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सोवियत संघ(USSR) क्या है - विघटन के कारण तथा परिणाम

समाजवादी सोवियत गणराज्य(USSR)

सोवियत संघ को आधिकारिक तौर पर यूनियन ऑफ सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक (USSR) के रूप में जाना जाता था यह विश्व का पहला साम्यवादी (Communist) राज्य था जिसकी स्थापना वर्ष 1922 में की गई थी।

समाजवादी सोवियत गणराज्य (यूएस.एस.आर.) रूस में हुई 1917 की समाजवादी क्रांति के बाद अस्तित्व में आया। यह क्रांति पूँजीवादी व्यवस्था के विरोध में हुई थी और समाजवाद के आदर्शों और समतामूलक समाज की ज़रूरत से प्रेरित थी। यह मानव इतिहास में निजी संपत्ति की संस्था को समाप्त करने और समाज को समानता के सिद्धांत पर सचेत रूप से रचने की सबसे बड़ी कोशिश थी। ऐसा करने में सोवियत प्रणाली के निर्माताओं ने राज्य और 'पार्टी की संस्था को प्राथमिक महत्त्व दिया। सोवियत राजनीतिक प्रणाली की धुरी कम्युनिस्ट पार्टी थी। इसमें किसी अन्य राजनीतिक दल या विपक्ष के लिए जगह नहीं थी। अर्थव्यवस्था योजनाबद्ध और राज्य के नियंत्रण में थी।

दूसरे विश्वयुद्ध के बाद पूर्वी यूरोप के देश सोवियत संघ के अंकुश में आ गये। सोवियत सेना ने इन्हें फासीवादी ताकतों के चंगुल से मुक्त कराया था। इन सभी देशों की राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था को सोवियत संघ की समाजवादी प्रणाली की तर्ज पर ढाला गया। इन्हें ही समाजवादी खेमे के देश या 'दूसरी दुनिया' कहा जाता है। इस खेमे का नेता समाजवादी सोवियत गणराज्य था।

सोवियत संघ का विघटन

दूसरे विश्वयुद्ध के बाद सोवियत संघ महाशक्ति के रूप में उभरा। अमरीका को छोड़ दें तो सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था शेष विश्व की तुलना में कहीं ज्यादा विकसित थी। सोवियत संघ की संचार प्रणाली बहुत उन्नत थी। उसके पास विशाल ऊर्जा-संसाधन था जिसमें खनिज-तेल, लोहा और इस्पात तथा मशीनरी उत्पाद शामिल हैं। सोवियत संघ के दूर-दराज के इलाके भी आवागमन की सुव्यवस्थित और विशाल प्रणाली के कारण आपस में जुड़े हुए थे। सोवियत संघ का घरेलू उपभोक्ता-उद्योग भी बहुत उन्नत था और पिन से लेकर कार तक सभी चीजों का उत्पादन वहाँ होता था। हालांकि सोवियत संघ के उपभोक्ता उद्योग में बनने वाली वस्तुएँ गुणवत्ता के लिहाज से पश्चिमी देशों के स्तर की नहीं थीं लेकिन सोवियत संघ की सरकार ने अपने सभी नागरिकों के लिए एक न्यूनतम जीवन स्तर सुनिश्चित कर दिया था। सरकार बुनियादी जरूरत की चीजें मसलन स्वास्थ्य-सुविधा, शिक्षा, बच्चों की देखभाल तथा लोक-कल्याण की अन्य चीजें रियायती दर पर मुहैया कराती थी। बेरोजगारी नहीं थी। मिल्कियत का प्रमुख रूप राज्य का स्वामित्व था तथा भूमि और अन्य उत्पादक संपदाओं पर स्वामित्व होने अलावा नियंत्रण भी राज्य का ही था।

बहरहाल, सोवियत प्रणाली पर नौकरशाही का शिकंजा कसता चला गया। यह प्रणाली सत्तावादी होती गई और नागरिकों का जीवन कठिन होता चला गया। लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की आजादी नहीं होने के कारण लोग अपनी असहमति अक्सर चुटकुलों और कार्टूनों में व्यक्त करते थे। । इसमें कोई संदेह नहीं है कि सोवियत संघ की राजनीतिक-आर्थिक संस्थाएँ अंदरुनी कमजोरी के कारण लोगों की आकांक्षाओं को पूरा नहीं कर सकीं। सोवियत संघ प्रशासनिक और राजनीतिक रूप से गतिरुद्ध हो चुका था। सोवियत संघ में एक दल यानी कम्युनिस्ट पार्टी का शासन था सोवियत संघ पर कम्युनिस्ट पार्टी ने 70 सालों तक शासन किया और इस दल का सभी संस्थाओं पर गहरा अंकुश था। यह दल जनता के प्रति जवाबदेह नहीं था। इससे भी बुरी बात यह थी कि 'पार्टी' के अधिकारियों को आम नागरिक से ज्यादा विशेषाधिकार मिले हुए थे। लोग अपने को राजव्यवस्था और शासकों से जोड़कर नहीं देख पा रहे थे और सरकार का जनाधार खिसकता चला गया। जनता ने अपनी संस्कृति और बाकी मामलों की साज-संभाल अपने आप करने के लिए 15 गणराज्यों की आपस में मिलाकर सोवियत संघ बनाया था। लेकिन पार्टी ने जनता की इस इच्छा को पहचानने से इंकार कर दिया। हालांकि सोवियत संघ के नक्शे में रूस, संघ के पन्द्रह गणराज्यों में से एक था लेकिन वास्तव में रूस का हर मामले में प्रभुत्व था। अन्य क्षेत्रों की जनता अक्सर उपेक्षित और दमित महसूस करती थी।

हथियारों की होड़ में सोवियत संघ ने समय-समय पर अमरीका को बराबर की टक्कर दी लेकिन उसे इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी। सोवियत संघ प्रौद्योगिकी और बुनियादी डाँचे (मसलन परिवहन, ऊर्जा) के मामले में पश्चिमी देशों की तुलना में पीछे रह गया। सोवियत संघ ने अपने संसाधनों का अधिकांश परमाणु हथियार और सैन्य साजो-सामान पर लगाया। उसने अपने संसाधन पूर्वी यूरोप के अपने पिछलग्गू देशों के विकास पर भी खर्च किए ताकि वे सोवियत नियंत्रण में बने रहें। इससे सोवियत संघ पर गहरा आर्थिक दबाब बना और सोवियत व्यवस्था इसका सामना नहींकर सकी। कई सालों तक अर्थव्यवस्था गतिरुद्ध रही। इससे उपभोक्ता-वस्तुओं की बड़ी कमी हो गई और सोवियत संघ की आबादी का एक बड़ा हिस्सा अपनी राजव्यवस्था को शक की नज़र से देखने लगा; उस पर खुलेआम सवाल खड़े करने शुरू किए।लेकिन सबसे बड़ी बात तो यह थी कि सोवियत संघ अपने नागरिकों की राजनीतिक और आर्थिक आकांक्षाओं को पूरा नहीं कर सका। सोवियत संघ ने 1979 में अफगानिस्तान में हस्तक्षेप किया। इससे सोवियत संघ की व्यवस्था और भी कमजोर हुई। हालांकि सोवियत संघ में लोगों का पारिश्रमिक लगातार बढ़ा लेकिन उत्पादकता और प्रौद्योगिकी के मामले में वह पश्चिम के देशों से बहुत पीछे छूट गया। इससे हर तरह की उपभोक्ता - वसत की कमी हो गई। खाद्यान्न का आयात साल-दर-साल बढ़ता गया। 1970 के दशक के अंतिम वर्षों में यह व्यवस्था लड़खड़ा रही थी और अंतत: ठहर सी गयी।


इसी के साथ एक और बात हुई। पश्चिमी मुल्कों की तरक्की के बारे में सोवियत संघ के आम नागरिकों की जानकारी बढ़ी। वे अपनी राजव्यवस्था और पश्चिमी देशों की राजव्यवस्था के बीच मौजूद अंतर भांप सकते थे। सालों से इन लोगों को बताया जा रहा था कि सोवियत राजव्यवस्था पश्चिम के पूँजीवाद से बेहतर है लेकिन सच्चाई यह थी कि सोवियत संघ पिछड़ चुका था और अपने पिछड़ेपन की पहचान से लोगों को राजनीतिक-मनोवैज्ञानिक रूप से धक्का लगा ।

गतिरुद्ध प्रशासन, भारी भ्रष्टाचार और अपनी गलतियों को सुधारने में व्यवस्था की अक्षमता, शासन में ज्यादा खुलापन लाने के प्रति अनिच्छा और देश की विशालता के बावजूद सत्ता का केंद्रीकृत होना इन सारी बातों के कारण आम जनता अलग-थलग पड़ गई।
यह सभी सोवियत संघ के विघटन का कारण बने।


सोवियत संघ के विघटन के परिणाम :-

1.शीतयुद्ध का संघर्ष समाप्त हो गया।
2. एक ध्रुवीय विश्व अर्थात् अमरीकी वर्चस्व का उदय ।
3. हथियारों की होड़ की समाप्ति
4. सोवियत खेमे का अंत और 15 नए देशों का उदय।
5.रूस सोवियत संघ का उत्तराधिकारी बना ।
6. विश्व राजनीति में शक्ति संबंध परिवर्तित हो गए ।
7. समाजवादी विचारधारा पर प्रश्नचिन्ह या पूँजीवादी उदारवादी व्यवस्था का वर्चस्व।




समाजवादी सोवियत गणराज्य और भारत

शीतयुद्ध के दौरान भारत और सोवियत संघ के संबंध बहुत गहरे थे। इससे आलोचकों को यह कहने का अवसर भी मिला कि भारत सोवियत खेमे का हिस्सा था। इस दौरान भारत और सोवियत संघ के संबंध बहुआयामी थे।

आर्थिक - सोवियत संघ ने भारत के सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को ऐसे वक्त में मदद की जब ऐसी मदद पाना मुश्किल था। सोवियत संघ ने भिलाई, बोकारो और विशाखापट्टनम के इस्पात कारखानों तथा भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स जैसे मशीनरी संयंत्रों के लिए आर्थिक और तकनीकी सहायता दी। भारत में जब विदेशी मुद्रा की कमी थी सोवियत संघ ने रुपये को माध्यम बनाकर भारत के साथ
व्यापार किया।

राजनीतिक - सोवियत संघ ने कश्मीर मामले पर संयुक्त राष्ट्रसंघ में भारत के रुख को समर्थन दिया। सोवियत संघ ने भारत के संघर्ष के गाड़े दिनों, खासकर सन् 1971 में पाकिस्तान से युद्ध के दौरान मदद की। भारत ने भी सोवियत संघ की विदेश नीति का अप्रत्यक्ष, लेकिन महत्त्वपूर्ण तरीके से समर्थन किया।

सैन्य - भारत को सोवियत संघ ने ऐसे वक्त में सैनिक साजो-सामान दिए जब शायद ही कोई अन्य देश अपनी सैन्य टेक्नालॉजी भारत को देने के लिए तैयार था। सोवियत संघ ने भारत के साथ कई ऐसे समझौते किए जिससे भारत संयुक्त रूप से सैन्य उपकरण तैयार कर सका।

संस्कृति - हिंदी फिल्म और भारतीय संस्कृति सोवियत संघ में लोकप्रिय थे। बड़ी संख्या में भारतीय लेखक और कलाकारों ने सोवियत संघ की यात्रा की।


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