Ticker

16/recent/ticker-posts

header ad

भारत का राष्ट्रपति - शक्तियां एवं कार्य। (President of India - Powers and Functions)


प्रस्तावना 
राष्ट्रपति राज्य की एकता, गौरव एवं प्रतिष्ठा का प्रतीक है और शानशौकत व गौरव की दृष्टि से राष्ट्रपति भारत का प्रथम नागरिक है। राष्ट्रपति भारतीय गणराज्य का सर्वांच्च पद है। संविधान के प्रावधान के अनुसार राष्ट्रपति संघ का शासन चलाने वाला व्यक्ति है। संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित है और वही इस शक्ति का स्रोत है। जिसमें राष्ट्राध्यक्ष इंग्लैंड के सम्राट की भांति कार्यपालिका का नाममात्र संवैधानिक प्रधान होता है और वास्तविक कार्यपालिका शक्तियां प्रधानमंत्री और उसके मंत्रिमंडल के हाथ में होती हैं। उनकी स्थिति वैधानिक अध्यक्ष की है शासन में राष्ट्रपति का पद एक धुरो के समान है जो संकट के समय संवैधानिक यंत्र को संतुलित करता है । संवैधानिक प्रधान होने के कारण हमने राष्ट्रपति को वास्तविक शक्तियां नहीं दो हैं, उनके पद को सत्ता और गरिमा से अभिभूत किया गया है
संविधान की प्रस्तावना में "गणराज्य'" (Republic) शब्द का प्रयोग इस अर्थ में किया गया है कि भारतीय संघ का प्रधान "राष्ट्रपति" है, न कि कोई राजा अथवा सम्राट। राष्ट्रपति एक निश्चित अवधि के लिए चुना जाता है। इस दृष्टि से इमारा संविधान इंग्लैंड की अपेक्षा अमेरिका से मिलता प्रतीत होता है। इंग्लैंड एक लोकतंत्रीय देश है, परंतु गणराज्य नहीं क्योंकि वहां आज भी सम्राट का पद कायम है।

राष्ट्रपति की शक्तियां, एवं कार्य

विधिशास्त्रियों के अनुसार भारतीय राष्ट्रपति सर्वशक्तिमान है जबकि राजनीतिशास्त्रियों का यह तर्क है कि केवल वह संवैधानिक औपचारिक अध्यक्ष है जोकि शक्ति का नहीं बल्कि प्रभाव का प्रयोग करता है। भारत के राष्ट्रपति को संविधान के प्रावधानों के अनुसार दो प्रकार की शक्तियां प्राप्त है:

A. साधारण परिस्थितियों में प्रयुक्त शांतिकालीन शक्तियां

1. कार्यपालिका शक्तियाँ

अनुच्छेद (53) के अनुसार संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित है
भारत सरकार के कार्यपालिका संबंधी कार्य राष्ट्रपति के नाम से संपादित किए जाएंगे (अनुच्छद 77)।
 प्रधानमंत्री जोकि मंत्रिमंडल का अध्यक्ष है. राष्ट्रपति को कार्यपालिका शक्तियों के उपयोग में लाने के लिए सलाह देगा (अनुच्छेद 74)।
 प्रधानमंत्री का यह कर्तव्य होगा की वो राष्ट्रपति को मंत्रिमंडल के संघ प्रशासन एवं व्यवस्थापन संबंधी प्रस्ताव की सूचना दे।(अनुच्छेद 78)।
 इस प्रकार भारत का राष्ट्रपति संघीय कार्यपालिका का प्रमुख है। संविधान के म संपूर्ण कार्यपालिका शक्तियां उसे सीपी गई हैं। इन समस्त विषयों पर संस क सनाने का अधिकार है, उनसे संबंधित कार्यपालिका के अधिकार राष्ट्रपति में निहित है।

(क) राष्ट्रपति द्वारा महत्त्वपूर्ण पदों पर नियुक्तियाः

 प्रधानमंत्री प्रधानमंत्री की सलाह पर अन्य मंत्रियों की; संघ के महान्यायवादी नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक; सर्वोच्च व उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की; संघीय लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष व अंतर्राज्यीय लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष सदस्यों की राज्य के राज्यपाल को वित्त आयोग; जलविवाद 
अन्येपण आयोग; मुख्य निर्वाचन आयुक्त व निर्वाचन आयोग के अन्य सदस्यों की ST
व SC के लिए विशेषाधिकारी को; अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन य आयोग की; ओ.बी.सी. के आयोग की राजभाषा आयोग; भाषायी आयोग: और अल्पसंख्यक आयोग की नियुक्ति करता है।

स्वविवेक की शक्तिः यदि लोकसभा में किसी दल का स्पष्ट बहुमत है तो राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री की नियुक्ति में विशेष भूमिका नहीं रह जाती है। ऐसी स्थिति में बहुमत दल के नेता को राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री पद के लिए आमंत्रित किया जाता है।

 किसी भी दल का स्पष्ट बहुमत न होने पर राष्ट्रपति स्वविवेक से काम लेता है, अपने स्वविवेक से प्रधानमंत्री की नियुक्ति करता है। श्री अटल बिहारी वाजपेयी को प्रधानमंत्री के पद पर पहली बार नियुक्ति इसी आधार पर हुई, यद्यपि सरकार केवल 13 दिनों तक चल सकी । बाद में राष्ट्रपति ने एक नई परिपाटी प्रारंभ की और वह था समर्थन कर रहे दलों एवं असंबद्ध सांसदों से समर्थन पत्र हासिल करना। इसी आधार पर वाजपेयो दूसरी और तीसरी बार प्रधानमंत्री बने। 2004 के चुनाव में UPA की जीत हुई और तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम एवं 2009 में राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने भी इसी का अनुसरण डॉ. मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री नियुक्त करने में किया।

 (ख) राष्ट्रपति द्वारा जिन्हें नियुक्त किया जाता है. प्रायः उन्हें पद से हटाने की शक्ति भी उसी को प्राप्त है।
(ग) दायित्व का विभाजन मंत्रियों के मध्य करना।

 (घ) अन्य कार्य: संघीय प्रशासन के समस्त अधिकारी राष्ट्रपति के अधीनस्थ हैं। वह किसी भी तरह प्रशासनिक रिपोर्ट मांग सकता है। केंद्रशासित व कवायली क्षेत्र का प्रशासन इसके पास है, इनमें प्रशासन या पड़ोसी राज्य का राज्यपाल नियुक्त करता है।

2. विधायी शक्तियां

 राष्ट्रपति संसद का अभिन्न अंग है। संसद के एक महत्त्वपूर्ण अंग के रूप में और राष्ट्रध्यक्ष होने के नाते राष्ट्रपति को भारतीय व्यवस्थापन प्रणाली में अनेक विधायी कार्य करने होते है। जैसेसंसद को आमंत्रित एवं स्थगित करना (अनुच्छेद 58(1)(2))।
 लोकसभा को भंग करना। साधारण विधेयक पर ससंद के सदनों में मतभेद हो तो दोनों सदनों का संयुक्त अधिवेशन बुलाना। प्रत्येक अधिवेशन में राष्ट्रपति का आरंभिक भाषण होता है। राज्यसभा व लोकसभा के अध्यक्षों की नियुक्ति करता है। राज्यसभा में 12 सदस्य व लोकसभा दो आंग्ल-भारतीय सदस्यों को मनोनीत। राष्ट्रपति की स्वीकृति के बिना कोई भी विधेयक कानून नहीं बन सकता है।
 धन विधेयक पर राष्ट्रपति अपनी स्वीकृति देने से इंकार नहीं कर सकता। किंतु साधारण विधेयकों को पुनर्विचार हेतु संसद में लौटा सकता है। यदि संसद बहुमत से दोबारा पास कर दे तो राष्ट्रपति को स्वीकृति देनी ही पड़ती है। जेथी वोटोः संविधान द्वारा राष्ट्रपति को किसी विधेयक को अनुमति देने या इनकार

करने या उसे वापस लौटाने के संबंध में कोई समय सीमा निर्धारित नहीं है। यह कहता है कि यदि राष्ट्रपति विधेयक को लौटाना चाहता है तो वह विधेयक को उसे प्रस्तुत किए जाने के बाद यधाशोध लौटा देगा (अनुच्छेद 111)



समय सीमा के अभाव में भारत का राष्ट्रपति जेबी वीटो (पाँकिट वीटो) का इस्तेमाल कर सकता है। उसके लिए उसे केवल यही करना होगा कि वह विधेयक को मेज पर पढ़े रहने दे। उदाहरण के लिए, 1986 में संसद ने "भारतीय डाकघर (सशोधन) विधेयक" पारित किया था। इसके कुछ प्रावधान प्रेस स्वतंत्रता के विरुद्ध होने के कारण कटु आलोचना हुई थी। राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने इसे न तो अनुमति दी और न ही अनुमति देने से इनकार ही किया। अभी तक यह विधेयक राष्ट्रपति की जेब में ही है। अध्यादेश जारी करनाः यह व्यवस्थापन के क्षेत्र में एक अत्यात हो व्यापक शक्ति है जो कि 1935 के अधिनियम की देन है, ऐसी स्वच्छंद सत्ता संसार में किसी भी राष्ट्राध्यक्ष को प्राप्त नहीं है। अमेरिका की कार्यपालिका में शक्ति पृथक्करण होने के कारण इसका प्रश्न नहीं उठता है।

अध्यादेश को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है। अनुच्छेद 123 के अनुसार 'जब संसद का अधिवेशन न हो रहा है. राष्ट्रपति अध्यादेश जारी कर सकता है। यह संसद के कानून के समान ही प्रभावशाली होगा। परंतु ये अध्यादेश संसद का अगला अधिवेशन आरंभ होने के 6 सप्ताह पश्चात् समाप्त समझा जाएगा। यदि संसद चाहे तो इस अवधि से पूर्व भी इसको समाप्त कर सकती है।' ए.बी लाल के अनुसार किसी भी देश में जहां लिखित संविधान तथा संसदीय शासन है राज्याध्यक्ष को इतनी अधिक विस्तृत विधायी शक्ति प्राप्त नहीं हैं।

 3. वित्तीय शक्तियां

प्रत्येक वित्त-वर्ष के शुरू होने से पहले संसद के पटल पर वार्षिक वितीय विवरण तथा पूरक बजट पेश किया जाना राष्ट्रपति के अधिकार की बात है अर्थात् राष्ट्रपति के नाम से ही प्रतिवर्ष बजट वित्त मंत्री द्वारा संसद में पेश किया जाता है। कोई भी धन विधेयक राष्ट्रपति की अनुमति के बिना लोकसभा में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता। राष्ट्रपति प्रतिवर्ष लेखा परीक्षक की रिपोर्ट प्रस्तुत करता है। राष्ट्रपति समय-समय पर वित्तीय आयोग की नियुक्ति करता है जो या राज्यों के बीच करों के संबंध में उसे परामर्श देता है और वित्त आयोग की सिफारिशें वह संसद के समक्ष रखवाता है। भारत को आकस्मिक निधि पर उसका पूर्ण नियंत्रण होता है। वह संसद की स्वीकृति के बिना इसमें से अचानक पड़ने बाले खर्चों के लिए धन सरकार को दे सकता है। बह संसद से पुरक, अतिरिक्त व अपवादभूत अनुदानों की मांग कर सकता है। राष्ट्रपति कुछ राज्यों को केंद्रीय अनुदान दिलाने के लिए आज्ञा जारी कर सकता है। करों से होने वाली आय के वितरण का निर्धारण करता है।

4. न्यायिक शक्तियां

संविधान के अनुच्छेद 124 तथा 217 के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यापालयों के मुख्य न्यायाधीशों और अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति और पदच्युति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। इनको नियुक्ति के संबंध में नियमों का निर्धारण भी राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है अनुच्छेद 72 के अनुसार राष्ट्रपति को क्षमादान का अधिकार दिया गया है। ये दङ को

(1) पूर्ण रूप से क्षमा कर सकते हैं,
(2) स्थगित कर सकते हैं अथवा
(3) दंड में परिवर्तन कर सकते हैं।


 इस अधिकार का प्रयोग केवल तीन प्रकार के दडो में कर सकते है-पहला यदि किसी सैनिक न्यायालय ने दिया है, दूसरा, यदि दंड केंद्रीय कार्यपालिका के क्षेत्राधिकार के मामलों के अंतर्गत आता हो और तीसरा, यदि अपराधी को मृत्युदंङ दिया गया हो।

दंड व्यवहार में राष्ट्रपति इन अधिकारों का प्रयोग मंत्रिमंडल के परामर्श से ही करेगा। एम. वी. पायली के अनुसार 'दण्ड प्राप्त व्यक्तियों को क्षमादान करना राष्ट्रपति की न्यायिक शक्ति नहीं है। यह कार्यपालिका का विशेष अधिकार है। इसलिए इसे कार्यपालिका शक्ति ही मानना चाहिए।" अनुच्छेद 143 के अनुसार सार्वजनिक महत्व के किसी भी प्रश्न पर राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय में परामर्श ले सकते हैं।

 5. सैनिक शक्तियां

तीनों सेनाओं की सर्वोच्च कमान राष्ट्रपति में निहित है परंतु ये इस शक्ति का प्रयोग विधि के अनुसार हो कर सकेंगे। इस अधिकार के अंतर्गत-युद्ध और शांति की घोषणा करने का अधिकार, रक्षा बलों को अभिनियोजित करने का अधिकार शामिल है। लेकिन निम्नलिखित अधिकारों को संसद द्वारा विधि बनाकर विनियमित या नियंत्रित किया जा सकता है जैसे-भर्ती प्रशिक्षण तथा अनुरक्षण को राष्ट्रपति बिना संसद की मंजूरी के नहीं कर सकता।

6. कूटनीति या राजनीतिक शक्तियां

 राष्ट्रपति विदेशों में देश को प्रतिनिधित्व करते हैं। वं राजदूती, राजनयिक प्रतिनिधियों तथा
वाणिज्य दूतों की नियुक्ति करते हैं। विदेशी राजदूत और अन्य प्रतिनिधियों का स्वागत करते हैं। विदेशों से संधियों और अंतर्राष्ट्रीय समझौते आदि राष्ट्रपति के नाम से किए जाते हैं। व्यवहार में ये तभी लागू होते हैं जब इन पर संसद की स्वीकृति मिल जाती है।

 7. राज्यों के संबंध में शक्तियां

डॉ. महादेव प्रसाद शर्मा के अनुसार, 'राज्य के विशेष प्रकार के विधेयकों को अनुमति देने की राष्ट्रपति की शक्ति मास्तविक तथा अबाध है। राष्ट्रपति राज्य के राज्यपाल व न्यायाधीशों की नियुक्ति करता है। राज्यों की अधिनियम बनाने के लिए स्वीकृति आवश्यक है, जैसे-राज्य द्वारा संपत्ति प्राप्त करने हेतु अधिनियम, किसी राज्य के अंदर या दूसरे राज्यों ' के साथ व्यापार, आदि पर प्रतिबंध लगाने वाले विधेयकों को राज्य की विधानसभा प्रस्तुति से पूर्व राष्ट्रपति की स्वीकृति आवश्यक है।

इस प्रकार भारत के राष्ट्रपति को शांतिकाल में विस्तृत शक्तियां प्राप्त हैं। शांतिकाल में यह अपेक्षा की गई है कि यह संवैधानिक अध्यक्ष के रूप में ही कार्य करेगा क्योंकि हमारे देश में संमदात्मक प्रणाली अपनाई गई है। वस्तुतः उसको समस्त शक्तियों का प्रयोग प्रधानमं के नेतृल में मंत्रिमंडल करेगा, जो संसद के प्रति उत्तरदायी होगा।

B. आपातकालीन शक्तियां

संविधान के भाग 18 (अनुच्छेद 352 से 360 तक) में आपातकाल की स्थिति उत्पन्न होने पर राष्ट्रपति को संकटकाल से निपटने के लिए विस्तृत अधिकार प्रदान किए गए हैं।

भारतीय संविधान निर्माण के समय आपातकालीन व्यवस्था की जीतनी आलोचना हुई वैसी अन्य किसी व्यवस्था की नहीं हुई थी
एन. वी, कामध ने यहा तक कहा कहा था की 'संसार और किसी लोकतंत्रीय देश में इस तरह की व्यवस्था देखने को नहीं मिलती है
 राष्ट्रपति को राष्ट्रीय आपात की स्थिति में निपटने हेतु आपातकालीन दी गई है। जैसे

 1. युद्ध बाह्य आक्रमण या साम्य विद्रोह से उत्पन्न आपातकाल

 अनुच्छेद 352 के अनुसार, यदि राष्ट्रपति को यह विश्वास हो जाए कि युद्ध या आंतरिक अगाति के कारण भारत या उसके किसी भाग की गति का प्रदर होने का भय है या वास्तविक रूप में इस प्रकार की परिस्थितिया उत्पन्न होने पर राष्ट्रीय आपात की घोषणा कर सकता है। अब तक 1962, 1965, 1971, 1975 में राष्ट्रीय आपातकाल लागू हुआ है। में 44संविधान संशोधन द्वारा निम्न व्यवस्थाएं की गई, जिससे शासक वर्ग संकटकालीन शक्तियों का दुरुपयोग न किया जा सके। 44वां संविधान संशोधन के अनुसार

• "आंतरिक अशांति" को जगह "सशस्त्र विद्रोह " शब्दावली का प्रयोग
• .केंद्रीय मंत्रिमंडल के लिखित परामर्श के उपरांत आपातकाल की घोषणा 
• . घोषणा किए जाने के एक माह के अंतर्गत संसद के विशेष बहुमत द्वारा अनुमोदन 

विशेष बहुमत -संसद के दोनों सदनों के कुल बहुमत एवं संसद मे उपस्थित और मतदान में भाग लेने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत में इसकी स्वीकृति आवश्यकत तथा इसे लागू रखने के लिए प्रति 6 माह बाद संसद को स्वीकृति प्राप्त करना आवश्यक होगा।

 • सामान्य या साधारण बहुमत द्वारा आपातकाल की घोषणा समाप्त की जा सकती है
• 42वें संविधान संशोधन की व्यवस्था है कि संकट की घोषणा पूरे देश के लिए या देश के किसी एक या कुछ भागों के लिए की जा सकती है।यह व्यवस्था वर्तमान में भी बनी हुई है।
• अनुच्छेद 19 द्वारा प्रदत नागरिकों को 6 स्वतंत्रताएं स्थगित की जा सकती है -42 संशोधन द्वारा ही सात स्वतंत्रताओं में से छठी स्वतंत्रता संपत्ति के अधिकार को समाप्त कर दिया गया है।
• 44वें संशोधन द्वारा-आपातकाल में भी जीवन और शारीरिक स्वाधीनता के अधिकार को समाप्त या सीमित नहीं किया जा सकेगा। आपातकालीन घोषणा को न्यायोग्य (justiciable) बना दिया गया है अर्थात आपातकालीन घोषणा को संबंधित न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है।

2. राज्यों में संवैधानिकता के विफल होने पर-अनुच्छेद 356

• अगर राष्ट्रपति को राज्यपाल की रिपोट या किसी अन्य प्रकार से यह सतुष्टि हो जाए कि ऐसी परिस्थितिया उत्पन्न हो गई. जिससे किसी राज्य का शासन विधान के उपमंधों के अनुसार नहीं चलाया जा सकता. तो वो राज्य में संकटकाल की घोषणा कर सकता है। 42वे संशोधन के अनुसार किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन 6 माह तक रहता है। परंतु इससे अधिक समय तक संसद को स्वीकृति, निर्वाचन आयोग के परामर्श तथा अन्य कारणों से आपातकाल की अवधि बढ़ाई जा सकती है। राष्ट्रपति शासन में राज्य का शासन राष्ट्रपति या उसके द्वारा नियुक्त अधिकारी द्वारा चलाया जाता है। राज्य विधानमंडल को शक्तियां राष्ट्रपति द्वारा संसद या किसी अन्य उपयुक्त अधिकारी को हस्तांतरित की जा सकती है उच्च न्यायालय को छोड़कर अन्य समस्त शक्तियां राष्ट्रपति अपने हाथ में ले सकता है। लोकसभा में राष्ट्रपति राज्य को संचित निधि से धन स्वीकृत कर सकता है।

3. वित्तीय संकट-अनुच्छेद 360

• यदि राष्ट्रपति को यह विश्वास एवं संतुष्टि हो जाए कि भारत या उसके किसी भाग में आर्थिक साख को खतरा है तो वह वितीय संकट की घोषणा कर सकता है। वित्तीय संकट के प्रभाव

1. संघ तथा राज्य के किसी वर्ग के अधिकारियों के बेतन में कमी
2. राज्य के समस्त वित्त-विधेयक राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए पेश किए जाने के निर्देश दिए जा सकते हैं।

3 संघीय कार्यपालिका राज्य कार्यपालिका को शासन संबंधी आदेश दे सकती है।

4. राष्ट्रपति के द्वारा केंद्र या राज्य के मध्य धन सम्बन्धी बटवारे के प्रवधानो में संशोधन किया जा सकता।अभी तक देश मे वितीय सकट की घोषणा नहीं हुई है।


Disclaimer:Shubharticles.blogspot.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है | हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध लिंक और सामग्री उपलब्ध कराते है यदि यह किसी
कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करें Amanyogi190@yahoo.com

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ