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तुलनात्मक राजनीति क्या है -अर्थ, परिभाषाए, महत्व, क्षेत्र, समस्याए, तथा प्रकृति। (what is a compertitive politics -Meaning, Definations, Importance, issues Nature and scope )


प्रस्तावना (Introduction)


मनुष्य सामाजिक प्राणी होने के साथ साथ एक  राजनीतिक प्राणी भी है। प्रारम्भ से ही उसके प्रयास अच्छी राजनीतिक संस्थाओं के निर्माण के रहे हैं। इसलिए वह हमेशा से राजनीतिक संस्थाओं की श्रेष्ठता जांचने के लिए तुलनात्मक अध्ययन का सहारा लेता आया है। तुलना मानव स्वभाव का अंग होने के साथ-साथ उपयोगी अध्ययन का भी आधार मानी जाती है। राजनीतिक व्यवहार के विश्लेषण तथा उपयोगी सिद्धान्त निर्माण में तुलना का महत्व स्वतः ही सिद्ध होता है। अरस्तु को तुलनात्मक अध्ययन का प्रथम विद्वान माना जाता है। यद्यपि अरस्तु से पहले भी तुलनात्मक अध्ययन के अवशेष मिलते हैं, लेकिन वे अरस्तु | जैसे विकसित व व्यवस्थित नहीं है। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद बदलते विश्व परिवेश में तुलनात्मक अध्ययन का महत्व काफी बढ़ गया है। आज तुलनात्मक अध्ययन संस्थागत सीमाएं लांघकर गैर-राजनीतिक व्यवहार के क्षेत्र में भी प्रवेश कर चुका है। इसी कारण आज तुलनात्मक राजनीतिक अध्ययन काफी लोकप्रिय हो चुका है।

तुलनात्मक राजनीति का अर्थ व परिभाषाएं (Meaning and definitions of comparative politics)

तुलनात्मक राजनीति, राजनीति विज्ञान की एक शाखा एवं विधि है जो तुलनात्मक अध्ययन पर आधारित है। तुलनात्मक राजनीति में दो या अधिक देशों की राजनीति की तुलना की जाती है या एक ही देश की अलग-अलग समय की राजनीति की तुलना की जाती है और देखा जाता है कि इनमें समानता क्या है और अन्तर क्या है।

तुलनात्मक राजनीति के बारे में विभिन्न परिभाषाएं दी गई हैं :

  • (1) ब्रायबन्ती (Braibanti) ने लिखा है- तुलनात्मक राजनीति सामाजिक व्यवस्था में उन तत्वों की पहचान और व्याख्या है जो राजनीतिक कार्यों तथा उनके संस्थागत प्रकाशन को प्रभावित करते हैं।"
  • ( 2 ). एडवर्ड ए० फ्रीमैन (Edward A Freeman) ने तुलनात्मक राजनीति के बारे में लिखा है- "तुलनात्मक राजनीति राजनीतिक संस्थाओं तथा सरकारों के विविध प्रकारों का एक तुलनात्मक विवेचन व विश्लेषण है।"
  • ( 3 ) राय सी० मैक्रिडीस (Roy C- Macridi) के अनुसार-हैरोडोटस तथा अरस्तु के समय से ही राजनीतिक मूल्यों, विश्वासों, संस्थाओं, सरकारों और राजनीतिक व्यवस्थाओं में विविधताएं जीवन्त रही हैं और इन विविधताओं में समान तत्वों की छानबीन करने के प्रयासको तुलनात्मक राजनीतिक विश्लेषण कहा जाना चाहिए।"
  • (4) एम0 कर्टिस (M Curti) के अनुसार तुलनात्मक राजनीति, राजनीतिक संस्थाओं और राजनीतिक व्यवहार की कार्य प्रणाली में महत्वपूर्ण नियमितताओं, समानताओं और असमानताओं में तुलनात्मक अध्ययन से सम्बन्धित है।" इस प्रकार कहा जा सकता है कि तुलनात्मक राजनीति तुलनात्मक सरकारों गैर-शासकीय राजनीतिक संस्थाओं, कबीलों समुदायों व उनकी प्रक्रियाओं व व्यवहारों का अध्ययन है।

तुलनात्मक राजनीति की प्रकृति
(Nature of Comparative Politics)

आज तुलनात्मक राजनीति एक सम्मानजनक स्थान पर पहुंच चुकी है। प्राचीन समय में इसका सम्बन्ध विभिन्न शासन प्रणालियों या सरकारों की तुलना से ही माना जाता था। लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध के बाद तुलनात्मक राजनीति में राजनीतिक संस्थाओं के ढांचे व कार्यों के साथ-साथ गैर-राजनीतिक समुदायों, संस्थाओं व उनके व्यवहार को भी अध्ययन की परिधि में लाया जा चुका है। इसी कारण आज तुलनात्मक शासन व राजनीति की प्रकृति और क्षेत्र काफी बदल चुका है। तुलनात्मक राजनीति को प्रकृति पर प्रकाश डालते हुए माईकल कर्टिस ने अपनी पुस्तक 'Comparative Government and Politics: An Introductory Essay in Political Science मे लिखा है- “तुलनात्मक राजनीति का सरोकार ऐसे राजनीतिक व्यवहार, संस्थाओं, प्रक्रियाओं, विचारों और मूल्यों से है जो एक से अधिक देशों में पाए जाते हैं। इसके अन्तर्गत एक से अधिक राष्ट्र राज्यों के बीच उन नियमितताओं और प्रतिमानों, उन समानताओं और असमानताओं का पता लगाते हैं जिनमें राज्यों की मूल प्रकृति, कार्यविधि और मान्यताओं को स्पष्ट करने में सहायता मिल सके। इस अध्ययन के अन्तर्गत समस्त राष्ट्र राज्यों या राजनीतिक प्रजातियों की तुलना भी कर सकते हैं, या फिर किन्हीं विशेष प्रक्रियाओं या संस्थात्मक गतिविधि की तुलना भी कर सकते हैं।"

आज तुलनात्मक राजनीति की प्रकृति सम्बधी दो मत प्रचलित हैं-

(i) तुलनात्मक राजनीति एक लम्बात्मक या अनुलम्बात्मक तुलनात्मक अध्ययन है, - इस मत में विश्वास रखने वालों का मानना है कि तुलनात्मक राजनीति एक ही देश की विभिन्न सरकारों की अनुलम्ब तुलना है। लेकिन इस मत के विपरित कहा जा सकता है कि राष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय सरकारों के बीच में सम्प्रभु शक्ति, उत्पीडन शक्ति तथा आर्थिक शक्ति के दृष्टिकोण से अन्तर होता है। इसलिए अनुलम्बात्मक तुलनाएं औपचारिक दृष्टि से तो ठीक रह सकती हैं, लेकिन व्यवहारिक धरातल पर वे राजनीतिक व्यवहार के बारे में कोई सामान्य निष्कर्ष प्रस्तुत नहीं कर सकती। व्यवहार में राष्ट्रीय तथा प्रांतीय सरकारों में काफी असमानताएं होने के कारण यह अध्ययन अनुपयोगी ही रहता है। इसके विपरीत दूसरे मत में विश्वास रखने वाले विद्वानों का कहना है कि तुलनात्मक राजनीति में क्षैतिज तुलनाएं ही उपयोगी अध्ययन का आधार हैं ये तुलनाएं समय और भौगोलिक सीमाओं से परे हैं। ये तुलनाएं ऐतिहासिक भी हो सकती हैं और समसामयिक भी। ऐतिहासिक तुलनाओं में एक देश की राष्ट्रीय सरकार की उसी देश की भूतकालीन सरकारों के साथ तुलना की जाती है। यह तुलना समान सभ्यता व संस्कृति का तत्व होने के बाद ही प्रभावी हो सकती है। इसी कारण यह तुलना भी सीमित महत्व की है।

(ii) तुलनात्मक राजनीति एक अनुप्रस्थ या क्षैतिज तुलनात्मक अध्ययन है। - अनुप्रस्थ या क्षैतिज तुलनात्मक अध्ययन में समसामयिक आधार पर की गई तुलनाएं ही राजनीतिक व्यवहार की वास्तविकता का चित्रण करती हैं। ब्लॉडेल ने समसामयिक अनुप्रस्थ तुलना को ही सबसे अधिक उपयोगी व प्रामाणिक माना है। इस तुलना का अर्थ है- राष्ट्रीय सरकारों का राष्ट्रीय सीमाओं के आर-पार अध्ययन करना। ये तुलनाएं ही सामान्यकरण के आधार पर राजनीतिक व्यवहार के सामान्य सिद्धान्तों का निर्माण करती हैं। भारत की संसदीय शासन प्रणाली की तुलना यदि ब्रिटेन की संसदीय शासन प्रणाली से की जाए तो इससे समसामयिक तुलना के आधार पर संसदीय शासन प्रणाली के बारे में उपयोगी निष्कर्ष प्रस्तुत किए जा सकते है। आज सीमाओं के आर-पार तुलनाएं ही तुलनात्मक राजनीति को स्वतन्त्र अनुशासन के पद पर स्थापित करने में सफल हैं। तुलनात्मक राजनीति की वास्तविक प्रकृति यही है कि इसमें एक देश के भीतर व एक देश के बाहर राजनीतिक व गैर-राजनीतिक संस्थाओं व उनके व्यवहार का अध्ययन किया जाता है।

तुलनात्मक राजनीति का क्षेत्र
(Scope of Comparative Politics)


तुलनात्मक राजनीति के क्षेत्र के बारे में विचार करने से यह बात सामने आती है कि यह संक्रमणकालीन अवस्था में है। आज विद्वान इस अनिश्चय की स्थिति में हैं कि इसमें क्या शामिल किया जाए या क्या नहीं तथा शामिल करने या न करने का आधार क्या हो ? कानूनी या संस्थागत दृष्टिकोण के समर्थक तुलनात्मक राजनीति में केवल संविधान द्वारा निर्धारित राजनीतिक व्यवहार तथा सरकारी ढांचे व संरचनाओं के अध्ययन पर ही जोर देते हैं।
उनका ध्येय औपचारिक अध्ययन तक ही सीमित है। लेकिन इस दृष्टिकोण के आलोचकों का कहना है कि यह अध्ययन राजनीतिक व्यवस्था के व्यवहार का वास्तविक ज्ञान नहीं करा सकता। कई देशों में संविधान तथा संविधानवाद में गहरा अन्तर होता है। चीन और रूस की राजनीतिक व्यवस्थाओं के राजनीतिक व्यवहार का अध्ययन करने से यह बात उभरने लगती है कि वहां पर संविधान के सिद्धान्त व व्यवहार में काफी अन्तर है।
इसलिए राजनीतिक व्यवहार के अनौपचारिक अध्ययन की भी उपेक्षा नहीं की जानी चाहिये।

 व्यवहारवादी विचारक तुलनात्मक राजनीति में संस्थागत राजनीतिक व्यवहार के साथ-साथ गैर-राजनीतिक संस्थाओं के राजनीतिक व्यवहार को भी शामिल करने पर जोर देते हैं। उनका कहना है कि इस बात की भी उपेक्षा नहीं की जा सकती कि राजनीतिक संस्थाओं के व्यवहार को ऐसा वैसा बनाने वाले गैर-राजनीतिक तत्वों को भी तुलनात्मक अध्ययन में उचित स्थान मिलना चाहिए। व्यवहारवादी विचारकों के प्रयासों के परिणामस्वरूप आज तुलनात्मक राजनीति इस अवस्था में पहुंच चुकी है कि यह पाश्चात्य सीमाओं की मोहताज नहीं है।

आज इसका विस्तार गैर-पाश्चात्य देशों में भी है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद तुलनात्मक राजनीति का विषय क्षेत्र काफी अधिक विकसित हुआ है। मुनरो, हरमन फाईनर, लारकी जैसे विद्वानों ने तुलनात्मक अध्ययन को नए आयाम दिए हैं। आज तुलनात्मक राजनीति में नई-नई अवधारणाएं विकसित हो चुकी हैं। इसमें राजनीतिक संस्थाओं,संरचनाओं के साथ-साथ गैर-राजनीतिक तत्वों को भी उचित स्थान मिल चुका है।

आज तुलनात्मक राजनीतिक पाश्चात्य तथा गैर-पाश्चात्य दोनों क्षेत्रों में अपने पैर पसार चुकी है। आज तुलनात्मक राजनीति परम्परागत दृष्टिकोण की परिधि से निकलकर आधुनिक उपागमों के क्षेत्र में अपनी नई पहचान बना चुकी है। आज तुलनात्मक राजनीति में तुलना के नए-नए आयाम विकसित हो रहे हैं।

आज तुलनात्मक राजनीति एक स्वतन्त्र व अनुशासनात्मक स्थान पर पहुंच चुकी है। आज यह अन्य सामाजिक शास्त्रों से काफी कुछ ग्रहण करने के कारण अपने अध्ययन क्षेत्र को विकसित कर चुकी है। आधुनिक राजनीतिक विद्वान तुलनात्मक राजनीति के अध्ययन क्षेत्र में कानून निर्माण, कानून प्रयोग, विभिन्न राजनीतिक व्यवस्थाओं के अंगों से सम्बन्धित निर्णयों, राजनीतिक दलों व दबाव समूहों के अध्ययन के साथ-साथ समस्त व्यक्तियों, संस्थाओं और समुदायों के सामाजिक व्यवहार को भी शामिल करते हैं।

आज तुलनात्मक राजनीति में राज्यों की संविधानिक संस्थागत संरचनाओं, राजनीतिक दल व दबाव समूह, राजनीतिक संस्कृति, राजनीतिक समाजीकरण, राजनीतिक विकास, संविधानवाद, राजनीतिक विकास, राजनीतिक भ्रष्टाचार, राजनीतिक आधुनिकीकरण प्रतियोगी राज्यों के बीच आपसी शक्ति सम्बन्ध, जनमत, तुलनात्मक विश्लेषण आदि का अध्ययन किया जाता है।
इसी कारण कहा जा सकता है कि तुलनात्मक राजनीति का अध्ययन क्षेत्र व्यापक होने के साथ-साथ संक्रमणकालीन दौर में है। इसमें और अधिक विषयों के शामिल होने की आज भी हमें प्रबल सम्भावना
नजर आ रही है। अतः तुलनात्मक राजनीति का क्षेत्र काफी व्यापक है।

तुलनात्मक शासन एवं राजनीति का महत्व (Importances of Comparative Govt. and Politics)
Or
तुलनात्मक शासन एवं राजनीति का अध्ययन क्यों ?( Why Study Comparative Govt. and Politics?)


द्वितीय विश्व युद्ध के बाद तृतीय विश्व के अभ्युदय ने परम्परागत अध्ययन को चुनौती देने का कार्य किया। बदलते विश्व परिवेश में राजनीतिक व्यवहार को समझने में परम्परागत राजनीतिक सिद्धान्त की असफलता ने तुलनात्मक अध्ययन पर आधारित आधुनिक राजनीतिक सिद्धान्तों की आवश्यकता को अनुभव करा दिया और इसके बाद राजनीति विज्ञान में तुलनात्मक अध्ययन का विकास तेजी से होने लगा।

आज तुलनात्मक राजनीतिक अध्ययन इस सीमा तक अपनी प्रतिष्ठा कायम कर चुका है कि इसे स्वतन्त्र अनुशासन का दर्जा भी मिल गया है। अरस्तु से लेकर आज तक तुलनात्मक राजनीतिक अध्ययन का महत्व इस बात में रहा है कि इससे राजनीतिक व्यवहार को समझने, राजनीति में सामान्यीकरण के आधार पर सिद्धान्त निर्माण करने तथा प्रचलित राजनीतिक सिद्धान्तों की प्रामाणिकता जांचने में हमारी सहयता की है।

इसके कारण ही राजनीति को वैज्ञानिक आधार प्राप्त हुआ है और राजनीतिक व्यवहार के स्थायी तत्वों का पता लगाया जा चुका है। आज तुलनात्मक शासन व राजनीति का अध्ययन विद्यार्थी, शिक्षक व नागरिकों के लिए एक महत्वपूर्ण मार्गदर्शक का कार्य कर रहा है। तुलनात्मक अध्ययन ने राजनीतिक व्यवहार की पेचिदगियों को समझने में राजनीति विज्ञान की जो मदद की है, वही उसकी उत्कृष्ट देन है।

इसी कारण आज तुलनात्मक राजनीतिक अनुभवमूलक राजनीतक सिद्धान्त का अभिन्न अंग बन गई है। अतः तुलनात्मक शासन एवं राजनीति का अध्ययन राजनीति विज्ञान के लिए एक बहुत बड़ा वरदान है।

तुलनात्मक राजनीति का विकास
( Evolution of Comparative Politics)


तुलनात्मक राजनीति का अपना गौरवपूर्ण इतिहास है। अरस्तु से लेकर आधुनिक  समय तक यह अपने विकसित रूप के काफी निकट पहुंच चुकी है।

सबसे पहले अरस्तु ने 158 देशों के संविधानों को तुलनात्मक आधार पर परखकर तुलनात्मक अध्ययन की जो शुरुआत की थी, वह आज परिपक्व अवस्था में हैं। अरस्तु ने अपनी पुस्तक 'Politics' में 158 देशों की शासन-प्रणालियों के के तुलनात्मक विश्लेषण द्वारा यह बताया कि कौन सी शासन प्रणाली अच्छी है या कौनसी बुरी है। इस कार्य द्वारा अरस्तु ने तुलनात्मक पद्धति की शुरुआत की और राजनीति शास्त्र को अन्य शास्त्रों से अलग पहचान भी दी।

उसके बाद मैकियावली ने राजनीति शास्त्र में पद्धति सम्बन्धी प्रश्न उठाया। उसने अपनी पुस्तक 'The Prince' में कहा कि राजनीति का व्यवस्थित और तुलनात्मक अध्ययन क्यों आवश्यक है ? उसने अपनी इस पुस्तक में बताया कि एक सफल शासक में कौन-कौन से गुण हो चाहिएं। उसने भी अरस्तु की तरह अच्छे बुरे में अन्तर किया। उसने अपनी रचना 'डिस्कोर्सेज़ ऑन लिवी' में बताया कि जिस देश के नागरिक सचरित्र वाले हों वहां गणतन्त्र तथा जहाँ लोग स्वार्थी व लालची हों, वहां राजतन्चा ही सर्वोत्तम शासन प्रणाली है।

उसके बाद मॉण्टेस्क्यू ने अपनी पुस्तक The Spirit of Laws' में संविधान निर्माण की कला को वैज्ञानिक आधार प्रदान कर हुए बताया कि सरकारों का संगठन कैसे किया जाए।

उसके बाद इतिहासवाद के दर्शन के रूप में भी उत्पन्न परिस्थितियों ने तुलनात्मक राजनीति का विकास किया। इतिहासवाद के कारण उत्पन्न विरोधी प्रवृतियां ही आगे चलकर तुलनात्मक अध्ययन का आधार बनी इतिहासवाद के विरुद्ध आगे चलकर जो प्रतिक्रियाएं हुईं, उनसे भी तुलनात्मक अध्ययन को उपयोगी सामग्री प्राप्त हुई। इतिहासवाद के विरोधी विचारकों ने कल्पना की बजाय तथ्यों पर आधारित राजनीतिक व्यवहार के अध्ययन पर बल दिया।

उसके बाद राजनीतिक विकासवाद का दौर आया। इसमें प्राचीन दृष्टिकोणों का स्थान नवीन दृष्टिकोणों के प्रयोगों ने ले लिया। इस युग में राजनीति विद्वान राज्य की उत्पत्ति व विकास के तत्वों को खोजने में लग गए। इसके लिए उन्होंने कल्पना की अपेक्षा तथ्यों पर ही अधिक ध्यान दिया।

इस युग में वुडरों विल्सन की रचना 'The State Elements of Historical and Practical Politics' (1895) सर हेनरी मेन की Ancient Law (1861) तथा 'Early History of Institutions' (1874) एडवर्ड जैकस की A Short History of Politics' तथा The State and the Nation (1900-1919), सीले की 'Introduction to Political Science' (1896), जैम्स ब्राईस की Modern Democracies' (1921) आदि रचनाएं प्रकाशित हुई। इन विचारकों के प्रयासों ने तुलनात्मक राजनीति को नई दिशा दी। इनसे प्राप्त अध्ययन सामग्री आज भी हमारे लिये उपयोगी तुलनात्मक अध्ययन का आधार है। द्वितीय विश्व युद्ध तक आते-आते तुलनात्मक राजनीति का क्षेत्र काफी विकसित हो चुका था, लेकिन वह उस अवस्था से दूर था जो आज है।

द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद ऑमण्ड, कोलमैन, बीयर, उल्म हेकशर, मैक्रिडीस, कार्ल डॉयच, डेविड ईस्टन, विचारकों ने तुलनात्मक अध्ययन में नई-नई अवधारणाओं का विकास किया। इन विद्वानों ने तुलनात्मक राजनीति की आनुभाविक सीमा का विस्तार किया तथा वैज्ञानिक अध्ययनों पर जोर दिया। इन्होंने राजनीतिक व्यवहार को प्रभावित करने वाले गैर-राजनीतिक तत्वों को भी तुलनात्मक अध्ययन में उचित स्थान दिया। इनके प्रयासों से तुलनात्मक राजनीति में नए-नए उपागमों का विकास हुआ। मार्क्सवादी-लेनिनवादी उपागम, राजनीतिक संस्कृति, उपागम, राजनीतिक विकास व राजनीतिक आधुनिकीकरण उपागम; संरचनात्मक प्रकार्यात्मक उपागम आदि नवीन उपागमों का जन्म द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ही हुआ है। विगत दो दशकों से तुलनात्मक राजनीति में राजनीतिक समाजीकरण, राजनीतिक संचार, अभिजन वर्ग, नीति निर्माण, राजनीतिक संस्कृति, राजनीतिक आधुनिकीकरण, राजनीतिक विकास आदि की अवधारणाएं काफी लोकप्रियता प्राप्त कर रही हैं।

 आज तुलनात्मक राजनीति में पाश्चात्य देशों की शासन व्यवस्थाओं के साथ-साथ गैर पाश्चात्य देशों (तृतीय विश्व) की राजनीतिक व्यवस्थाओं का भी व्यापक अध्ययन किया जाता है। सत्य तो यह है कि आज तुलनात्मक राजनीति एक स्वतन्त्र अनुशासन का दर्जा प्राप्त कर चुकी है। आज तुलनात्मक राजनीति जिस अवस्था में है, वह अपनी पूर्णता के काफी निकट दिखाई देती है। यद्यपि आज राजनीतिक उतार-चढ़ावों के कारण तुलनात्मक राजनीति के सामने कुछ समस्याएं भी है। यदि राजनीति विज्ञान इन समस्याओं से निजात पाने में सफल रहते हैं तो इस बात में कोई शक नहीं है कि तुलनात्मक राजनीति का भविष्य काफी उज्ज्वल होगा।

 

तुलनात्मक अध्ययन की कठिनाइयाँ (Difficulties of comparative politics studies)

  • तुलनात्मक पद्धति अभी प्रवाह की स्थिति में है। यह निर्णायक या अंतिम स्थिति में नहीं पहुंच पाया है। अतएव, इसके रास्ते में अनेक कठिनाइयाँ पायी जाती है। तुलना करने के लिए अनेक बातों की आवश्यकता पड़ती है।

  •  दूसरी समस्या की ओर संकेत करते हुए सरटोरी ने लिखा है कि जब तक वृहत स्तर पर कुछ ऐसे प्रत्ययों का निर्माण नहीं हो जिनके बारे में अधिक से अधिक जानकारी हो और जो तुलनीय हो, तब तक राजनीति में तुलनात्मकता संभव नहीं है। इसके लिए तुलना के विषयों में समानता का कुछ न कुछ अंश आवश्यक है। और उनके बारे में अध्ययनकर्ता को पूरी जानकारी होनी चाहिए।

  • तीसरी समस्या विभिन्न राष्ट्रों की संस्कृतियों के अध्ययन और विदेशी भाषाओं के प्रयोग के सम्बन्ध में पैदा होता है। तुलनात्मक अध्ययन के लिए विभिन्न राष्ट्रों की सुकृतियों और विदेशी भाषाओं की जानकारी जरूरी है। किसी भी शोधकर्तता के लिए सभी भाषाओं की जानकारी प्राप्त करना संभव नहीं है और ना तो विभिन्न देशों की संस्कृति के बारे में सही और पूरी जानकारी प्राप्त कर लेना ही संभव है।

  • चौथी कठिनाई आँकडे जमा करने और राजीतिशास्त्र में वैज्ञानिक विधियों के प्रयोग से सम्बंधित है। मनुष्य का स्वभाव उसका व्यवहार, उसके क्रियाकलाप और उसकी संस्थाओं की प्रकृति इतनी जटिल, व्यापक परिवर्तनशील है कि उसके बारे में पूरे आँकडे जमा कर लेना आसान नहीं है।

इन कठिनाइयों के बावजूद राजनीतिशास्त्र का तुलनात्मक अध्ययन काफी लोकप्रिय हो गया है। दिन-प्रतिदिन इसकी कमियों को दूर किया जा रहा है और इसे अधिक से अधिक पूर्ण बनाने की कोशिश की जा रही है।



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