नर्मदा नदी पर सरदार सरोवर बांध परियोजना का उदघाटन 1961 में पंडित नेहरू ने किया था किन्तु तीन राज्य गुजरात , मध्य प्रदेश और राजस्थान के मध्य एक उपयुक्त जल वितरण नीति पर कोई सहमति नहीं बन पायी । 19653 सरकार नर्मदा जल विवाद न्यायाधिकरण का गठन किया , ताकि जल सम्बन्धी विवाद को हल करके परियोजना का कार्य शुरू किया जा सके । 1979 में न्यायाधिकरण सर्वसम्मति पर पहुँचा तथा नर्मदा घाटी परियोजना ने जन्म लिया । जिसमें नर्मदा नदी तथा उसकी 4134 नदियों पर दो शिाल बाँधों गुजरात में सरदार सरोवर बोध और मध्य प्रदेश में नर्मदा सागर बाँध , 28 मध्यम बाँध तथा 3.000 जल परियोजनाओं का निर्माण शामिल था ।1985 में इस परियोजना के लिए विश्व बैंक ने 450 करोड डॉलर का लोन देने की घोषणा की ।
सरकार के अनुसार इस परियोजना से मध्य प्रदेश , गुजरात , राजस्थान में सूखा ग्रस्त क्षेत्रों की 2.27 करोड हेक्टेयर भूमि की सिंचाई के लिए जल मिलेगा । बिजली का निर्माण होगा , पीने के लिए जल मिलेगा तथा क्षेत्र में बाढ़ को रोका जा सकेगा । नर्मदा परियोजना ने एक गज्मीर विवाद को जन्म दिया है । एक और इस परियोजना को समृद्धि और विकास का सूचक माना जा रहा है । जिसके परिणाम स्वस्थ सिंचाई मेयजल की आपूर्ति , बाढ़ का नियंत्रण , रोगार के नए अवसर , बिजली तथा सूखे से बचाय आदि लागों को प्राप्त करने की बात की जा रही है . यहीं दूसरी और अनुमान है कि इससे तीन राज्यों की 37,000 हेक्टेयर भूमि जल मगन हो जाएगी । जिसमें 13,000 हेक्टेयर वन भूमि है यह भी अनुमान है कि इससे 248 गाँवों के एक लाख से अधिक लोग विस्थापित होंगे । जिनमें 58 % लोग आदिवासी क्षेत्र के हैं ।
नर्मदा बचाओ आन्दोलन जो एक जन आन्दोलन के रूप में उभरा , कई समाजसेवियों , पर्यावरणविदों , छात्रों , महिलाओं , आदिवासियों , किसान तथा मानवाधिकार कार्यकर्ता का एक संगठित समूह बना । आन्दोलन ने विरोध के कई तरीके अपनाए जैसे- भूख हड़ताल , पद - यात्रा , समाचार - पत्रों के माध्यम से , तथा फिल्मी कलाकारों तथा हस्तियों को अपने आन्दोलन में शामिल कर अपनी बात आन लोगों तथा सरकार तक पहुँचाने की कोशिश की । इसके मुख्य कार्यकर्ताओं में मेधा पाटेकर के अलावा , अनिल पटेल , अरुधती राय , बाबा आम्टे आदि शामिल हैं । सम्पूर्ण परिवेश में देखें तो नर्मदा बचाओ आन्दोलन सफल रहा इसने एक ओर बाँध द्वारा पर्यावरण हो होने वाली हानि तथा दूसरी ओर विस्थापित हुए लोगों के दर्द को आम आदमी तथा सरकार को सुनाने की सफल कोशिश की
परिणामस्वरूप केन्द्रीय पर्यावरण तथा वन मंत्रालय ने पर्यावरण की सुरक्षा के लिए अनेक दिशा - निर्देश लागू करने को कहा । उच्चतम न्यायालय ने विस्थापित लोगों के उचित पुनर्वास की स्पष्ट नीति लागू करने के आदेश दिए । साथ ही इसने संदेश दिया है कि आम आदमी यदि संगठित हो तो राज्य तथा व्यावसायिक हितों को अपने अधिकारों के प्रति चेताया जा सकता है अंत में इसने प्रचलित विकास के मॉडल को चुनौती दी है तथा देश के समक्ष पर्यावरण आधारित विकास का विकल्प पेश किया ।
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