नही थी। इस प्रणाली में उसे अनुशासन का वातावरण दिखाई नहीं देता था। उसे लगने लगा था कि यह सरकार सिर्फ बातें ही कर सकती है काम नहीं कर सकती। इस कारण जर्मनी की जनता इस सरकार से असंतुष्ट थी। जनता को वर्साय संधि के बाद एक ऐसे शासक की आकांक्षा थी जो कि उसे इस दयनीय दशा से मुक्त कर सके। जर्मन जनता को लगने लगा था कि हिटलर उनकी इन अपेक्षाओं को पूरा कर सकता है। इसलिए उसने हिटलर को समर्थन दिया।

4. साम्यवाद का खौफ :-


हिटलर को अपने लक्ष्य में साम्यवाद ही सबसे बड़ी रूकावट नजर आ रहा था। साम्यवादने रूस में अपना प्रभाव स्थापित कर लिया था तथा उससे जर्मनी भी अछूता नहीं रहा। हिटलर जानता था कि साम्यवादियों को वहाँ की जनता के समर्थन के द्वारा ही रोका जा सकता है इसलिए उसने साम्यवादियों के विरोध में वहाँ की जनता के मन में डर की भावना को जन्म दिया। उसने उनके समक्ष स्पष्ट किया कि साम्यवाद का अन्तर्राष्ट्रीयवाद जर्मनी के राष्ट्रवाद के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं। साम्यवादी शक्तिशाली होकर जर्मनी पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लेंगे। हिटलर की इन सब बातों ने वहाँ की जनता को बहुत अधिक प्रभावित किया।

5.यहूदियों से घृणा 

 जर्मन जनता यहूदियों के प्रति घृणा की भावना रखती थी। ये यहूदी बड़े-बड़े उद्योग धन्धों व व्यापारियों में अपना प्रमुख स्थान रखते थे हिटलर ने प्रथम विश्वयुद्ध में जर्मनी की हार का जिम्मेदार भी यहूदियों को ही ठहराया। उसने जर्मन जनता को आश्वासन दिया कि जर्मन जनता पर यहूदियों के ऋणों को वह माफ कर देगा और यहूदियों को देश से बाहर खदेड़ देगा।

6. हिटलर के प्रभावशाली कार्यक्रम :-

हिटलर जर्मन जनता के मन में अपने प्रति विश्वास जगा कर ही जर्मनी में नाजीवाद को स्थापित कर सकता था। इसलिए वह वहाँ की जनता की आकाक्षाओं, मनोभावों, विचारों तथा स्थानीय संस्कृति आदि के अनुसार ही कार्य करता था। उसके इन सभी कार्यक्रमों से जनता बहुत अधिक प्रभावित थी। जर्मन जनता के विचारों को उसने सच में बदलने का संकल्प लिया था। वह जनता के इन विचारों को और गहरा करते हुए लोकतंत्र की निंदा करता था । वह शक्ति के शासन को प्रबल बनाता था। वहाँ की जनता वीर नायकों की तरह हिटलर को मानने लगी थी।



7. जर्मन नवयुवकों, सैनिकों तथा राज-कर्मचारियों का साथ :-

प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात जर्मनी की दशा इतनी भाोचनीय हो गयी थी कि वहाँ के नवयुवकों को रोजगार नहीं मिल रहा था इसलिए वे हिटलर के नाजीवाद के कार्यक्रम की ओर आकृष्ट हुए। वर्साय संधि में जर्मनी का जो निःशस्त्रीकरण कर दिया गया हिटलर ने उसका विरोध किया इसलिए वहाँ के सैनिक भी उसका साथ देने के लिए उत्साहित थे वहाँ के राजकर्मचारी जनतांत्रिक पद्धति से असंतुष्ट थे इसलिए हिटलर को वहाँ के नवयुवकों सैनिकों तथा राज कर्मचारियों का भीसमर्थन प्राप्त हुआ।

8. जर्मनी की पारंपरिक राजनीतिक विचारधारा :-


 जर्मनी के इतिहास का प्रारम्भ राष्ट्रीय नायक से ही हुआ था। वहाँ की जनता अनुशासन प्रिय थी। वहाँ की पारम्परिक राजनीति अधिनायकवादी थी। वह शक्ति के शासन में विश्वास रखती थी। यह सब कुछ जर्मनी की जनता को हिटलर में स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा था।


नाजीवाद के उत्कर्ष परिणाम:-



1. एकता समझौताः-

जर्मनी में हिटलर के अभ्युदय के पश्चात्त प्रथम हलचल उसके तीन प्रमुख नजदीकी लघु मैत्री संघ के राष्ट्रों में हुई जो कि चेकोस्लोवाकिया, यूगोस्लाविया, रूमानिया थे। इन देशों ने हिटलर के भय से जेनेवा में निःशस्त्रीकरण सम्मेलन में भाग लेते वक्त "एकता समझौता" किया। जिसमें यह निश्चित हुआ कि इन तीनों देशों के विदेश मन्त्रियों की एक परिषद् का गठन किया जाए जिसमें वे अपने हितों को ध्यान में रखते हुए विचार संगोष्ठी कर सके। क्योंकि जर्मनी इन राष्ट्रों के प्रति घृणा का भाव रखता था।

2. हंगरी का सहयोग :

हंगरी का तत्कालीन प्रधानमंत्री गोम्वस भी नाजीवाद के प्रति सहानुभूति रखता था। हंगरी भी वर्साय संधि द्वारा उपेक्षित था और लघु मैत्री संघ के राष्ट्रों से नफरत करता था। इस कारण इन दोनों राष्ट्रों की विचारधारा एक-दूसरे से मिलती-जुलती थी। इसलिए हंगरी जर्मनी एक-दूसरे को अपना मित्र समझने लगे और जर्मनी को यह विश्वास हो गया कि अब यदि विश्व युद्ध हुआ तो उसे हंगरी का सहयोग मिलना संभव है।

3. जर्मनी पोलैण्ड समझौता :-

हिटलर के नाजीवाद के जर्मनी में सफल होने के पश्चात् पौलेण्ड को यह भय सताने लगा कि जर्मनी उस पर आक्रमण न कर दे क्योंकि वर्साय की संधि में मित्रराष्ट्रों द्वारा उसे जर्मनी का बहुत अधिक क्षेत्र प्राप्त हुआ था। उसे डर था कि हिटलर पोलिश गलियारे को समाप्त न कर दे। इस कारण उसने जर्मनी से मैत्री करने में ही अपना लाभ समझा। जर्मनी भी अपने आस-पास के राष्ट्रों को मित्र बनाने के लिए तलाश कर रहा था। इस कारण जनवरी 1934 को दोनों देशों में एक समझौते के साथ मित्रता हो गयी।

4. सोवियत रूस में क्रान्तिकारी परिवर्तन :-

रूस एक साम्यवादी राष्ट्र था। जर्मनी में साम्यवाद के विरोध में एक ऐसी संस्था अस्तित्व में आयी थी जो कि अधिनायकवादी थी। इस कारण रूस को अपनी असुरक्षा का भय सताने लगा। इस कारणउसने राष्ट्रसंघ की सदस्यता ग्रहण कर ली और अपनी विदेश नीति को सुदृढ़ करते हुए अमेरिका तथा फ्रांस से मित्रता करके चेकोस्लोवाकिया के साथ सुरक्षा संधि स्थापित कर ली।

5. इटली व फ्रांस में मैत्री :-

जर्मनी में हिटलर के उत्कर्ष के कारण, फ्रांस को अपनी सुरक्षा का भय सताने लगा उसने चेकोस्लोवाकिया, इटली व रूस से मित्रता स्थापित कर ली इनमें इटली व फ्रांस की मित्रता मुख्य थी जो कि लेवाल मुसोलिनी समझौता जनवरी 1935 से प्रारम्भ हुई। इस मैत्री ने चारों और हलचल उत्पन्न कर दी। किन्तु अपने स्वार्थों में अन्तर होने के कारण इन दोनों राष्ट्रों की मैत्री अधिक समय तक अस्तित्व में नहीं रह सकी।

6. ब्रिटेन की तुष्टिकरण की नीति : -

हिटलर साम्यवादियों का विरोधी था। इसलिए अमेरिका व ब्रिटेन इसमें सोवियत रूस के अपने उद्देश्यों की प्राप्ति प्रतीत हो रही थी। इस कारण उन्होंने जर्मनी के प्रति तुष्टिकरण की नीति अपनाई।

7. यूरोपीय राष्ट्रों में असुरक्षा का भय :-

जर्मनी में हिटलर के नाजी दल के उत्कर्ष के साथ ही सम्पूर्ण यूरोप में असुरक्षा का वातावरण स्पष्ट दिखाई देने लगा छोटे-छोटे राज्य ही नहीं अपितु महाशक्तियाँ भी हिटलर से भयभीत हो गई ।

8. द्वितीय महायुद्ध की पृष्ठभूमि का निर्माण :-

हिटलर के आक्रामक व्यक्तित्व के कारण लगभग सम्पूर्ण यूरोप भयभीत था और उन्हें आगामी युद्ध का विध्वस स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होने लगा।

9. पड़ोसी राष्ट्रों में रहने वाली जर्मन जातियों का जर्मनी में एकीकरण :-

हिटलर ने ऑस्ट्रिया डेंजिग, स्विट्जरलैण्ड,
चैकोस्लोवाकिया और बाल्टिक राज्यों में रहने वाली जर्मन जातियों को दूसरे राष्ट्रों की क्षमता से मुक्त कराकर उनका जर्मनी में एकीकरण कर लिया गया जबकि वर्साय की सन्धि में जर्मनी को एकीकरण से कई प्रकार से प्रतिबन्धित कर दिया गया था।

10. वर्साय की संधि का अंत व शस्त्रीकरण का आरम्भ :-


वर्साय संधि जर्मन जनता के लिए घोर अपमानित करने वाली थी। इसलिए हिटलर ने वर्साय की संधि की सभी शर्तों को रद्द कर दिया और उसने राष्ट्र संघ द्वारा आयोजित निःशस्त्रीकरण सम्मेलन में जाकर यह स्पष्ट कर दिया कि सभी राष्ट्रों को समानता दी जानी चाहिए। इसलिए उसने 14 अक्टूबर 1933 को निःशस्त्रीकरण का बहिष्कार करके राष्ट्र संघ की सदस्यता से भी इस्तीफा दे दिया और जर्मनी में शस्त्रीकरण की कार्यवाही शुरू कर दी।

11. रोम-बर्लिन-टोकियो धुरी :-

हिटलर मुसोलिनी को अपना मित्र बनाना चाहता था और यह संभव भी था क्योंकि जर्मनी व इटली की विचारधाराएं एवं हित समान थे आरम्भ में दोनों में मित्रता नहीं थी किन्तु अबीसीनिया काण्ड के कारण राष्ट्रसंघ में इटली के विरोध में ब्रिटेन, फ्रांस व रूस आ गये जिसके कारण राष्ट्रसंघ ने इटली पर बहुत से प्रतिबन्ध लगा दिये। इटली ने जर्मनी से मित्रता कर ली हिटलर यहीं आकांक्षा रखता था। इसलिये उसने मुसोलिनी को हर संभव मदद दी और उसने अबीसीनिया युद्ध में इटली को विजयी बनाकर उसके लिए अपने प्रति विश्वास को स्पष्ट कर दिया। इटली से मित्रता करने के उपरांत उसने जापान से मित्रता स्थापित करने का प्रयत्न किया उस समय रूस जर्मनी और जापान दोनों के साम्राज्य के विस्तार में बाधक था। इसिलिए दोनों देशों ने 21 नवम्बर, 1936 को "एन्टी कॉमिन्टर्न पैक्ट" पर हस्ताक्षर किये जिसमे दोनों ने रूस के साथ किसी भी प्रकार का राजनीतिक समझौता नहीं करने के लिए आश्वस्त किया और 6 नवम्बर 1937 को इटली ने भी उस पर हस्ताक्षर कर दिये और इस प्रकार रोम-बर्लिन-टोकियों धुरी का निर्माण हुआ।

12. पोलैंड पर आक्रमण और द्वितीय विश्वयुद्ध का आरम्भ

:- वर्साय की संधि में जर्मनी का बहुत सा भू- भाग पोलेंड को दे दिया गया था। जर्मनी अपने इस अपमान को भूल नहीं पाया था किन्तु कुछ कारणवश उसे सन् 1934 ई. में पोलेंड के साथ 10 वर्ष तक अनाक्रमण संधि करनी पड़ी थी। फिर भी पोलेंड इस बात से अनभिज्ञ नहीं था कि जर्मनी उस पर आक्रमण करेगा। उनकी यह शंका सत्य में परिणित हो गयी और जर्मनी ने पोलेण्ड पर आक्रमण कर दिया और यही से द्वितीय विश्व युद्ध का आरम्भ हुआ।




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