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नवीन लोक प्रशासन - पृष्ठभूमि, विशेषताए, तथा लक्ष्य।(New Public Administration -background, features, and objective.)


 नवीन लोक प्रशासन: पृष्टभूमि

प्रायः देखा गया है कि उथल-पुथल, अस्थिरता एवं अव्यवस्था के कालों में नवीन विचारों का अभ्युदय होता है और वे परम्परागत शास्त्रों के विषयों को नवीन दिशा प्रदान करते हैं। यह बात लोक प्रशासन के सम्बन्ध में सत्य प्रतीत होती है। सातवें दशक में लोक प्रशासन की क्रिया प्रणाली के उद्देश्य के रूप में मितव्ययिता तथा कार्यकुशलता को अपर्याप्त एवं अपूर्ण पाया गया। इस दशक के अंतिम वर्षों में कुछ विद्वानों, विशेषकर युवा-वर्ग ने लोक प्रशासन में मूल्यों एवं नैतिकता पर विशेष बल देना प्रारम्भ कर दिया। यह कहा जाने लगा कि कार्यकुशलता ही समस्त लोक प्रशासन का लक्ष्य नहीं है, उसे मूल्योन्मुखी होना चाहिए। इस नवीन प्रवृत्ति को नवीन लोक प्रशासन की संज्ञा दी गयी। वास्तव में लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा को मूर्त रूप देने के प्रयत्नों ने लोक प्रशासन में अनेक नवीन प्रवृत्तियों को जन्म दिया है, जिन्हें नवीन लोक प्रशासन के नाम से जाना जाता है। इसके अंतर्गत नैतिकता एवं सामाजिक उपयोगिता पर बल दिया जाता है तथा इसका मुख्य उद्देश्य मानव कल्याण है।
 नवीन लोक प्रशासन का आरम्भ 1967 के 'हनी प्रतिवेदन' से समझा जा सकता है। प्रो0 जॉन सी0 हनी का प्रतिवेदन अमेरिका में लोक प्रशासन का स्वतंत्र विषय के रूप में अध्ययन की सम्भावनाएऐं' पर आधारित था। इस प्रतिवेदन में लोक प्रशासन को विस्तृत एवं व्यापक बनाने पर जोर दिया गया। इस प्रतिवेदन का जहाँ एक तरफ स्वागत हुआ वही दूसरी तरफ इसको लेकर तीव्र विवाद भी उत्पन्न हुआ। प्रतिवेदन में जो मुद्दे उठाये गये थे, वे महत्वपूर्ण थे। परन्तु जो मुद्दे नहीं उठाये गये थे, वे उनसे भी अधिक महत्वपूर्ण थे। तत्कालीन सामाजिक समस्याओं के साथ सीधा सम्बन्ध स्थापित करने के लिए इस प्रतिवेदन में कोई ठोस सुझाव नहीं दिया गया था। फिर भी इस प्रतिवेदन ने अनेक विद्वानों को समाज में लोक प्रशासन की भूमिका पर गम्भीरता पूर्वक विचार करने के लिए प्रेरित किया।
हनी प्रतिवेदन के पश्चात 1967 में अमेरिका के फिलाडेल्फिया शहर में इसी विषय पर सम्मेलन आयोजित हुआ। सम्मेलन में जहाँ कुछ चिन्तकों ने लोक प्रशासन को महज बौद्धिक चिन्तन का केन्द्र माना तो दूसरों ने उसे मात्र प्रक्रिया माना। कुछ चिन्तकों ने इसे प्रशासन का तो कुछ ने समाज का अंग माना। वस्तुस्थिति यह रही कि इस सम्मेलन में भी लोक प्रशासन का नवीन स्वरूप निर्धारित नहीं किया जा सका।
1968 में आयोजित मिन्नोब्रुक सम्मेलन ने लोक प्रशासन की प्रकृति में क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिया तथा यह नवीन लोक प्रशासन को स्थापित करने में मील का पत्थर सिद्ध हुआ। इस सम्मेलन में युवा विचारकों का प्रतिनिधित्व रहा तथा वे समस्त बिन्दुवाद विवाद की परिधि में आये जो बीते दो सम्मेलनों में शामिल नहीं किये गये थे। इस सम्मेलन में परम्परागत लोक प्रशासन के स्थान पर नवीन लोक प्रशासन नाम प्रकाश में आया।
1971 में फ्रेंक मेरीनी कृत टुवर्ड्स ए न्यू पब्लिक एडमिनिस्टेशन- मिन्नोब्रुक पर्सपेक्टिव' के प्रकाशन के साथ ही नवीन लोक प्रशासन को मान्यता प्राप्त हुई। इसी समय ड्वाइट वाल्डो की कृति ने नवीन लोक प्रशासन को और सशक्त बना दिया। उक्त दोनों पुस्तकों में नवीन लोक प्रशासन को सामाजिक समस्याओं के प्रति संवेदनशील माना गया है। सन् 1980 व 1990 के दौरान विकसित राष्ट्रों को सार्वजनिक क्षेत्र प्रबन्धन में दृढता तथा अधिकारी प्रवृत्ति से नमनीयता की ओर मुड़ते देखा गया। इसके अतिरिक्त विभिन्न राष्ट्रों में आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक विकेन्द्रीकरण की चाह में लोक प्रशासन को सरकार व जनता के मध्य नवीन सम्बन्ध स्थापित करने पर बल दिया गया। इन तथ्यों का उल्लेख 1980 में प्रकाशित एच0 जार्ज फ्रेडरिक्सन की पुस्तक पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन डेवलपमेंन्ट एज ए डिसिप्लिन' में देखा जा सकता है। 1990 के दशक में भी नवीन लोक प्रशासन में नये प्रतिमान विकसित किये गये हैं, जिसे नवीन लोक प्रबन्धन बाजार आधारित लोक प्रशासन, उद्यमकर्ता शासन आदि का नाम दिया जा सकता है इसके अंतर्गत दक्षता, मितव्ययिता तथा प्रभावदायकता पर बल दिया गया है। इस प्रकार विगत चार दशकों में लोक प्रशासन अपने नवीन रूप में लोक प्रिय हो चला हैं।

नवीन लोक प्रशासन की विशेषताएँ।

नवीन लोक प्रशासन की विचारधारा समयानुकुल तथा परम्परागत लोक प्रशासन में परिवर्तन की विचारधारा है। परम्परागत लोक प्रशासन में मूल्य निरपेक्षता, दक्षता, निष्पक्षता, कार्यकुशलता इत्यादि पर बल दिया गया था, जबकि नवीन लोक प्रशासन नैतिकता, उत्तरदायित्व, सामाजिक सापेक्षता, नमनीय तटस्थता एवं प्रतिबद्ध प्रशासनिक प्रणाली पर बल देता है। यह माना जाता है कि नवीन लोक प्रशासन सामाजिक परिवर्तन का सर्वश्रेष्ठ संवाहक है तथा यह लक्ष्य अभिमुखी है। नवीन लोक प्रशासन की प्रमुख विशेषताओं को निम्नलिखित रूपों में व्यक्त किया जा सकता है

1. नवीन लोक प्रशासन की मान्यता पूर्णतया मानवीय दृष्टिकोण की समर्थक है जबकि परम्परागत लोक प्रशासन में मनुष्य को "आर्थिक जीव" के रूप में मानते हुए उत्पादन का यंत्र स्वीकारा गया था। नवीन लोक प्रशासन में मानवीय सम्बन्धों, संवेदनाओं तथा समस्याओं को महत्त्वपूर्ण माना गया है तथा लोक प्रशासन को कार्योन्मुख होने के बजाय मानवोन्मुख बनाने पर बल दिया जा रहा है।


2. यह राजनीति तथा प्रशासन के मध्य द्विविभाजन को स्वीकार नहीं करती है बल्कि नवीन लोक प्रशासन के समर्थक मानते हैं कि राजनीति तथा लोक प्रशासन को प थक्-प थक् रूप में देखने पर दोनों ही अपूर्ण रह जाते हैं क्योंकि आज का नीति विज्ञान बहुत व्यापक तथा गहन है।
पॉल एच. एपलबी मानते हैं कि राजनीति तथा प्रशासन को अलग-अलग बिन्दु मानने पर लोक प्रशासन की सर्वस्वीकार्यता तो कम होगी ही साथ ही साथ लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा भी ध्वस्त हो जाएगी। अतः इन दोनों के मध्य विभाजन अव्यावहारिक, अप्रासंगिक तथा अवास्तविक है। इसी प्रकार रॉबर्ट टी. गोलम्ब्यूस्की कहते हैं-"प्रशासन महत्त्वपूर्ण कार्यों में राजनीति को परिवर्तित कर सकता है न कि राजनीति प्रशासन को।" अतः लोक प्रशासन तथा राजनीति में द्विविभाजन नहीं होना चाहिए जबकि लोक प्रशासन की परम्परागत विचारधारा दोनों के मध्य विभाजन करती थी।
इस तरह का विभाजन अव्यहारिक, अप्रासंगिक तथा अवास्तविक माना जाता है।

3. यह सम्बन्धात्मक है और ग्राहक केन्द्रित दृष्टिकोण पर बल देता है। यह इस बात पर बल देता है कि नागरिक को यह बताने का अधिकार होना चाहिए कि उनको क्या, किस प्रकार और कब चाहिए? संक्षेप में लोक प्रशासन को नागरिकों की रूचि एवं आवश्यकतानुसार सेवा करनी चाहिए।

4. यह परिवर्तन तथा नवीनता का समर्थक है। परम्परागत दृष्टिकोणों को त्यागता हुआ और व्यवहारवादी दृष्टिकोण की दीवार को लांघता हुआ नवीन लोक प्रशासन उत्तर व्यवहारवादी दृष्टिकोण के निकट पहुँच चुका है। साथ ही इसमें पारिस्थिकी एवं पर्यावरण के अध्ययन पर अधिक बल दिया जाता है।

5.नवीन लोक प्रशासन के समर्थक इसे एक प्रगतिशील विज्ञान बनाना चाहते हैं ताकि शीघ्र परिवर्तित वातावरण के अनुरूप यह अपने आपको ढाल सके। दढ़ता तथा यथास्थितिवाद का विरोध करते हुए नवीनता तथा लोचशीलता पर बल देना इसकी विशेषता है। इस विचारधारा में जनता के कल्याण तथा कार्यक्रमों के प्रति निष्ठा पर बल दिया जाता है। यह ग्राहक केन्द्रित प्रशासन अर्थात् उस व्यक्ति की भावनाओं तथा आवश्यकताओं को केन्द्र बिन्दु मानने पर जोर देता है जिसके लिए लोक सेवाएँ संचालित की जा रही है। निग्रो एवं निग्रो के अनुसार, "सार्वजनिक सेवाओं का अधिकाधिक प्रभावशाली तथा मानवीय वितरण उसी स्थिति में सार्थक सिद्ध हो सकता है जबकि ग्राहक केन्द्रित प्रशासन के साथ, लोक प्रशासन में नौकरशाही को दूर किया जाए।"

6. यह मूल्यों से परिपूर्ण प्रशासन, जनसहभागिता, उत्तरदायित्व तथा सामाजिक रूप से हितप्रद कार्यों पर बल देता है। इस प्रकार नवीन लोक प्रशासन परम्परागत लोक प्रशासन से कई दृष्टियों में भिन्न है। कुछ विचारक इसे एक मौलिक विषय के रूप में प्रस्तुत करते है तो कुछ अन्य विचारक इसे परम्परागत प्रशासन का ही एक संशोधित रूप मानते हैं कैम्पबेल के अनुसार नवीन लोक प्रशासन का विषय मौलिक अध्ययन की अपेक्षा पुनर्व्याख्या पर अधिक बल देता है। इसी प्रकार एक अन्य विचारक राबर्ट टी0 गोलमब्यूस्की का कहना है कि नवीन लोक प्रशासन शब्दों में क्रांतिवाद का उद्-घोष करता है, किन्तु वास्तव में यह पुरातन सिद्धान्तों व तकनीकों की स्थिति है। यथार्थ में अगर देखा जाये तो कैम्पबेल एवं गोलमब्यूस्की जैसे विचारक पूर्वाग्रह से ग्रसित प्रतीत होते हैं। 
इस सन्दर्भ में निग्रो एंव निग्रो के इस मत से सहमति व्यक्त की जा सकती है कि नवीन लोक प्रशासन के समर्थकों ने रचनात्मक वाद-विवाद को प्रेरित किया है। उन्ही के शब्दों में “जब से नवीन लोक प्रशासन का उदय हुआ है मूल्यों और नैतिकता के प्रश्न लोक प्रशासन के मुख्य मुद्दे रहे हैं। नवीन लोक प्रशासन को जो लोग नयी बोतल में पुरानी शराब मानते है, वे लोक प्रशासन के विकास और परिवर्तन के पक्षधर नहीं माने जा सकते हैं, क्योंकि लोक प्रशासन के विचारों, व्यवहारों, कार्यशैली और तकनीकों में जो अर्वाचीन प्रवृत्तियां आयी हैं, उसे समय के बहाव के साथ स्वीकार करना होगा और इसके सकारात्मक उद्देश्यों को समर्थन देना होगा।"

7.नवीन लोक प्रशासन विकेन्द्रीकरण तथा प्रत्यायोजन का समर्थक है ताकि जनकल्याण से सम्बन्धित कार्य योजनाएँ एवं कार्यक्रम शीघ्र एवं प्रभावी ढंग से क्रियान्वित हो सके। नवीन लोक प्रशासन जन सहभागिता का समर्थन करते हुए नौकरशाही के उत्तरदायित्वों एवं प्रतिबद्धता को भी रेखांकित करता है। यह लोकतांत्रिक निर्णय प्रक्रिया तथा गैर नौकरशाही परिस्थितियों का भी यह समर्थन करता है।
एलन कैम्पबेल के अनुसार, "नवीन लोक प्रशासन के समर्थकों द्वारा जो विषय बड़े जोर-शोर के साथ विश्व के सामने लाए गए थे, वे वास्तव में नए नहीं थे किन्तु यह सत्य है कि इन्हें नवीन लोक प्रशासन के प्रतिपादकों द्वारा अधिक बल तथा सामाजिक परिवर्तन के प्रति शक्तिशाली प्रतिबद्धता के साथ उठाया गया था।" निर्णय निर्माण में जन प्रतिनिधित्व, सामाजिक समानता का आदर्श मूल्य एवं जनसाधारण की सेवा के प्रति उन्मुखता सम्बन्धी मानवीय द ष्टिकोण पर अधिक बल दिया जाना इस बात का द्योतक है कि लोक प्रशासन के सिद्धान्त एवं व्यवहार दोनों में पुनः उन्मुखीकरण की आवश्यकता है

नवीन लोक प्रशासन के लक्ष्य

नवीन लोक प्रशासन के चार प्रमुख लक्ष्य है- प्रासंगिकता, मूल्य, सामाजिक समता तथा परिवर्तना इनकी व्याख्या निम्नवत की जा
सकती है

1.प्रासंगिकता - नवीन लोक प्रशासन तथ्यों की प्रांसगिकता पर अत्यधिक बल देता है। यह परम्परागत लोक प्रशासन के लक्ष्यों- कार्यकुशलता एवं मितव्यतिता को समकालीन समाज की समस्याओं के समाधान हेतु अपर्याप्त मानता है और इस बात पर बल देता है कि लोक प्रशासन का ज्ञान एवं शोध समाज की आवश्यकता के सन्दर्भ में प्रासंगिक तथा संगतिपूर्ण होना चाहिए। मिन्नोब्रुक सम्मेलन में प्रतिनिधियों ने नीति उन्मुख लोक प्रशासन की आवश्यकता पर अपना ध्यान केन्द्रित किया और इस बात पर प्रकाश डाला कि लोक प्रशासन को सभी प्रशासनिक कार्यों के राजनीतिक एवं आदर्श निहित अर्थों एवं तात्पर्यों पर स्पष्ट रूप से विचार करना चाहिए।

2. मूल्य - नवीन लोक प्रशासन आदर्शपरक है और मूल्यों पर आधारित अध्ययन को महत्व प्रदान करता है। यह परम्परागत लोक प्रशासन के मूल्यों को छिपाने की प्रवृत्ति तथा प्रक्रियात्मक तटस्थता को अस्वीकार करते हुए ऐसे शोध प्रयासों को अपनाने पर बल देता है, जो सामाजिक न्याय के अनुरूप हों। इसके अनुसार लोक प्रशासन को खुले रूप में उन्हीं मूल्यों को अपनाना होगा जो समाज में उत्पन्न समस्याओं का समाधान कर सकें तथा समाज के दुर्बल वर्गों के लिए सक्रिय कदम उठाये।

3.सामाजिक समता - नवीन लोक प्रशासन समाज की विषमता को दूर करके सामाजिक समानता एवं सामाजिक न्याय के सिद्धान्तों को अपनाने पर बल देता है, यह इस बात पर बल देता है कि लोक प्रशासन समाज के कमजोर एवं पिछड़े वर्गों की आर्थिक, सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक पीड़ा को समझे और इस दिशा में समुचित कदम उठाये फैरडरिक्सन के शब्दों में "वह लोक प्रशासन जो परिवर्तन लाने में है, जो अल्प संख्यकों के अभावों को दूर करने का निरर्थक प्रयास करता है, संभवतः उसका प्रयोग अंततः उन्हीं अल्प संख्यकों को कुचलने के लिए किया जायेगा।" इस प्रकार नवीन लोक प्रशासन में जन कल्याण पर विशेष बल दिया गया है।

4. परिवर्तन नवीन लोक प्रशासन यथास्थिति बनाये रखने का विरोधी है और सामाजिक परिवर्तन में विश्वास करता है। इसमें इस बात पर बल दिया जाता है कि परिवर्तनों के समर्थक लोक प्रशासन को केवल शक्तिशाली हित समूहों या दबाव समूहों के अधीन कार्य नहीं करना चाहिए, बल्कि इसे तो सम्पूर्ण सामाजिक आर्थिक तंत्र में परिवर्तन का अगुवा बनना चाहिए। इस प्रकार सामाजिक आर्थिक परिवर्तन के लिए एक सशक्त अभिमुखता ही नवीन लोक प्रशासन की अनिवार्य विषय वस्तु है। शीघ्र परिवर्तित वातावरण के अनुरूप संगठन के नवीन रूपों का विकास किया जाना चाहिए।

इस प्रकार कहा जा सकता है कि परम्परागत लोक प्रशासन की अपेक्षा नवीन लोक प्रशासन जातिगत कम और सार्वजनिक अधिक, वर्णनात्मक कम और आदेशात्मक अधिक, संस्था उन्मुख कम और जन प्रभाव उन्मुख अधिक तथा तटस्थ कम और आदर्शात्मक अधिक है। साथ ही इसमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने पर भी बल दिया गया है।



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