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भाषा के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन।(Reorganization of states on the basis of language)

 औपनिवेशिक शासन के समय प्रांतों की सीमाएँ प्रशासनिक सुविधा लिहाज से तय की गई थी या विटिश सरकार ने जिसने क्षेत्र को जीत लिया हो उतना क्षेत्र एक अलग प्रांत मान लिया जाता का प्रांतों की सीमा इस बात से भी तय होती थी कि किसी रजवाड़े के अंतर्गत कितना इलाका शामिल है ।हमारी राष्ट्रीय सरकार ने ऐसे सीमांकन को बनावटी मानकर खारिज कर दिया । उसने भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन का वायदा किया ।

 सन् 1920 में काग्रेस का नागपूर अधिवेशन हुआ था । दरअसल , इसके बाद से ही इस सिद्धांत को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने मान लिया था कि राज्यों का पुनर्गठन भाषा के आधार पर होगा । अनेक प्रांतीय कांग्रेस - समितियों को भाषाई इलाके के आधार बनाया गया था और ये समितियों ब्रिटिश इंडिया के प्रशासनिक विभाजन को अपने कामकाज में नहीं बरतती थीं

आजादी और बँटवारे के बाद स्थितियाँ बदली । हमारे नेताओं को चिंता हुई कि अगर भाषा के आधार पर प्रांत बनाए गए तो इससे अव्यवस्था फैल सकती है तथा देश के टूटने का खतरा पैदा हो सकता है हमारे नेताओं को यह भी लग रहा था कि भाषावार राज्यों के गठन में दूसरी सामाजिक - आर्थिक चुनौतियों से ध्यान भटक सकता है जबकि देश इन दुनौतियों को चपेट में है ।

 केंद्रीय नेतृत्व ने इस मसले को स्थगित करने का फैसला किया । रजवादों का मसला अभी हल नहीं हुआ था । बंटवारे की यादें अभी ताशा थीं केंद्रीय नेतृत्व के इस फैसले का स्थानीय नेताओं और लोगों ने चुनौती दौ पुराने महास प्रांत के तलुग - भाषी क्षेत्रों में विरोध भड़क उठा पुराने मद्रास प्रांत में आज के तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश शामिल थे इसके कुछ हिस्सं मौजूदा केरल एवं कर्नाटक में भी हैं विशाल आंध आदोलन ( आंध्र प्रदेश नाम से अलग राज्य बनाने के लिए चलाया गया आदोलन ) ने मांग की कि मद्रास प्रांत के तेलुगुभाषी इलाकों को अलग करके एक नया राज्य आंध्र प्रदेश बनाया जाए । तेलुग - भाषी क्षेत्र की लगभग सारी राजनीतिक शक्तियों मद्रास प्रांत के भाषाई पुनर्गठन के पक्ष में थीं । केंद्र सरकार ' हाँ - ना ' की दुविधा में था और उसकी इस मनोदशा में इस आंदोलन ने जोर पकड़ा । कांग्रेस के नेता और दिग्गज गाँधीवादी , पोट्टी श्रीरामुल , अनिश्चितकालीन भूख - हड़ताल पर बैठ गए । 56 दिनों को भूख हड़ताल के बाद उनकी मृत्यु हो गई । इससे बड़ी अव्यवस्था फैली और आध्र प्रदेश में जगह - जगह हिसक घटनाएँ हुई । लोग बड़ी संख्या में सड़कों पर निकल आए । पुलिस फायरिंग में अनेक लोग घायल हुए चा मारे गए । मद्रास अनेक विधायकों ने विरोध जताते हुए अपनी सीट से इस्तीफा दे दिया । आखिरकार 1952 के दिसंबर में प्रधानमंत्री ने आंध्र प्रदेश नाम से अलग राज्य बनाने की घोषणा की।

आंध्र के गठन के साथ ही देश के दूसरे हिस्सों में भी भाषाई आधार राज्यों को गठित करने का संघर्ष चल पड़ा । इन संवर्षों से वाध्य होकर केंद्र सरकार ने 1953 में राज्य पुनर्गठन आयोग बनाया । इस आयोग का काम राज्यों के सीमांकन के मामले पर गौर करना था । इसने रिपोर्ट में स्वीकार किया कि राज्यों की सीमाओं का निधारण वहाँ बोली जाने वाली भाषा आधार पर होना चाहिए । इस आयोग की रिपार्ट के आधार पर 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम पास हुआ । इस अधिनियम के आधार पर 14 राज्य और 6 केंद्र - शासित प्रदेश बनाए गए।




भाषावार राज्यों के पुनर्गठन की घटना को आज 50 साल से भी अधिक समय हो गया । हम कह सकते हैं कि भाषाई राज्य तथा इन राज्यों के गठन के लिए चले आंदोलनों ने लोकतांत्रिक राजनीति तथा नेतृत्व की प्रकृति को बुनियादो रूपों में बदला है । राजनीति और सत्ता में भागीदारी का एक लोटे - से अंग्रेजीभाषी अभिजात तबके के लिए ही नहीं , बाकियों के लिए भी खुल चुका था भाषावार पुनर्गठन से राज्यों के सीमांकन के लिए एक समरुप आधार मिला । बहुतों की आशंका के विपरीत देश की एकता और ज्यादा मजबूत हुई । सबसे बड़ी बात यह कि भाषावार राज्यों के पुनर्गठन से विभिन्नता के सिद्धांत को स्वीकृति मिली ।


निष्कर्ष 

भाषावार राज्यों को पुनर्गठित करने के सिद्धांत को मान लेने का अर्थ यह नहीं था कि सभी राज्य तत्काल ' भापाई राज्य में तब्दील हो गए । एक प्रयोग द्विभाषी राज्य बंबई के रूप में किया गया जिसमें गुजराती और मराठी भाषा बोलने वाले ल्दाग थे एक जन - आदोलन के बाद सन् 1960 में महाराष्ट्र और गुजरात राज्य बनाए गए । पंजाब में भी हिन्दी - भाषी और पंजाबी - भाषी दो समुदाग थे । पंजाबी - भाषी लोग अलग राज्य की मांग कर रहे थे । बहरहाल बाकी राज्यों की तरह उनकी मांग 1956 में ही नहीं मानी गई । दस साल बाद यानी 1966 में पंजाबी - भाषी इलाके को पंजाब राज्य का दर्जा दिया गया और मृहत्तर पंजाब से अलग करके हरियाणा और हिमाचल प्रदेश नाम के राज्य बनाए गए । 1972 में एक बार फिर राज्यों के पुनर्गठन का एक बड़ा प्रचारा पूर्वांतर में हुआ । असम से अलग करके 1972 में मेघालय बनाया गया इसी साल मणिपुर और त्रिपुरा भी अलग राज्य के रूप में अस्तित्व में आए । मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश 1987 में बजूर में आए जबकि नगालैंड इससे कहीं पहले यानि 1963 में ही राज्य बन गया था बहरहाल ,राज्यों नके पुनर्गठन में सिर्फ भाषा को आधार बनाया गया हो ऐसौ बात नहीं । बाद के वर्षों में अनेक उप - क्षेत्रा ने अलग क्षेत्रीय संस्कृति अथवा विकास के मामले में क्षेत्रीय असंतुलन के सवाल उठाकर अलग राज्य बनाने की मांग की । ऐसे तीन राज्य छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और झारखण्ड - सन् 2000 में बने । रान्यों के पुनर्गठन की कथा अभी समाप्त नहीं हुई है । देश के अनेक इलाकों में छोट - मोटे अलग राज्य बनाने की मांग को लेकर आदोलन चल रहे । महाराष्ट्र में विदर्भ , पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हरित प्रदेश और पश्चिम बंगाल के उत्तरी भाग में नए राज्य बनाने के ऐसे आदोलन चल रहे है ।



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