संसद का मूल कार्य क़ानून बनाना , इनमें संशोधन करना अथवा इनका निरसन काना है । संसद के संबंध में कानून बनाने की प्रक्रिया या विधायी प्रक्रिया को ऐसी प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसके माध्यम से किसी विधायी प्रस्ताव को , जो संसद के समक्ष लाया गया हो देश के क़ानून मे रूपांतरीत किया जाता है । सभी विधायी प्रस्तावों को विधेयक के रूप में संसद के समक्ष लाया जाता है। विधेयक संविधि का ही प्रारूप होता है और कोई भी विधेयक , तब तक कानून नहीं बन सकता है जब तक उसे संसद की दोनों सदनो(लोकसभा और राज्यसभा )की स्वीकृति तथा राष्ट्रपति की अनुमति नहीं मिल जाती ।
कानून बनाने की प्रक्रिया संसद की दोनों सदनो में से किसी भी सदन में विधेयक के पुरःस्थापित(पेश)किए जाने से आरंभ होती है विधेयक मंत्री द्वारा या किसी सदस्य द्वारा पुर: स्थापित(पेश) किया जा सकता है । मंत्री द्वारा पुर:स्थापित(पेश) किए जाने की स्थिति में इसे सरकारी विधेयक कहा जाता है तथा किसी सदस्य (जो मंत्री मण्डल का हिस्सा ना हो ) द्वारा पुरःस्थापित(पेश) किये जाने की स्थिति में इसे गैर सरकारी विधेयक या निजी विधेयक कहा जाता है
सदन मे विधेयक को सूचना
2. यदि कोई मंत्री को विधेयक पुर:स्थापित(पेश) करना चाहता/चाहती है तो उसे विधेयक के पुर:स्थापन(पेश करने ) के लिए सभा की अनुमति आशय को लिखित सूचना सात दिन पहले देनी पड़ती है यदि अध्यक्ष चाहे तो पुरःस्थापन(पेश करने ) की अनुमति मांगने के प्रस्ताव को इससे कम अवधि की सूचना पर स्वीकार कर सकता है ।
विधेयक का परिचालन
3. किसी विधेयक को पुरस्थापन(पेश करने ) हेतु कार्यसूची में तब तक शामिल नहीं किया जाता है जब तक विधेयक की प्रतिलिपि पुरःस्थापित(पेश) किये जाने की प्रस्तावित तिथि से कम से कम दो दिन पूर्व इसे सदस्यो द्वारा उपयोग हेतु उपलब्ध नहीं कराया जाता है । तथापि पूर्व परिचालन की या शर्त विनियोग विधेयकों , वित्त विधेयको तथा ऐसे गोपनीय विधेयकों जिन्हे कार्यसूची में शामिल नहीं किया है, पर लागू नहीं होती है तथापि , अध्यक्ष किसी विधेयक को पूर्व परिचालन के बिना अथवा परिचालन के पश्चात् दो दिन की अवधि के भीतर पुर : स्थापित(पेश)करने को अनुमति दे सकता है यदि संबंधित मंत्री, अध्यक्ष के विचारार्थ ज्ञापन में इस बात के पर्याप्त कारण देता है कि विधेयक को प्रतियों के परिचालन के पश्चात् अथवा बिना पूर्व परिचालन के दो दिन से पहले पुर:सस्थापित किया जाना क्यों प्रस्तावित है ।
विधेयकों का पारित किया जाना
4. विधेयक को राष्ट्रपति की अनुमति हेतु प्रस्तुत करने से पूर्ण संसद की दोनों सभाओं अर्थात् लोक सभा और राज्य सभा में इसके तीन वाचन(चरण )होते है ।
प्रथम वाचन(चरण )
5. प्रवन वाचन(चरण ) में सभा में किसी विधेयक को पुर:स्थापित(पेश )करने की अनुमति के प्रस्ताव का उल्लेख होता है जिसके स्वीकृत होने पर विधेयक को पुर: स्थापित किया जाता है । यदि कोई विधेयक राज्य सभा में मूल रूप से पर स्थापित तथ पारित किया जाता है तो प्रथम वाचन(चरण ) में इस विधेयक को राज्य सभा द्वारा पारित रुप में सभा पटल पर रखा जाना कहा जा सकता है।
विधेयक के पुर:स्थापन(पेश करने ) के विरोध के बारे में प्रक्रिया
6. विधेयक के पुरस्थापित(पेश )किये जाने के प्रस्ताव का किसी भी सदस्य द्वारा सामान्य आधारों पर या इस आधार पर विरोध किया जा सकता है कि यह विधेयक ऐसे विधान का सूत्रपात करता है जो सभा की विधायी क्षमता से परे है । कोई सदस्य वो किसी विधेयक के पुर : स्थापन(पेश करने )का विरोध करना चाहता है तो उसे उस दिन 10.00 बजे तक अपने विरोध को स्पष्ट और सुष्यात करते हुए सूचना देनी होगी जिस दिन विधेयक को पुर:स्थापित(पेश )किये जाने हेतु कार्यसूची में शामिल किया जाना है । यदि विधेयक को पुर: स्थापित(पेश ) किये जाने की अनुमति का विरोध होता है तो अध्यक्ष प्रस्ताव का विरोध करने वाले सदस्य को तथा प्रस्ताव पेश करने वाले मंत्री को संक्षिप्त वक्तव्य देने की अनुमति दे सकता है । तत्पश्चात् प्रस्ताव सभा के मतदान के लिए रखा जाता है । तथापि , यदि प्रस्ताव का विधायी क्षमता के आधार पर विरोध किया जाता है तो अध्यक्ष इस पर पूर्ण चर्चा की अनुमति दे सकता है । लोक सभा की यह स्वीकार्य प्रथा है कि अध्यक्ष इस प्रश्न पर कोई विनिर्णय नहीं देता है कि कोई विधेयक संवैधानिक रूप से सभा की विधायी क्षमता के भीतर है या नहीं । सभा किसी विधेयक को अधिकारिता के विशिष्ट प्रश्न के संबंध में भी कोई निर्णय नहीं लेती है । वाद - विवाद के पश्चात् अध्यक्ष विधेयक को पुर:स्थापित(पेश ) किये जाने की अनुमति के प्रस्ताव को सभा में मतदान के लिए रखता है।
राजपत्र में विधेयकों का प्रकाशन
7. विधेयक को पुरःस्थापित किले जाने के पश्चात् इसे भारत के राजपत्र में प्रकाशित किया जाता है । तथापि , विधेयक को सभा मे पुरःस्थापित(पेश ) किये जाने से पूर्व विधेयक के प्रभारी मंत्री के अनुरोध पर, अध्यय यदि भारत के राजपत्र में इसके प्रकाशन को अनुमति देता है तो इसे भारत के राजपत्र में प्रकाशित किया जा सकता है यदि विधेयक के पुर: स्थापित(पेश ) किये जाने से पूर्व इसे भारत के राजपत्र में प्रकाशित कर दिया जाता है तो सदस्य बाद में सभा में इसके पुर:स्थापित(पेश ) किये जाने का विरोध नहीं कर सकता है । यह आवश्यक नहीं है कि विधेयक के पुरःस्थापित(पेश ) किये जाने के प्रस्ताव को पेश किया जाए जिसे अध्यक्ष के आदेशों के अंतर्गत भारत के राजपत्र में पहले ही प्रकाशित किया जा चुका है ऐसे विधेयक का आगामी चरण पुर:स्थापित(पेश ) किया जाना है।जो पुरःस्थापित किर जाने की अनुमति से भिन्न है तथापि , विधेयक में , इसके राजपत्र में प्रकशित किये जाने के पश्चात् यदि , कोई परिवर्तन किया जाता है तो यह एक नया विधेयक बन जाता है और विधेयक को पुर : स्थापित(पेश ) किये जाने की अनुमति का प्रस्ताव उसी तरह किया जाता है जैसाकि अन्य विधेयक के मामले में किया जाना है
वे विधेयक जो केवल लोक सभा में ही पुरस्थापित किये जा सकते ।
B. कोई भी विधेयक संसद को किसी भी सभा में पुरस्थापित(पेश ) किया जा सकता है तथापि , धन विधेयक को राज्य सभा में पुर:स्थापित(पेश ) नहीं किया जा सकता है । इसे राष्ट्रीयपति की पूर्व सिफारिश से केवल लोकसभा में पुर : स्थापित(पेश ) किया जा सकता है यदि यह प्राण उठता है कि कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं तो इस संबंध में अध्यक्ष का निर्णय अंतिम होता है
9. धन विधेयक की तरह मे विधेयक जो अन्य बातों के साथ - साथ अनुच्छेद 110 के खंड ( 1 ) के उप - खंड ( क ) में ( च ) के उपबंध के अनर्गत आते है, को भी राज्य सभा में पुरःस्थापित(पेश ) नहीं किया जा सकता है इन्हें भी राष्ट्रपति की सिफारिश पर केवल लोक सभा में पुन : स्थापित(पेश ) किया जा सकता है । तथापि , धन विधेयकों के संबंध में अन्य निर्वधन ऐसे विषयों पर लागू नहीं होते है
विधेयकों का विभागों से सम्बद्ध स्थायी समितियों को सौंपा जाना
10. विभागों से ससबद्ध स्थायी समितियों का एक महत्वपूर्ण कार्य ऐसे विधेयक को जिन्हें दोनों सभाओं में से किसी भी सभा में पुरःस्थापित(पेश ) किया गया हो की जाच करना है जो राज्य सभा के सभापति अथवा लोकसभा के अध्यक्ष द्वारा यथास्थिति , सौपे गए है तथा इस पर निर्धारित अवधि में प्रतिवेदन प्रस्तुत करना होता है । सामान्यतः समिति को प्रतिवेदन प्रस्तुत करने हेतु तीन माह का समय दिया जाता है विद्यमान प्रक्रिया के अनुसार सामान्यता अध्यादेश का स्थान लेने वाले विधेयकों , पराने कानुनों का निरसन करने वाले विधेयकों , विनियोग विधेयको , वित्त विधेयकों और तकनीकी अधया सधारणा प्रकृति के विधेयकों के अलावा सभी सरकारी विधेयकों की जांच करने और उन पर प्रतिवेदन देने के लिए संबंधित विभागों से सबद्ध स्थायी समितियों को भेजा जाता है ।
स्थायी समितियों के प्रतिवेदन सलाहकारी स्वरुप के होते है और उन्हें समितियों की सुविचारिक राय माना जाता है यदि सरकार समिति की किसी सिफारिश को स्वीकार करती है, वह विधेयक पर विचार किये जाने के प्रक्रम में सरकारी संशोधन ला सकती है अथवा स्थायी समिति द्वारा प्रतिवेदित विधेयक वापस ले सकती है और स्थायी समिति की ऐसी सिफारिश को जो सरकार को स्वीकार्य हो समाहित करने के पश्चात् नया व्यापक विधेयक ला सकती है ।
द्वितीय वाचन
11.विधेयक का द्वितीय वाचन दो प्रक्रमों में होना है
द्वितीय वाचन का पहला प्रक्रम
12. पहले प्रक्रम में विधेयक के सिदान्तों और इसके उपबंधों पर सामान्यत निम्नलिखित में से कोई एक प्रस्ताव कि विधेयक पर विचार किया जाए अथवा , यह कि विधेयक सभा की प्रवर समिति को सौंपा जाए अथवा यह कि विधेयक दोनों सभाओं को संयुक्त समिति को दूसरी सब की सामति से सौंपा जाए अथवा यह भी कि विधेयक पर लोगों की राय जानने के उद्देश्य से इसे परिचालित किया जाए , शामिल है । तथापि , धन विधेयक दोनों सभाओं को संयुक्त समिति को सौंपा नहीं जा सकता है।
इस क्रम में , लोक सभा को प्रक्रिया तथा कार्य संचालन नियमों के नियम 75 में किए गए उपबंध के अनुसार मंत्री द्वारा पेश किये गये प्रस्ताव पर किसी सदस्य व संशोधन का प्रस्ताव भी पेश किया जा सकता है
विधेयक , राज्य सभा में उदभूत और पारित होने की दशा में , यह प्रस्ताव कि राज्य सभा द्वारा यथापारित विधेयक पर विचार किया जाए , ही पेश किया जा सकता है । इस मामले में , यदि विधेयक पहले दो- सभाओं को संयुक्त समिति को सौंपा नहीं गया है तो कोई सदस्य संशोधन पेश कर सकता है कि विधेयक सभा की प्रवर समिति को सौंपा जाए
प्रवर / संयुक्त समिति के समक्ष विधेयक
13. यदि कोई विधेयक किसी प्रवर अथवा संयुक्त समिति को सौंपा जाता है , तो वह विधेयक पर सभा की ही भांति खण्ङ वार विचार करती हैं समिति के सदस्यों द्वारा विभिन्न पदों में संशोधन पेश किये जा सकते हैं प्रवर समिति अथवा दोनों सभाओं की संयुक्त समिती जिसे विधेयक पर विचार करने का कार्य सौंपा गया है , एक प्रेस विज्ञप्ति करती है और आम जनता के साथ साथ विशेषज्ञता प्राप्त हित समूहों से आपन आजित करती है ताकि समिति के समय समग्रीया और दृष्टिकोण रखे जा सकें । समिति विशेषज्ञ साक्ष्य तथा इस उपाय द्वारा प्रभावित विशेष हित समूहों के प्रतिनिधियों की राय भी सुन सकता है ।
जनता की राय प्राप्त करने के लिए विधेयक परिचालित किया
14. यदि किसी विधेषक को जमता की राय जानने के लिए परिचालित किया जाता है तो ऐसी राय राज्य सरकार के अभिकरण के माध्यम से प्राप्त की जाती है ।
जहाँ कोई विधेयक राय जानने के लिए परिचालित कर दिया गया हो और उस पर राय प्राप्त हो गई हो और सभा पटल पर रख दी गई हो तो ऐसे विधेयक के संबंध में अगला प्रस्ताव विधेयक को किसी प्रवर अथवा सयुक्त समिति को सौपने के लिए किया जाए । साधारण तौर पर इस प्रक्रम में विधेयक पर विचार करने सम्बन्धी प्रस्ताव पेश करने की अनुमति तब तक नहीं दी जाती है जब तक कि अध्यक्ष इसकी अनुमति नहीं दे ।
संसद के समक्ष विधेयक पर याचिकाएं
15. विधेयकों से संबंधित याचिकाओं को संसदीय युक्ति से विधान की प्रक्रिया को एक जनतांत्रिक स्वरूप प्राप्त होता है । दोनों सभाओं के समक्ष प्रस्तुत विधेयकों के संबंध में जनता से प्राप्त याचिकाओं की जांच याचिका संबंधी समिति द्वारा की जाती है और दो विस्तृत अथवा संक्षिप्त रूप में सभा के सदस्यों को परिचालित किया जाता है ताकि सदस्य किसी विशिष्ट विधावी प्रस्ताव पर जनता के विचारों से अवगत हो सके ।
द्वितीय वाचन का दूसरा प्रक्रम
16. द्वितीय वाचन के दूसरे क्रम में लोक सभा में यथापुर स्थापित अथवा किसी प्रवर अथवा संयुक्त समिति द्वारा यथाप्रतिवेदीत अथवा राज्य सभा से यथापारित विधेयक , जैसा मामला हो पर खंडवार विचार किया जाना शामिल है । विधेयक के प्रत्येक खंड पर चर्चा होती है और इस प्रक्रम में संशोधन पेश किये जा सकते हैं । प्रत्येक संशोधन और प्रत्येक खङ पर सभा में मतदान कराया जाता है ऐसे संशोधन , यदि इने उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के बहुमत द्वारा स्वीकार कर लिया लाता है तो यह विधेयक का भाग हो जाते हैं । खंडो , अनुसूचियों , यदि कोई है, के पश्चात , खंड एक,अधिनियमन सूत्र और विधेयक का पूरा नाम सभा द्वारा संसोधन सहित अथवा बिना किसी संशोधन के स्वीकृत होने के बाद द्वितीय वाचन(चरण )को पूरा मान लिया जाता है।
12. पहले प्रक्रम में विधेयक के सिदान्तों और इसके उपबंधों पर सामान्यत निम्नलिखित में से कोई एक प्रस्ताव कि विधेयक पर विचार किया जाए अथवा , यह कि विधेयक सभा की प्रवर समिति को सौंपा जाए अथवा यह कि विधेयक दोनों सभाओं को संयुक्त समिति को दूसरी सब की सामति से सौंपा जाए अथवा यह भी कि विधेयक पर लोगों की राय जानने के उद्देश्य से इसे परिचालित किया जाए , शामिल है । तथापि , धन विधेयक दोनों सभाओं को संयुक्त समिति को सौंपा नहीं जा सकता है।
इस क्रम में , लोक सभा को प्रक्रिया तथा कार्य संचालन नियमों के नियम 75 में किए गए उपबंध के अनुसार मंत्री द्वारा पेश किये गये प्रस्ताव पर किसी सदस्य व संशोधन का प्रस्ताव भी पेश किया जा सकता है
विधेयक , राज्य सभा में उदभूत और पारित होने की दशा में , यह प्रस्ताव कि राज्य सभा द्वारा यथापारित विधेयक पर विचार किया जाए , ही पेश किया जा सकता है । इस मामले में , यदि विधेयक पहले दो- सभाओं को संयुक्त समिति को सौंपा नहीं गया है तो कोई सदस्य संशोधन पेश कर सकता है कि विधेयक सभा की प्रवर समिति को सौंपा जाए
प्रवर / संयुक्त समिति के समक्ष विधेयक
13. यदि कोई विधेयक किसी प्रवर अथवा संयुक्त समिति को सौंपा जाता है , तो वह विधेयक पर सभा की ही भांति खण्ङ वार विचार करती हैं समिति के सदस्यों द्वारा विभिन्न पदों में संशोधन पेश किये जा सकते हैं प्रवर समिति अथवा दोनों सभाओं की संयुक्त समिती जिसे विधेयक पर विचार करने का कार्य सौंपा गया है , एक प्रेस विज्ञप्ति करती है और आम जनता के साथ साथ विशेषज्ञता प्राप्त हित समूहों से आपन आजित करती है ताकि समिति के समय समग्रीया और दृष्टिकोण रखे जा सकें । समिति विशेषज्ञ साक्ष्य तथा इस उपाय द्वारा प्रभावित विशेष हित समूहों के प्रतिनिधियों की राय भी सुन सकता है ।
जनता की राय प्राप्त करने के लिए विधेयक परिचालित किया
14. यदि किसी विधेषक को जमता की राय जानने के लिए परिचालित किया जाता है तो ऐसी राय राज्य सरकार के अभिकरण के माध्यम से प्राप्त की जाती है ।
जहाँ कोई विधेयक राय जानने के लिए परिचालित कर दिया गया हो और उस पर राय प्राप्त हो गई हो और सभा पटल पर रख दी गई हो तो ऐसे विधेयक के संबंध में अगला प्रस्ताव विधेयक को किसी प्रवर अथवा सयुक्त समिति को सौपने के लिए किया जाए । साधारण तौर पर इस प्रक्रम में विधेयक पर विचार करने सम्बन्धी प्रस्ताव पेश करने की अनुमति तब तक नहीं दी जाती है जब तक कि अध्यक्ष इसकी अनुमति नहीं दे ।
संसद के समक्ष विधेयक पर याचिकाएं
15. विधेयकों से संबंधित याचिकाओं को संसदीय युक्ति से विधान की प्रक्रिया को एक जनतांत्रिक स्वरूप प्राप्त होता है । दोनों सभाओं के समक्ष प्रस्तुत विधेयकों के संबंध में जनता से प्राप्त याचिकाओं की जांच याचिका संबंधी समिति द्वारा की जाती है और दो विस्तृत अथवा संक्षिप्त रूप में सभा के सदस्यों को परिचालित किया जाता है ताकि सदस्य किसी विशिष्ट विधावी प्रस्ताव पर जनता के विचारों से अवगत हो सके ।
द्वितीय वाचन का दूसरा प्रक्रम
16. द्वितीय वाचन के दूसरे क्रम में लोक सभा में यथापुर स्थापित अथवा किसी प्रवर अथवा संयुक्त समिति द्वारा यथाप्रतिवेदीत अथवा राज्य सभा से यथापारित विधेयक , जैसा मामला हो पर खंडवार विचार किया जाना शामिल है । विधेयक के प्रत्येक खंड पर चर्चा होती है और इस प्रक्रम में संशोधन पेश किये जा सकते हैं । प्रत्येक संशोधन और प्रत्येक खङ पर सभा में मतदान कराया जाता है ऐसे संशोधन , यदि इने उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के बहुमत द्वारा स्वीकार कर लिया लाता है तो यह विधेयक का भाग हो जाते हैं । खंडो , अनुसूचियों , यदि कोई है, के पश्चात , खंड एक,अधिनियमन सूत्र और विधेयक का पूरा नाम सभा द्वारा संसोधन सहित अथवा बिना किसी संशोधन के स्वीकृत होने के बाद द्वितीय वाचन(चरण )को पूरा मान लिया जाता है।
तृतीय वाचन
17.तृतीय वाचन(चरण )इस प्रस्ताव की चर्चा से संबंधित है इस चरण में केवल विधेयक को स्वीकार या अस्वीकार करने के संबंध में चर्चा होती है तथा विधेयक में कोई संशोधन नहीं किया जा सकता है यदि सदन का बहुमत इसे पारित कर देता है तो विधेयक पारित हो जाता है । इसके उपरांत उस सदन के पीठासीन अधिकारी द्वारा विधेयक पर विचार एवं स्वीकृति के लिये उसे दूसरे सदन में भेजा जाता है । दोनों सदनों द्वारा पारित होने के बाद इसे संसद से पारित मन लिया जाता है
दूसरी सभा में विधेयक
18. लोक सभा में विधेयक पारित होने के बाद इस पर सहमति हेतु इस आशय के संदेश सहित इसे राज्य सभा में भेजा जाता है । दूसरे सदन में भी विधेयक का प्रथम द्वितीय एवं तृतीय पाठन होता है । इस संबंध में दूसरे सदन के समक्ष निम्न चार विकल्प होते हैं
( i ) यह विधेयक को उसी रूप में पारित कर प्रथम सदन को भेज सकता है ( अर्थात् बिना संशोधन के )
( ii ) यह विधेयक को संशोधन के साथ पारित करके प्रथम सदन को पुनः विचारार्थ भेज सकता है ।
( iii ) यह विधेयक को अस्वीकार कर सकता है ।
(iv ) यह विधेयक पर किसी भी प्रकार की कार्यवाही न करके उसे लंबित कर सकता है ।
यदि दूसरा सदन किसी प्रकार के संशोधन के साथ विधेयक को पारित कर देता है या प्रथम सदन उन संशोधनों को स्वीकार कर लेता है तो विधेयक दोनों सदनों द्वारा पारित समझा जाता है तथा इसे राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिये भेज दिया जाता है दूसरी ओर , यदि द्वितीय सदन द्वारा किये गये संशोधनों को प्रथम सदन अस्वीकार कर देता है या द्वितीय सदन विधेयक को पूर्णरूपेण अस्वीकृत कर देता है या द्वितीय सदन छह मास तक कोई कार्यवाही नहीं करता तो गतिरोध की स्थिति उत्पन्न हो जाती है । इस तरह के गतिरोध को समाप्त करने हेतु राष्ट्रपति दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुला सकता है ।
यदि उपस्थित एवं मत देने वाले सदस्यों का बहुमत इस संयुक्त बैठक में विधेयक को पारित कर देता है तो उसे दोनों सदनों द्वारा पारित समझ लिया जाता है।
धन विधेयक की स्थति मे
तथापि , लोकसभा से पारित और राज्यसभा को भेजे गए धन विधेयक को विधेयक प्राप्ति की तारीख से 14 दिन की समयावधि के भीतर वापस करना पड़ता है । राज्य सभा धन विधेयक पर अपनी सिफारिश देकर अथवा बिना किसी सिफारिश के वापस कर सकती है । लोकसभा , राज्य सभा की सभी अथवा किसी एक सिपारिश को स्वीकृत अथवा अस्वीकृत करने के लिए स्वतंत्र है तथापि , यदि राज्य सभा 14 दिन की निर्धारित समयावधि के भीतर धन विधेयक वापस नहीं करती है तो 14 दिन की अवधी समाप्त हो जाने पर इसे लोक सभा द्वारा पारित रूप में दोनो सभाओं द्वारा पारित मान लिया जाता है ।
संविधान संशोधन विधेयक
19. संविधान में संसद द्वारा संशोधन करने की शक्ति निहित है । संविधान संशोधन विधेयक संसद की किसी भी सदन में पुरःस्थापित(पेश )किये जा सकते हैं । जबकि संविधान संशोधन विधेयकों को पुरस्थापित(पेश ) करने संबंधी प्रस्ताव साधारण बहुमत , सभा की कुल सदस्यता के महुमत और उपस्थित तथा मतदान करने वाले संसद सदस्यों के कम से कम दो - तिहाई बहुमत द्वारा इन विधेयको पर विचार किये जाने तथा पारित करने हेतु प्रभावी संतों और प्रस्तावों को स्वीकार करना पड़ता है संविधान के अनुच्छोद 368 ( 2 ) के परन्तुक में उल्लिखित महत्वपूर्ण मुद्दों को प्रभावित करने वाले संविधान संशोधन विधेयकों को संसद की दोनों सभाओं द्वारा पारित किये जाने के बाद राज्य विधानमंडलों के न्यूनतम आधे सदस्यों द्वारा अनुसमर्थन भी कराना होता है
विधेयक का वापस लिया जाना
20. विधेयक का प्रभारी मंत्री जिसने लोक सभा में विधेयक पुर:स्थापित (पेश )किया है। विधेयक के किसी प्रक्रम पर विधेयको इस आधार पर वापस लेने की अनुमति का प्रस्ताव कर सकेगा कि
( क ) विधेयक में अंतर्विष्ट विधायी प्रस्ताव समाप्त किया जाना है या
( ख ) बाद में उस विधेयक के स्थान पर एक नया विधेयक लाया जाना है जिससे इसमें अंतर्विष्ट उपबन्दों में सारवान रूप से फेरवदल हो जाएगा व
( ग ) बाद में उस विधेयक के स्थान पर नया
विधेयक लाया जाना है जिसमें अन्य उपबंधों के अतिरिका उसके सभी या कोई उपबध सम्मिलित हों ।
और यदि ऐसी अनुमति मिल जाती है तो उस विधेयक के संबंध में कोई अग्रेता प्रस्ताव नहीं किया जाएगा ।
यदि राज्य सभा द्वारा पारित कोई विधेयक लोक सभा में संचित हो तो विधेयक को वापस लिये जाने की सिफारिश करने वाला प्रस्ताव , सभा द्वारा स्वीकार कर लिये जाने पर , राज्य सभा को उसको सहमति के लिए प्रेषित किया जाता है । यदि राज्य सभा प्रस्ताव पर सहमति दे देती है तो विधेयक को वापस लिये जाने का प्रस्ताव लोक सभा में पेश किया जाता है और इस पर प्रायिक रीति से आगे की कार्यवाही की जाती है और जब प्रस्ताव स्वीकृत हो जाता है तो इस आशय का एक संदेश राज्य सभा को भेजा बात है । लोक सभा द्वारा पारित और राज्य सभा में लंबित विधेयक के मामले में राज्य सभा में इसी प्रकार की प्रक्रिया अपनाई जाती है ।
सयुक्त बैठक
21. यदि एक सभा द्वारा पारित विधेयक दूसरी सभा द्वारा अस्वीकृत का दिया जाता है अथवा विधेयक में किये जाने वाले संशोधनों से सभाएं अंततः असहमत हो जाती है अथवा दूसरी सभा को विधयक प्राप्त होने की तारीख से छह माह से अधिक समय बीत चुका हो और इसने विधेयक पारित न किया हो तो राष्ट्रपति , जब तक कि लोक सभा भंग होने के कारण विधेयक
व्यपगत न हुआ हो , गतिरोध को दूर करने के लिए दोनों सभाओं को संयुक्त बैठक बुला सकता है राष्ट्रपति ने राज्य सभा के सभापति तथा लोक सभा के अध्यक्ष के साथ परामर्श करके सभाओं की संयुक्त बैठक से संबंधित प्रक्रिया का विनियमन करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 171 के खंड ( 3 ) के अनुसरण में ससद की सभा ( संयुक्त बैठक और संसूचना ) नियम बनाये है । विधेयको दोनों सभाओं द्वारा उस रूप में पारित किया गया माना जाता है जिस में इसे संयुक्त बैठक में उपस्थित और मतदान करने वाले दोनों सभाओं के सदस्यों की कुल संख्या के बहुमत द्वारा पारित किया जाता है । धन विधेयक अथवा संविधान संशोधन विधेयक पर दोनों सभाओं की संयुक्त बैठक नहीं हो सकती । किसी विधेयक पर दोनों सभाओं के बीच गतिरोध को दूर करने के लिए कदम उठाने के लिए गष्ट्रपति को विधान द्वारा शक्तियां प्रदान की गई है परंतु राष्ट्रपति के लिए यह बाध्यकारी नही है कि वह सभाओं को संयुक्त बैठक करने के लिए बुलाये । यथापि , एक बार राष्ट्रपति द्वारा सयुक्त बैठक के लिए सभाओं को बुलाने का अपना आशय अधिसूचित कर दिये जाने पर लोकसभा के जदनन्तर अंग हो जाने पर भी विधेयक पर आगे की कार्यवाही में कोई बाधा नहीं आती । संयुक्त बैठक किये जाने के लिए कोई समय सीमा गय नहीं है या अधिसूचन के पश्चात् कभी भी आयोजित हो सकती है
राष्ट्रपति की अनुमति
22. विधेयक अंत में जिस सभा के पास होता है उस सभा का सचिवालय उस पर जट्रपति की अनुमति प्राप्त करने के लिए कारवाई प्रारंभ करता है । धन विधेयक या सभाओं की सयुक्त बैठक में पारित विधेयक के मामले में , लोक सभा सचिवालय राष्ट्रपति की अनुमति प्राप्त करता है राष्ट्रपति की अनुमति मिल जाने के पश्चात् विधेयक अधिनियम बना है राष्ट्रपति विधेयक पर अनुमति दे सकता है / सकती है अथवा अनुमति रोक सकता है । राष्ट्रपति , यदि यह धन विधेयक न हो नो सभाओं को विधेयक पर पुनः विचार करने की अपनी सिफारिशों के साथ विधेयक लौटा भी सकता/सकती है और यदि सभाएं विधेयक को संशोधनों सहित अथवा संशोधनों के बिना ही पुनः पारित कर देती है तो राष्ट्रपति से विधेयक पर अनुमति नहीं रोक सकता / सकती । राष्ट्रपति संविधान संशोधन विधेयक पर अनुमति देने के लिए बाध्य है।
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