प्रशासन को सामान्य रूप से दो भागों में बांटा जाता है- लोक प्रशासन (Public Administration) तथा निजी प्रशासन (Private Administration) किसी देश की सरकार द्वारा किए जाने वाले और समूची जनता से सम्बन्ध रखने वाले कार्यों को 'लोक प्रशासन के अन्तर्गत समझा जाता है। इसके प्रतिकूल -निजी प्रशासन से तात्पर्य है वे कार्य जो व्यक्तिगत या गैर-सरकारी संस्था द्वारा निजी लाभ के लिए किए जाते हों। इनमें लोकहित की भावना नहीं होती।
जो विचारक लोक प्रशासन और निजी प्रशासन में विभेद करते हैं उनमें पॉल एच० एपलबी, सर जोसिया स्टाम्प, हरवर्ट साइमन, पीटर ड्रकर तथा फैलिक्स ए० निग्रो प्रमुख हैं।
दूसरी ओर हेनरी फेयाल, मैरी पारकर फोलेट, मूने एवं रैली, लूथर गुलिक, आर० शैल्टन तथा एल० डरविक आदि विद्वान मानते हैं कि लोक प्रशासन और निजी प्रशासन में कोई भेद नहीं है।
लोक प्रशासन और निजी प्रशासन में समानताएँ
विभिन्न विचारकों के द्वारा लोक प्रशासन और निजी प्रशासन में समानताओं के सन्दर्भ में जो तर्क दिए गए हैं उनके आधार पर हम इनके मध्य समानताओं को निम्न बिन्दुओं से स्पष्ट कर सकते हैं:
1. अनुसन्धान एवं नवीन तकनीक (Research and New Techniques): नयी सम्भावनाओं के लिए अनुसन्धान करना एवं नयी तकनीक को अपनाना लोक प्रशासन एवं निजी प्रशासन दोनों ही के लिए आवश्यक है अन्वेषण दोनों ही प्रकार के प्रशासन के लिए आवश्यक है और उसका स्वरूप भी दोनों में एक ही प्रकार का है। दोनों ही प्रशासन नयी खोजों द्वारा नवीन सिद्धान्तों, विधाओं, उपकरणों आदि के आविष्कार में संलग्न रहते हैं लोक प्रशासन तथा निजी प्रशासन दोनों ही के विभागों में दक्ष कर्मचारी विभिन्न प्रयोगशालाओं में शोध-कार्यों (Research Works) में व्यस्त रहते हैं ताकि नयी सम्भावनाओं का पता लगाकर उन्हें अपनाया जा सकें।
2.प्रशासन की समान तकनीक (Same Techniques of Administration): लोक प्रशासन एवं व्यक्तिगत प्रशासन में एक ही प्रकार की तकनीकों का उपयोग किया जाता है। फाइल रखना, उन पर टिप्पणी लिखना, लेखा-जोखा रखना, अंकेक्षण करवाना या इसी प्रकार की अन्य क्रियाओं की प्रकृति जैसी निजी प्रशासन में होती है वैसी ही लोक प्रशासन में होती है। दोनों ही प्रशासनों के लिए वैज्ञानिक प्रबन्ध (Scientific Management) का सिद्धान्त समान रूप से हितकर है। प्रशासकीय अधिकारी महाविद्यालय, हैदराबार में निजी उद्योगों, सरकारी उद्योगों और शासकीय विभागों में कार्यरत कर्मचारियों को एक ही तरह की ट्रेनिंग दी जाती है। इस व्यवस्था के तहत यही तर्क दिया जाता है कि जो बातें लोक प्रशासन में सफलता दिला सकती हैं वे ही बातें निजी प्रशासन में भी सफलता दिला सकती हैं।
3.जन-सम्पर्क एवं उत्तरदायित्व (Public Relations and Responsibility): लोक प्रशासन एवं निजी प्रशासन दोनों में ही लोक-सम्पर्क का महत्वपूर्ण स्थान है। लोक प्रशासन में जन-सम्पर्क के महत्त्व को बहुत पहले ही समझ लिया गया था और अब सार्वजनिक क्षेत्र में भी इसके महत्त्व को पहचाना जाने लगा है उपभोक्ता की सम्प्रभुता व्यक्तिगत प्रशासन का मूल मन्त्र है। विभिन्न व्यवसायों में प्रतिद्वन्द्विता इतनी अधिक बढ़ गई है कि निजी क्षेत्र की कम्पनियों कई प्रकार के प्रलोभन देकर आम जनता को अपनी ओर आकृष्ट करने लगी हैं। अतः दोनों ही प्रशासनों में जन-सम्पर्क एवं उत्तरदायित्व की उपयोगिता निर्विवाद रूप से उपयोगी है।
4.संगठन का महत्त्व (Importance of Organisation): प्रशासन चाहे शासकीय तौर पर किया गया जाए या निजी तौर पर, संगठन की आवश्यकता दोनों में पड़ती है। संगठन प्रशासन की शरीर है। यदि मानवीय एवं भौतिक साधनों का उचित संगठन न किया जाए, तो प्रशासन के लक्ष्यों की प्राप्ति नहीं की जा सकती।
5.अधिकारियों का उत्तरदायित्व (Responsibility of officials): अधिकारियों के उत्तरदायित्व की द ष्टि से भी लोक प्रशासन एवं निजी प्रशासन समान हैं। लोक प्रशासन के अधिकारी जहाँ जनता के प्रति उत्तरदायी हैं वहाँ निजी प्रशासन के अधिकारी अपने उपभोक्ताओं (Customers) के प्रति उत्तरदायी हैं। उत्तरदायित्व का सिद्धान्त दोनों ही में समान रूप से लागू होता है। प्राप्त साधनों का अधिकतम उपयोग करके अपने लक्ष्य को प्राप्त करना दोनों ही प्रशासनों का मुख्य ध्येय है। कभी-कभी ऐसा होता है कि सरकार निजी क्षेत्र के कारखानों, बैंक अथवा अन्य संस्थानों का राष्ट्रीयकरण (Nationalisation) करती है। ऐसी परिस्थितियों में निजी क्षेत्र के सभी अधिकारी और कर्मचारी लोक-सेवा में आ जाते हैं और वे सफलतापूर्वक अपने कार्यों का सम्पादन करते हैं
6. विकास एवं प्रगति का सिद्धान्त (Theory of Development and Progress): विकास एवं प्रगति का सिद्धान्त लोक प्रशासन एवं निजी प्रशासन दोनों ही के लिए लागू होता है। लोक प्रशासन हो या निजी प्रशासन, दोनों का ही लक्ष्य संगठन एवं कुशल प्रबन्ध द्वारा प्रगति तथा विकास करना है विकास एवं प्रगति न हो तो कोई भी प्रशासन म तप्रायः और शिथिल माना जायेगा। क्योंकि प्रशासन की सफलता का मापदण्ड उसका विकास एवं प्रगति ही है। निजी प्रशासन में अगर विकास नहीं हो तो कम्पनी आर्थिक लाभ नहीं कमा सकती और उसे बन्द कर देना पड़ता है।
7.निर्धारित नीतियों को कार्यान्वित करना (Implementation of Fixed Policies): प्रत्येक प्रशासन की अपनी एक निर्धारित नीति होती है और उस निर्धारित नीति पर योजनाबद्ध ढंग (plammed way) से अमल किया जाता है। जिस प्रकार लोक प्रशासन का उद्देश्य लोक-नीति को कार्यान्वित करना है, उसी प्रकार निजी प्रशासन का उद्देश्य निजी नीति का कार्यान्वयन करना है। नीति के निर्माण में भी दोनों का अपने-अपने क्षेत्र में योगदान रहता है। कभी-कभी तो दोनों के बीच विभाजन रेखा खींचना कठिन हो जाता है। सरकार द्वारा भी बहुत से ऐसे कार्य किये जाते हैं जो एक छोटे से वर्ग के कल्याण के लिए होते हैं। उसी प्रकार निजी प्रशासन द्वारा भी सार्वजनिक कल्याण के बहुत से काम किये जाते हैं।
8. प्रशासन के समान सिद्धान्त (Same Theory of Administration): जो भी मान्य प्रशासनिक सिद्धान्त है वह दोनों के लिए ही लागू होता है। आदेश की एकता (Unity of Command) का सूत्र जितना निजी प्रशासन के लिए उपयोगी है उतना ही लोक प्रशासन के लिए भी उपयोगी है। लूथर गुलिक के 'POSDCORB' सिद्धान्त की मान्यता लोक प्रशासन एवं निजी प्रशासन दोनों के लिए ही समान रूप से लागू होती है। योजना, संगठन, समन्वय, निर्देशन, वित्त और कर्मचारियों की आवश्यकता दोनों ही प्रशासनों को होती है। एक बड़े संस्थान का प्रशासन चाहे वह निजी क्षेत्र में हो या सार्वजनिक क्षेत्र में हो, ऊपर से देखने पर साधारणतः एक समान ही दिखायी पड़ता है।
लोक प्रशासन तथा निजी प्रशासन : असमानता का दृष्टिकोण
(Points of Difference between Public Administration and Private Administration)
लोक प्रशासन तथा निजी प्रशासन के बीच अनेक समानताएं होते हुए भी कई बातों में भिन्नताएं एवं व्यकतिरेक ( Contrasts) पाए जाते हैं। तथा वह भिन्नताएं एवं व्यकतिरेक ( Contrasts) निम्नलिखित है
1.उद्देश्यः लोक प्रशासन का मूल लक्ष्य जन सेवा तथा सामुदायिक कल्याण ही है स्वाभाविक रूप से निजी प्रशासन का मुख्य ध्येय लाभार्जन ही बना रहता है। इस सम्बन्ध में फैलिक्स ए० निम्रो कहते हैं-"लोक प्रशासन का वास्तविक हृदय जनता की वह मूल सेवा है जो उसके द्वारा की जाती है जैसे पुलिस, अग्निशमन, सार्वजनिक निर्माण, शिक्षा, मनोरंजन, स्वच्छता, सामाजिक सुरक्षा, कृषि विज्ञान तथा राष्ट्रीय सुरक्षा इत्यादि। यही कारण है कि लोक प्रशासन का क्षेत्र इतना विस्त त है। इन सेवाओं में से प्रत्येक सेवा विभिन्न आवश्यकताओं के कारण उत्पन्न होती है जो स्वयं आधुनिक समाज में व्यक्तियों पर अत्यधिक प्रभाव डालती रहती है ।" वस्तुतः लोक कल्याणकारी राज्यों में सभी का कल्याण और कुछ विशिष्ट स्थितियों में जन संतुष्टि ही लोक प्रशासन का मुख्य उद्देश्य होता है जबकि व्यापारिक प्रतिष्ठान, लाभ कमाने के लिए बनते हैं तथा घाटे की स्थिति में बन्द भी हो जाते हैं।
2.सार्वजनिक उत्तरदायित्वः निजी प्रशासन जनता के प्रति उस रूप में जवाबदेह नहीं होता जिस प्रकार कि सरकारी विभाग होते हैं। लोक प्रशासन को समाचार-पत्रों तथा राजनीतिक दलों की आलोचनाओं का सामना करना पड़ता है। कोई भी विशिष्ट पग उठाने से पूर्व प्रशासकों को इस बात पर सावधानी के साथ विचार करना पड़ता है कि उस पर जनता की सम्भावित प्रतिक्रिया क्या होगी। प्रत्येक सरकारी कर्मचारी को जनता की आलोचना रूपी बारूद के बीच रहना तथा कार्य करना पड़ता है। लोक प्रशासन को जनता के सामने अपने कार्यों की न्यायोचितता सिद्ध करनी पड़ती है। उस पर व्यवस्थापिका और न्यायपालिका का नियन्त्रण रहता है। इस तरह जनता के प्रति उत्तरदायित्व लोक प्रशासन का एक ऐसा लक्षण है जो निजी प्रशासन में नहीं पाया जाता।
3.व्यवहार की एकरूपताः लोक प्रशासन के अन्तर्गत व्यवहार में कुछ एकरूपता अथवा समानता पायी जाती है। लोक प्रशासन द्वारा बिना किसी प्रकार का पक्षपातपूर्ण अथवा विशिष्ट व्यवहार किए समाज के सभी सदस्यों को वस्तुएं तथा सेवाएं प्रदान की जाती हैं निजी प्रशासन में पक्षपातपूर्ण अथवा विशिष्ट व्यवहार किया जा सकता है। एक दुकानदार उस व्यक्ति को उधार देने में संकोच नहीं करता जो उससे रोज सौदा लेता है परन्तु एक डाक क्लर्क रोजाना पोस्टकार्ड खरीदने वाले को उधार नहीं दे सकता। निजी प्रशासन में उन व्यक्तियों के प्रति अगाध रूचि प्रकट की जाती है जिनसे व्यवसाय को अधिक-से-अधिक लाभ हो सकता हो।
4.क्षेत्रों में असमानताः लोक प्रशासन का विशाल क्षेत्र होता है जबकि निजी प्रशासन का क्षेत्र अत्यन्त सीमित होता है।
लोक प्रशासन जीवन के सभी क्षेत्रों में हैं जबकि निजी प्रशासन कुछ विशिष्ट क्षेत्रों में ही कार्यरत है। विशाल क्षेत्र या ध्येय होने के कारण लोक प्रशासन के विभिन्न विभागों में प्रतिस्पर्धा की भावना नहीं रहती इसके विपरीत, निजी व्यावसायिक संस्थाओं में सदैव होड़ की भावना रहती है। कोई भी निजी संगठन भले ही वह विशाल एवं विविधतापूर्ण क्यों न हो, कामकाज के क्षेत्र में, इसकी विविधता व इसके आयाम की द ष्टि से लोक प्रशासन का मुकाबला नहीं कर सकता। यहां तक कि बहुराष्ट्रीय निगमों की, जिनकी गतिविधियों का क्षेत्र विविधतापूर्ण होता है, कामकाज के फैलाव की द ष्टि से आधुनिक सरकार के साथ तुलना नहीं की जा सकती है। 1986 में प्रकाशित कार्य के बंटवारे से सम्बन्धित नियमों के अनुसार भारत सरकार कम-से-कम 2.000 तरह के कार्य करती है। निजी क्षेत्र का कोई भी संगठन इतने सारे कार्य करने का दावा नहीं कर सकता।
5.परिवेश में भिन्नताः लोक प्रशासन और निजी प्रशासन में काफी भिन्नता पायी जाती है। लोक प्रशासन को अपरिहार्य रूप से राजनीतिक परिवेश में काम करना पड़ता है। सरकारी क्षेत्र में कार्यकलाप और कार्यक्रमों का मूल्यांकन आर्थिक एवं तकनीकी कारकों के आधार पर किया जाता है, लेकिन अन्ततः इसमें महत्व राजनीति का ही रहता है। राजनीतिक परिवेश में काम करने के कारण सरकार जनता के निकट बनी रहती है और नागरिकों की अधिकाधिक सन्तुष्टि होती है। इसके विपरीत, निजी प्रशासन लागत और मुनाफे के विश्लेषण के आधार पर काम हाथ में लेता है।
जो विचारक लोक प्रशासन और निजी प्रशासन में विभेद करते हैं उनमें पॉल एच० एपलबी, सर जोसिया स्टाम्प, हरवर्ट साइमन, पीटर ड्रकर तथा फैलिक्स ए० निग्रो प्रमुख हैं।
दूसरी ओर हेनरी फेयाल, मैरी पारकर फोलेट, मूने एवं रैली, लूथर गुलिक, आर० शैल्टन तथा एल० डरविक आदि विद्वान मानते हैं कि लोक प्रशासन और निजी प्रशासन में कोई भेद नहीं है।
लोक प्रशासन और निजी प्रशासन में समानताएँ
Similarities Between Public administration and private administration
हेनरी फेयाल, एम० पी० फोलेट (M.P. Follet) और एल० उरविक (L. Urwick) का कहना है कि किसी भी प्रशासन में भेद करना व्यावहारिक नहीं है, क्योंकि सभी प्रकार के प्रशासन एक से होते हैं और उसके मौलिक लक्षण एक जैसे रहते हैं।
फेयाल के शब्दों में, "प्रशासन के अन्तर्गत केवल लोक प्रशासन का ही नहीं, अपितु प्रत्येक आकार तथा प्रकार एवं प्रत्येक नाम अथवा उद्देश्य से संचालित संस्थाओं के प्रशासन का भी समावेश होता है। समस्त संस्थाओं में नियोजन, संगठन, आदेश, समन्वय तथा नियंत्रण की आवश्यकता होती है, एवं सफलतापूर्वक कार्य संचालन के लिए सबको एक से ही सामान्य सिद्धान्तों का पालन करना होता है।
हमारे सामने बहुत से प्रशासकीय विज्ञान नहीं हैं, केवल एक ही प्रशासकीय विज्ञान है, उसे हम लोक प्रशासन तथा व्यक्तिगत, दोनों पर समान रूप से लागू कर सकते हैं।"
हेनरी फेयाल, एम० पी० फोलेट (M.P. Follet) और एल० उरविक (L. Urwick) का कहना है कि किसी भी प्रशासन में भेद करना व्यावहारिक नहीं है, क्योंकि सभी प्रकार के प्रशासन एक से होते हैं और उसके मौलिक लक्षण एक जैसे रहते हैं।
फेयाल के शब्दों में, "प्रशासन के अन्तर्गत केवल लोक प्रशासन का ही नहीं, अपितु प्रत्येक आकार तथा प्रकार एवं प्रत्येक नाम अथवा उद्देश्य से संचालित संस्थाओं के प्रशासन का भी समावेश होता है। समस्त संस्थाओं में नियोजन, संगठन, आदेश, समन्वय तथा नियंत्रण की आवश्यकता होती है, एवं सफलतापूर्वक कार्य संचालन के लिए सबको एक से ही सामान्य सिद्धान्तों का पालन करना होता है।
हमारे सामने बहुत से प्रशासकीय विज्ञान नहीं हैं, केवल एक ही प्रशासकीय विज्ञान है, उसे हम लोक प्रशासन तथा व्यक्तिगत, दोनों पर समान रूप से लागू कर सकते हैं।"
विभिन्न विचारकों के द्वारा लोक प्रशासन और निजी प्रशासन में समानताओं के सन्दर्भ में जो तर्क दिए गए हैं उनके आधार पर हम इनके मध्य समानताओं को निम्न बिन्दुओं से स्पष्ट कर सकते हैं:
1. अनुसन्धान एवं नवीन तकनीक (Research and New Techniques): नयी सम्भावनाओं के लिए अनुसन्धान करना एवं नयी तकनीक को अपनाना लोक प्रशासन एवं निजी प्रशासन दोनों ही के लिए आवश्यक है अन्वेषण दोनों ही प्रकार के प्रशासन के लिए आवश्यक है और उसका स्वरूप भी दोनों में एक ही प्रकार का है। दोनों ही प्रशासन नयी खोजों द्वारा नवीन सिद्धान्तों, विधाओं, उपकरणों आदि के आविष्कार में संलग्न रहते हैं लोक प्रशासन तथा निजी प्रशासन दोनों ही के विभागों में दक्ष कर्मचारी विभिन्न प्रयोगशालाओं में शोध-कार्यों (Research Works) में व्यस्त रहते हैं ताकि नयी सम्भावनाओं का पता लगाकर उन्हें अपनाया जा सकें।
2.प्रशासन की समान तकनीक (Same Techniques of Administration): लोक प्रशासन एवं व्यक्तिगत प्रशासन में एक ही प्रकार की तकनीकों का उपयोग किया जाता है। फाइल रखना, उन पर टिप्पणी लिखना, लेखा-जोखा रखना, अंकेक्षण करवाना या इसी प्रकार की अन्य क्रियाओं की प्रकृति जैसी निजी प्रशासन में होती है वैसी ही लोक प्रशासन में होती है। दोनों ही प्रशासनों के लिए वैज्ञानिक प्रबन्ध (Scientific Management) का सिद्धान्त समान रूप से हितकर है। प्रशासकीय अधिकारी महाविद्यालय, हैदराबार में निजी उद्योगों, सरकारी उद्योगों और शासकीय विभागों में कार्यरत कर्मचारियों को एक ही तरह की ट्रेनिंग दी जाती है। इस व्यवस्था के तहत यही तर्क दिया जाता है कि जो बातें लोक प्रशासन में सफलता दिला सकती हैं वे ही बातें निजी प्रशासन में भी सफलता दिला सकती हैं।
3.जन-सम्पर्क एवं उत्तरदायित्व (Public Relations and Responsibility): लोक प्रशासन एवं निजी प्रशासन दोनों में ही लोक-सम्पर्क का महत्वपूर्ण स्थान है। लोक प्रशासन में जन-सम्पर्क के महत्त्व को बहुत पहले ही समझ लिया गया था और अब सार्वजनिक क्षेत्र में भी इसके महत्त्व को पहचाना जाने लगा है उपभोक्ता की सम्प्रभुता व्यक्तिगत प्रशासन का मूल मन्त्र है। विभिन्न व्यवसायों में प्रतिद्वन्द्विता इतनी अधिक बढ़ गई है कि निजी क्षेत्र की कम्पनियों कई प्रकार के प्रलोभन देकर आम जनता को अपनी ओर आकृष्ट करने लगी हैं। अतः दोनों ही प्रशासनों में जन-सम्पर्क एवं उत्तरदायित्व की उपयोगिता निर्विवाद रूप से उपयोगी है।
4.संगठन का महत्त्व (Importance of Organisation): प्रशासन चाहे शासकीय तौर पर किया गया जाए या निजी तौर पर, संगठन की आवश्यकता दोनों में पड़ती है। संगठन प्रशासन की शरीर है। यदि मानवीय एवं भौतिक साधनों का उचित संगठन न किया जाए, तो प्रशासन के लक्ष्यों की प्राप्ति नहीं की जा सकती।
5.अधिकारियों का उत्तरदायित्व (Responsibility of officials): अधिकारियों के उत्तरदायित्व की द ष्टि से भी लोक प्रशासन एवं निजी प्रशासन समान हैं। लोक प्रशासन के अधिकारी जहाँ जनता के प्रति उत्तरदायी हैं वहाँ निजी प्रशासन के अधिकारी अपने उपभोक्ताओं (Customers) के प्रति उत्तरदायी हैं। उत्तरदायित्व का सिद्धान्त दोनों ही में समान रूप से लागू होता है। प्राप्त साधनों का अधिकतम उपयोग करके अपने लक्ष्य को प्राप्त करना दोनों ही प्रशासनों का मुख्य ध्येय है। कभी-कभी ऐसा होता है कि सरकार निजी क्षेत्र के कारखानों, बैंक अथवा अन्य संस्थानों का राष्ट्रीयकरण (Nationalisation) करती है। ऐसी परिस्थितियों में निजी क्षेत्र के सभी अधिकारी और कर्मचारी लोक-सेवा में आ जाते हैं और वे सफलतापूर्वक अपने कार्यों का सम्पादन करते हैं
6. विकास एवं प्रगति का सिद्धान्त (Theory of Development and Progress): विकास एवं प्रगति का सिद्धान्त लोक प्रशासन एवं निजी प्रशासन दोनों ही के लिए लागू होता है। लोक प्रशासन हो या निजी प्रशासन, दोनों का ही लक्ष्य संगठन एवं कुशल प्रबन्ध द्वारा प्रगति तथा विकास करना है विकास एवं प्रगति न हो तो कोई भी प्रशासन म तप्रायः और शिथिल माना जायेगा। क्योंकि प्रशासन की सफलता का मापदण्ड उसका विकास एवं प्रगति ही है। निजी प्रशासन में अगर विकास नहीं हो तो कम्पनी आर्थिक लाभ नहीं कमा सकती और उसे बन्द कर देना पड़ता है।
7.निर्धारित नीतियों को कार्यान्वित करना (Implementation of Fixed Policies): प्रत्येक प्रशासन की अपनी एक निर्धारित नीति होती है और उस निर्धारित नीति पर योजनाबद्ध ढंग (plammed way) से अमल किया जाता है। जिस प्रकार लोक प्रशासन का उद्देश्य लोक-नीति को कार्यान्वित करना है, उसी प्रकार निजी प्रशासन का उद्देश्य निजी नीति का कार्यान्वयन करना है। नीति के निर्माण में भी दोनों का अपने-अपने क्षेत्र में योगदान रहता है। कभी-कभी तो दोनों के बीच विभाजन रेखा खींचना कठिन हो जाता है। सरकार द्वारा भी बहुत से ऐसे कार्य किये जाते हैं जो एक छोटे से वर्ग के कल्याण के लिए होते हैं। उसी प्रकार निजी प्रशासन द्वारा भी सार्वजनिक कल्याण के बहुत से काम किये जाते हैं।
8. प्रशासन के समान सिद्धान्त (Same Theory of Administration): जो भी मान्य प्रशासनिक सिद्धान्त है वह दोनों के लिए ही लागू होता है। आदेश की एकता (Unity of Command) का सूत्र जितना निजी प्रशासन के लिए उपयोगी है उतना ही लोक प्रशासन के लिए भी उपयोगी है। लूथर गुलिक के 'POSDCORB' सिद्धान्त की मान्यता लोक प्रशासन एवं निजी प्रशासन दोनों के लिए ही समान रूप से लागू होती है। योजना, संगठन, समन्वय, निर्देशन, वित्त और कर्मचारियों की आवश्यकता दोनों ही प्रशासनों को होती है। एक बड़े संस्थान का प्रशासन चाहे वह निजी क्षेत्र में हो या सार्वजनिक क्षेत्र में हो, ऊपर से देखने पर साधारणतः एक समान ही दिखायी पड़ता है।
लोक प्रशासन तथा निजी प्रशासन : असमानता का दृष्टिकोण
(Points of Difference between Public Administration and Private Administration)
लोक प्रशासन तथा निजी प्रशासन के बीच अनेक समानताएं होते हुए भी कई बातों में भिन्नताएं एवं व्यकतिरेक ( Contrasts) पाए जाते हैं। तथा वह भिन्नताएं एवं व्यकतिरेक ( Contrasts) निम्नलिखित है
1.उद्देश्यः लोक प्रशासन का मूल लक्ष्य जन सेवा तथा सामुदायिक कल्याण ही है स्वाभाविक रूप से निजी प्रशासन का मुख्य ध्येय लाभार्जन ही बना रहता है। इस सम्बन्ध में फैलिक्स ए० निम्रो कहते हैं-"लोक प्रशासन का वास्तविक हृदय जनता की वह मूल सेवा है जो उसके द्वारा की जाती है जैसे पुलिस, अग्निशमन, सार्वजनिक निर्माण, शिक्षा, मनोरंजन, स्वच्छता, सामाजिक सुरक्षा, कृषि विज्ञान तथा राष्ट्रीय सुरक्षा इत्यादि। यही कारण है कि लोक प्रशासन का क्षेत्र इतना विस्त त है। इन सेवाओं में से प्रत्येक सेवा विभिन्न आवश्यकताओं के कारण उत्पन्न होती है जो स्वयं आधुनिक समाज में व्यक्तियों पर अत्यधिक प्रभाव डालती रहती है ।" वस्तुतः लोक कल्याणकारी राज्यों में सभी का कल्याण और कुछ विशिष्ट स्थितियों में जन संतुष्टि ही लोक प्रशासन का मुख्य उद्देश्य होता है जबकि व्यापारिक प्रतिष्ठान, लाभ कमाने के लिए बनते हैं तथा घाटे की स्थिति में बन्द भी हो जाते हैं।
2.सार्वजनिक उत्तरदायित्वः निजी प्रशासन जनता के प्रति उस रूप में जवाबदेह नहीं होता जिस प्रकार कि सरकारी विभाग होते हैं। लोक प्रशासन को समाचार-पत्रों तथा राजनीतिक दलों की आलोचनाओं का सामना करना पड़ता है। कोई भी विशिष्ट पग उठाने से पूर्व प्रशासकों को इस बात पर सावधानी के साथ विचार करना पड़ता है कि उस पर जनता की सम्भावित प्रतिक्रिया क्या होगी। प्रत्येक सरकारी कर्मचारी को जनता की आलोचना रूपी बारूद के बीच रहना तथा कार्य करना पड़ता है। लोक प्रशासन को जनता के सामने अपने कार्यों की न्यायोचितता सिद्ध करनी पड़ती है। उस पर व्यवस्थापिका और न्यायपालिका का नियन्त्रण रहता है। इस तरह जनता के प्रति उत्तरदायित्व लोक प्रशासन का एक ऐसा लक्षण है जो निजी प्रशासन में नहीं पाया जाता।
3.व्यवहार की एकरूपताः लोक प्रशासन के अन्तर्गत व्यवहार में कुछ एकरूपता अथवा समानता पायी जाती है। लोक प्रशासन द्वारा बिना किसी प्रकार का पक्षपातपूर्ण अथवा विशिष्ट व्यवहार किए समाज के सभी सदस्यों को वस्तुएं तथा सेवाएं प्रदान की जाती हैं निजी प्रशासन में पक्षपातपूर्ण अथवा विशिष्ट व्यवहार किया जा सकता है। एक दुकानदार उस व्यक्ति को उधार देने में संकोच नहीं करता जो उससे रोज सौदा लेता है परन्तु एक डाक क्लर्क रोजाना पोस्टकार्ड खरीदने वाले को उधार नहीं दे सकता। निजी प्रशासन में उन व्यक्तियों के प्रति अगाध रूचि प्रकट की जाती है जिनसे व्यवसाय को अधिक-से-अधिक लाभ हो सकता हो।
4.क्षेत्रों में असमानताः लोक प्रशासन का विशाल क्षेत्र होता है जबकि निजी प्रशासन का क्षेत्र अत्यन्त सीमित होता है।
लोक प्रशासन जीवन के सभी क्षेत्रों में हैं जबकि निजी प्रशासन कुछ विशिष्ट क्षेत्रों में ही कार्यरत है। विशाल क्षेत्र या ध्येय होने के कारण लोक प्रशासन के विभिन्न विभागों में प्रतिस्पर्धा की भावना नहीं रहती इसके विपरीत, निजी व्यावसायिक संस्थाओं में सदैव होड़ की भावना रहती है। कोई भी निजी संगठन भले ही वह विशाल एवं विविधतापूर्ण क्यों न हो, कामकाज के क्षेत्र में, इसकी विविधता व इसके आयाम की द ष्टि से लोक प्रशासन का मुकाबला नहीं कर सकता। यहां तक कि बहुराष्ट्रीय निगमों की, जिनकी गतिविधियों का क्षेत्र विविधतापूर्ण होता है, कामकाज के फैलाव की द ष्टि से आधुनिक सरकार के साथ तुलना नहीं की जा सकती है। 1986 में प्रकाशित कार्य के बंटवारे से सम्बन्धित नियमों के अनुसार भारत सरकार कम-से-कम 2.000 तरह के कार्य करती है। निजी क्षेत्र का कोई भी संगठन इतने सारे कार्य करने का दावा नहीं कर सकता।
5.परिवेश में भिन्नताः लोक प्रशासन और निजी प्रशासन में काफी भिन्नता पायी जाती है। लोक प्रशासन को अपरिहार्य रूप से राजनीतिक परिवेश में काम करना पड़ता है। सरकारी क्षेत्र में कार्यकलाप और कार्यक्रमों का मूल्यांकन आर्थिक एवं तकनीकी कारकों के आधार पर किया जाता है, लेकिन अन्ततः इसमें महत्व राजनीति का ही रहता है। राजनीतिक परिवेश में काम करने के कारण सरकार जनता के निकट बनी रहती है और नागरिकों की अधिकाधिक सन्तुष्टि होती है। इसके विपरीत, निजी प्रशासन लागत और मुनाफे के विश्लेषण के आधार पर काम हाथ में लेता है।
6.कुशलताः लोक प्रशासन में संगठन बड़े होते हैं, प्रक्रियाएँ जटिल होती हैं तथा नियंत्रण प्रक्रिया प्रायः शिथिल होती है अतः इसमें अकार्यकुशलता का वर्चस्व हो जाता है जबकि निजी प्रशासन कुशलता एवं शीघ्रता के लिए प्रसिद्ध है। यदि निजी प्रशासन में कुशलता न हो तो उसकी इकाइयों का अस्तित्व भी समाप्त हो सकता है जबकि लोक प्रशासन में अकार्यकुशलता वर्षों तक सहन की जाती है। वास्तव में जनता तथा कानून के प्रति लोक प्रशासन की जवाबदेयता ने भी इसके कार्यकरण को प्रभावित किया है क्योंकि कुशलता बढ़ाने के लिए कई बार नियमों से परे भी हटना पड़ सकता है जबकि लोक प्रशासन इसकी अनुमति नहीं देता है।
7. कार्यों का महत्वः लोक प्रशासन का कार्यक्षेत्र अत्यंत व्यापक तथा गम्भीर है जिसमें रक्षा उत्पादन, मुद्रा, परमाणु, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी से लेकर बहुमूल्य खनिज उत्पादन जैसे गम्भीर विषय भी सम्मिलित हैं तो पशुपालन, कृषि विज्ञान तथा सामुदायिक स्वच्छता जैसे सामान्य विषय भी हैं। इन कार्यों में केवल जनहित ही महत्त्वपूर्ण है जबकि निजी प्रशासन वही कार्य हाथ में लेता है जिसमें लाभ मिल सकता हो। लोक प्रशासन द्वारा प्रत्येक कार्य, उसकी बाध्यता अथवा राज्य के कर्तव्य हैं जबकि निजी प्रशासन किसी भी कार्य को अपनी इच्छा से चुनता है। निजी प्रशासन में मौखिक आदेशों को पर्याप्त महत्त्व दिया जाता है जबकि लोक प्रशासन में लिखित आदेशों को वरीयता दी जाती है।
8. पारदर्शिताः यद्यपि लोक प्रशासन के बहुत से कृत्य (जैसे निर्णयन) गोपनीय भी होते हैं तथापि इसके अधिसंख्य कार्य जनता के सामने रहते हैं। निजी प्रशासन के कार्य एवं निर्णय सभी, बन्द कमरों में जनता की निगाह से दूर रहते हैं। इस सम्बन्ध में एपलबी कहते हैं-"लोक प्रशासन, अपनी सार्वजनिक प्रकृति के कारण, निजी प्रशासन से इस मायने में भिन्न है कि लोक प्रशासन के कार्यकरण को सार्वजनिक जाँच-पड़ताल तथा आलोचनाओं का सामना करना पड़ता है। लोक सेवकों को अपने जीवन, व्यक्तित्व तथा आचरण की द ष्टि से मीडिया तथा सार्वजनिक हितों से निरन्तर जूझना पड़ता है। सार्वजनिक हितों का लोक प्रशासन में सर्वाधिक ध्यान रखा जाता है जबकि निजी प्रशासन को इन हितों की उनके संगठन एवं उद्देश्य से बाहर कभी चिन्ता नहीं होती। नागरिक अधिकार पत्र (Citizens Charter) तथा सूचना का अधिकार (Right to Information) तथा उपभोक्ता संरक्षण कानून के कारण प्रशासनिक पारदर्शिता में निरन्तर व द्धि हो रही है। लोक प्रशासन में भेदभाव करना सहज नहीं है जबकि निजी प्रशासन की यह प्रवत्ति है।
7. कार्यों का महत्वः लोक प्रशासन का कार्यक्षेत्र अत्यंत व्यापक तथा गम्भीर है जिसमें रक्षा उत्पादन, मुद्रा, परमाणु, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी से लेकर बहुमूल्य खनिज उत्पादन जैसे गम्भीर विषय भी सम्मिलित हैं तो पशुपालन, कृषि विज्ञान तथा सामुदायिक स्वच्छता जैसे सामान्य विषय भी हैं। इन कार्यों में केवल जनहित ही महत्त्वपूर्ण है जबकि निजी प्रशासन वही कार्य हाथ में लेता है जिसमें लाभ मिल सकता हो। लोक प्रशासन द्वारा प्रत्येक कार्य, उसकी बाध्यता अथवा राज्य के कर्तव्य हैं जबकि निजी प्रशासन किसी भी कार्य को अपनी इच्छा से चुनता है। निजी प्रशासन में मौखिक आदेशों को पर्याप्त महत्त्व दिया जाता है जबकि लोक प्रशासन में लिखित आदेशों को वरीयता दी जाती है।
8. पारदर्शिताः यद्यपि लोक प्रशासन के बहुत से कृत्य (जैसे निर्णयन) गोपनीय भी होते हैं तथापि इसके अधिसंख्य कार्य जनता के सामने रहते हैं। निजी प्रशासन के कार्य एवं निर्णय सभी, बन्द कमरों में जनता की निगाह से दूर रहते हैं। इस सम्बन्ध में एपलबी कहते हैं-"लोक प्रशासन, अपनी सार्वजनिक प्रकृति के कारण, निजी प्रशासन से इस मायने में भिन्न है कि लोक प्रशासन के कार्यकरण को सार्वजनिक जाँच-पड़ताल तथा आलोचनाओं का सामना करना पड़ता है। लोक सेवकों को अपने जीवन, व्यक्तित्व तथा आचरण की द ष्टि से मीडिया तथा सार्वजनिक हितों से निरन्तर जूझना पड़ता है। सार्वजनिक हितों का लोक प्रशासन में सर्वाधिक ध्यान रखा जाता है जबकि निजी प्रशासन को इन हितों की उनके संगठन एवं उद्देश्य से बाहर कभी चिन्ता नहीं होती। नागरिक अधिकार पत्र (Citizens Charter) तथा सूचना का अधिकार (Right to Information) तथा उपभोक्ता संरक्षण कानून के कारण प्रशासनिक पारदर्शिता में निरन्तर व द्धि हो रही है। लोक प्रशासन में भेदभाव करना सहज नहीं है जबकि निजी प्रशासन की यह प्रवत्ति है।
निष्कर्ष
लोक प्रशासन एवं निजी प्रशासन के बीच भेद समाप्त हो रहा है विभिन्न विद्वानों के द्वारा रखे गए विचारों को जानने और दोनों के मध्य समानताओं और असमानताओं के बिंदुओं को पढ़ने पश्चात् हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि दोनों के बीच अन्तर केवल प्रकार एवं मात्रा का है।
आज व्यक्तिगत प्रशासन में भी कार्यक्षेत्र बढ़ जाने के कारण लालफीताशाही (Red-tappism) की प्रवृति आ गई है। उधर लोक प्रशासन में भी (बढ़ती हुई बेरोजगारी के कारण) योग्यता को नियुक्ति का आधार मानने पर अधिक बल दिया जा रहा है और कठिन प्रतियोगिता परीक्षा (Tough Competitive Examination) पास करने के बाद ही योग्यतम व्यक्ति को एक अदना सा पद मिल पाता है। फलतः लोक प्रशासन की गुणवत्ता और कार्यकुशलता में विकास हुआ है। वर्तमान समय में यह कहना तर्कसंगत नहीं कि व्यक्तिगत प्रशासन में आर्थिक हितों की प्रधानता है। आज के युग में कोई भी प्रशासन तब तक सफलता की आशा नहीं कर सकता जब तक कि उसमें लोक-कल्याण की भावना को स्थान न दिया जाये।
आज की स्थिति तो यह है कि दोनों एक-दूसरे के निकट आ रहे हैं तथा दोनों एक-दूसरे के गुणों को अपना रहे हैं और इनके बीच ऐसा कुछ नहीं रह गया है जिसे किसी स्पष्ट विभाजक रेखा द्वारा एक-दूसरे से अलग किया जा सके।
वस्तुतः दोनों प्रशासन में कोई विशेष अन्तर नहीं है और दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जहां एक ओर लोक प्रशासन समाज सेवा, जन-कल्याण तथा राष्ट्रीय विकास में भूमिका निभाते हैं वहीं दूसरी ओर निजी प्रशासन पर भी अनेक कानूनी बाध्यताएं हैं। सार्वजनिक उपक्रमों के माध्यम से सरकार भी मुनाफा कमाना चाहती है और यही कारण है कि रुग्ण सार्वजनिक उपक्रम (Sick Public Undertakings) बन्द किये जा रहे हैं। पब्लिक च्वाइस के सिद्धान्त (Theory of Public Choice), लोक प्रबन्ध (Public Management) तथा गुड गर्वनेंस (Good Governance) की आधुनिक अवधारणाओं ने लोक प्रशासन तथा निजी
प्रशासन के मध्य अन्तर को और भी न्यून कर दिया है।
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