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इटली मे फासीवाद का उदय - कारण तथा परिणाम(Rise of Fascism in Italy - Causes and Consequences)

 

फासीवाद एक राजनीतिक विचारधारा है जिसका उदय मुसोलिनी द्वारा इटली को प्राचीन रोमन साम्राज्य की तरह पुन: महान बनाने की भूख के साथ हुआ। फासीवाद मुख्यत: अतिराष्ट्रवाद पर आधारित है, जो सम्यवाद, उदरवाद तथा मार्क्सवाद का विरोधी है।जिसका ध्यान लोगों को नियंत्रित करने के लिये सैन्य शक्ति के प्रयोग पर केंद्रित है। यह सैन्य आदर्शों पर आधारित है जिसमें साहस, आज्ञाकारिता, अनुशासन और शारीरिक दक्षता सम्मलित थी।

 

फासीवाद के उदय के कारण


1. जनता में असंतोष

प्रथम विश्वयुद्ध प्रारंभ होने के समय इटली की सरकार ने तटस्थ रहने का निश्चय किया था, किन्तु कालान्तर में उसने अपनी नीति में परिवर्तन करके मित्रराष्ट्रों के पक्ष में युद्ध में भाग लिया। युद्ध में सम्मिलित होने से पूर्व सन् 1915 में इटली ने मित्रराष्ट्रों के साथ लंदन की संधि की थी जिसमें मित्रराष्ट्रों ने युद्ध के पश्चात् इटली को टिराले , ट्राइटिनो, डलमेि शया, इस्ट्रिया तथा अल्बानिया का विशाल भाग प्रदान करने का आश्वासन दिया था। इसके अतिरिक्त इटली को आस्ट्रिया, जर्मनी व टर्की के कुछ क्षेत्र प्राप्त होने के लिए भी आश्वस्त कर दिया गया था। इन्हीं आश्वासनों के आधार पर इटली ने प्रथम विश्वयुद्ध में भाग लिया था। किन्तु युद्ध के पश्चात् पेरिस के शांति-सम्मेलन में इटली के प्रतिनिधि ऑरलेण्डो ने मित्रराष्ट्रों के समक्ष अपनी मांगें प्रस्तुत कीं तो अमेरिका के राष्ट्रपति बिल्सन ने लंदन की संधि को मानने तथा इटली की मांगों को स्वीकार करने से स्पष्ट इंकार कर दिया। इस प्रकार इटली को पेरिस शांति-सम्मेलन में कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ। इस घटना से इटली की जनता में तीव्र असंतोष व्याप्त हो गया। वे यह अनुभव करने लगे कि मित्रराष्ट्रों ने उनके देश के साथ विश्वासघात किया था। अतएव वहां के युवा मध्यम वर्ग में संगठन व एकता की भावना जाग्रत हुई और उन्होंने इस राष्ट्रीय अपमान व विश्वासघात का प्रतिशोध लेने के उद्देश्य से एक नवीन संगठन स्थापित करने का निश्चय किया।




2.शिथिल(ख़राब )अर्थव्यवस्था


युद्ध की अवधि में इटली की सरकार ने सेना तथा युद्ध-सामग्री पर अपनी वित्तीय क्षमता से बहुत अधिक धन व्यय किया था, जिसके कारण युद्धोत्तरकाल में इटली की आर्थिक स्थिति शाचे नीय हो गयी। राष्ट्रीय ऋण का भार बढ़ गया। मुद्रा का मूल्य दिन-प्रतिदिन गिरने से ,इटली की मुद्रा में 70 प्रतिशत गिरावट आ गई। व्यापार उद्योग तथा सार्वजनिक जीवन के क्षेत्र में अभूतपूर्व अव्यवस्था उत्पन्न हो गयी। बेरोजगारी बढ़ने से लोग भूखों मरने लगे। उनके पास न धन था, न व्यवसाय, न रोजगार और न भविष्य के लिए कोई योजना थी। इस देशव्यापी असंतोष व आर्थिक दुर्दशा के कारण लोगों ने तत्कालीन सरकार की नीतियों की कटु आलोचना की, तथा उन्होंने देश के राजनीतिक क्षेत्र में आमूल परिवर्तन करने का निश्चय किया। फ्रासिस्ट दल का उदय भी इसी असंतोष का परिणाम था।



3.मुसोलिनी का इटली की राजनीति में प्रवेशः

तात्कालीन परिस्थितियों में जब इटली की जनता के मन में असंतोष, आक्रोश व अराजकता व्याप्त थी। उस समय इटली की राजनीति में मुसोलिनी का प्रवेश हुआ। उसका उद्बोधन अत्यन्त सम्मोहक था जो कि लोगों को बहुत अधिक प्रभावित करता था। उसके प्रबल व्यक्तित्व से जनता आकर्षित होती थी। इस कारण जनता को मुसोलिनी में अपने इटली को उन्नत करने की प्रत्येक संभावना स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती दिखाई दी।


4. साम्यवाद से प्रभावित इटली

इटली में साम्यवाद काप्रभाव बढ़ रहा था। वहाँ की जनता के मन में वर्साय की सन्धि के प्रति असंतोष था। इस कारण साम्यवादी दल ने वहाँ की जनता को यह विश्वास दिलाया था कि वह इटली को सशक्त बनाएगा। किन्तु इसका फायदा फासिस्टवादी मुसोलिनी ने ले लिया और वहाँ की जनता मुसोलिनी के पक्ष में हो गई।

5. दार्शनिक हीगल की विचारधारा का प्रभाव

हीगल के विचारो की मान्यता थी कि वह व्यक्ति से ज्यादा राज्य को महत्ता देता था। उसके अनुसार व्यक्ति राज्य के अनुशासन में रहकर ही अपनी श्रेष्ठता की ओर अग्रसर हो सकता है उसने राज्य को ईश्वरीय रूप बताते हुए कहा कि उससे कभी भी त्रुटि नहीं हो सकती। ये सब विचारधाराएँ जर्मनी में प्रसारित हो रही थी जिसका लाभ मुसोलिनी को मिला और वहां की जनता ने उससे सहमति जताई।


6.तत्कालीन सरकार पर विश्वास न होना

इटली में उस समय की परिस्थितियों के कारण वहां की सरकार जनता सै अपना विश्वास खोती जा रही थी परिणामस्वरूप वो अपनी स्थिर सरकार बनाने में नाकाम रहे। इन परिस्थितियों में मुसोलिनी ने उन्हें स्थिर सरकार देने का विश्वास दिलाया।


फासीवाद की उदय का परिणाम 


1. अधिनायकवाद की स्थापना :- मुसोलिनी ने सत्ता में आते ही यह घोषित कर दिया कि "हम अनन्त शान्ति की मूर्खता को अस्वीकार करते है, हमें सदैव शक्ति सम्पन्न होना चाहिए" और इसके पश्चात् 1926 में उसने स्पष्ट कह दिया कि "हम भूमि के भूखे है क्योंकि हमारी जनसंख्या में वृद्धि हो रही है और हम ऐसा चाहते भी है।" शक्ति व अधिनायकवादी भावनाओं के द्वारा मुसोलिनी ने राष्ट्रसंघ को बहुत कमजोर बना दिया फलस्वरूप वैश्विक माहौल तनावग्रस्त हो गया।


2.साम्यवाद विरोधी आन्दोलन में तेजी

मुसोलिनी ने इटली में साम्यवाद के बढ़ते हुए प्रभाव का लाभ उठाकर ही जीत अर्जित की थी और इसके बाद वह रूस व साम्यवाद का विरोधी हो गया। परिणामस्वरूप इटली में साम्यवाद विरोधी आंदोलन में तीव्रता आयी।


3. प्रजातन्त्र विरोधी विचारों का प्रसार:-

इटली में मुसोलिनी के सत्ता में आते ही उसने इटली का विकास करने के लिए कठोर कदम उठाए। जिससे लोगों का प्रजातंत्र से बिल्कुल विश्वास उठ गया और पड़ोसी राष्ट्रों के भी अधिनायकवाद के पक्ष में विचार प्रबल होने लगे परिणामस्वरूप स्पेन व जर्मनी में भी अधिनायकवाद की स्थापना हो गई।

4. तुष्टिकरण की नीति :

मुसोलिनी के बढ़ते हुए प्रभाव से यूरोप के अधिकांश राष्ट्रों में भय का वातावरण परिलक्षित होने लगा और पूंजीवादी राष्ट्रों ने इटली के प्रति तुष्टिकरण की नीति अपनाई।

5. शक्तिशाली सेना का गठन :-

इटली की जनता में पेरिस शान्ति सम्मेलन के विरुद्ध असंतोष था क्योंकि इस सम्मेलन ने उसको वैश्विक जगत् में अपमानित किया था। इस कारण मुसोलिनी का अब सबसे प्रमुख उद्देश्य था कि वह पुनः वैश्विक जगत् में इटली की प्रतिष्ठा को कायम करें इस कारण सन् 1937 ई. में उसने अपने उद्बोधन में घोषित कर दिया कि-

"फासीवादी इटली का प्रमुख कर्तव्य अपनी समस्त जल, थल और वायु सेनाओं को हर समय तैयार रहने की स्थिति में अवस्थित करना है। हमें इतना तत्पर रहना होगा कि हम पाँच लाख व्यक्तियों को एक क्षण में पुनः शस्त्र सज्जित कर सके। तभी हमारे अधिकारों और हमारी मांगों को मान्यता प्राप्त होगी। इस घोषणा से स्पष्ट हो गया कि इटली अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहता है।"

6. अन्य राष्ट्रों के प्रति कूटनीति :-

मुसोलिनी जानता था किब्रिटेन व फ्रांस उसके प्रतिद्वन्द्वी है। इस कारण उसने उन दोनों राष्ट्रों को एक-दूसरे के प्रति तथा सोवियत रूस के विरूद्ध भड़काने के लिए षड्यंत्र रचा। पश्चिम के राष्ट्रो को कमजोर बनाने के लिए उसने जर्मनी का सहयोग लेकर "कॉमिन्टर्न विरोधी" समझौता किया। स्पेन को साम्यवाद से सुरक्षित करने के बहाने उसने ब्रिटेन व फ्रांस में भी हस्तक्षेप किया यह सब कार्य उसकी अन्य राष्ट्रों के प्रति कूटनीति का परिचय देती है।

7. लोसाने की सन्धि :-

यह सन्धि यूनान व इटली के मध्य सन् 1923 में हुई जिसमें उसने पेरिस शांति सम्मेलन में यूनान को दिये हुए अपने क्षेत्र (रोड्स व डोडेकमीज द्वीप) पुनः प्राप्त कर लिये।


8. इटली व फ्रांस में मतभेद :-

प्रथम महायुद्ध में इटली नेविजेता राष्ट्रों में अपना स्थान ग्रहण किया था किन्तु फ्रांस, ब्रिटेन व अमेरिका के विरोध के कारण उसे अपमान का सामना करना पड़ा। उसे उसके अपेक्षित क्षेत्र प्रदान नहीं किये गये व लूट का भी पर्याप्त हिस्सा प्रदान नहीं किया गया इस कारण फ्रांस व इटली में पहले से ही मतभेद थे। मुसोलिनी के सत्ता में आ जाने के बाद उसने भूमध्यसागर में फ्रांस के प्रभुत्व को चुनौती दी। उसने फ्रांस के अधिकृत कॉर्सिका, सेवॉय और नीस पर भी अपना दावा प्रस्तुत किया। भूमध्यसागरीय प्रदेश में एक इटालियन नौ-सैनिक अड्डे की स्थापना को लेकर भी विरोधी भाव उत्पन्न हुए। इस कारण उन दोनों राष्ट्रों के बीच मतभेद और भी गहरे हो गये।

लैंगसम के शब्दों में "युद्धोतर प्रारंभिक वर्षों में इटली के सबसे अधिक खतरनाक वैदेशिक सम्बन्ध फ्रांस के साथ रहे।"

9. इटली का अबिसीनिया पर आक्रमण


मुसोलिनी अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहता था। वह जानता था कि यह कार्य युद्ध व आक्रमण द्वारा ही पूरा किया जा सकता है। उसने इटली की जनता के मन में भी इस वृत्ति का विकास कर दिया था। सन् 1935 ई. तक अफ्रीका में एबीसीनिया, मिस्त्र, लाइबीरिया और दक्षिण अफ्रीका को छोड़कर पूरा महाद्वीप यूरोपीय शक्तियों के साम्राज्य का अंग था। इनमें इटली अबीसिनिया को ही प्राप्त करना चाहता था क्योंकि वह 1896 में ई में एडोवा में हुई हार का प्रतिशोध लेना चाहता था इसलिए उसने 3 अक्टूबर 1935 को अबीसीनिया पर आक्रमण कर उसे अधिगृहित कर लिया।



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