यह आर्टिकल आधुनिक अंतर्राष्ट्रीय संबंध के विषय में वैश्विक स्तर की व्यवस्था के उद्भव एवं विकास की विवेचना करता है। विभिन्न चिंतकों ने राज्य व्यवस्था के उद्भव की जड़े 1648 की वेस्टफेलिया संधि में ही खोजी जिससे 30 वर्षीय युद्ध पर विराम लगा। इस भाग के अंतर्गत हम वेस्टफेलिया के पूर्व की स्थिति , वेस्टफेलिया संधि एवं उसके बाद की विश्व व्यवस्था का आकलन करेंगे।
पूर्व-वेस्टफेलिया स्थिति
वेस्टफेलिया संधि से पहले भी राज्य मौजूद थे और आपसी संबंध में उपस्थित थे, परन्तु उन राज्यों को संप्रभुता नहीं प्राप्त थी, क्योंकि उन्हें रोमन चर्च दवारा सीमित किया जाता था। उस दौरान लोग संप्रभु इकाइयों का हिस्सा नहीं थे। मानव इतिहास पर नज़र डाले तो हम पाते हैं कि मनुष्य ने हमेशा से ही अपनी सहूलियतों के लिए किसी-न-किसी राजनीतिक व्यवस्था को स्थापित किया है। इन व्यवस्थाओं में सबसे महत्त्वपूर्ण रोमन तथा ओटोमन साम्राज्य थे। आगे के वर्षों में मानव इतिहास में राष्ट्र राज्यों की उत्पत्ति हुई और वर्तमान तक उन्हीं का अस्तित्व स्थापित है। परंतु ऐसा हो सकता है कि इन राष्ट्र राज्यों की भविष्य में प्रासंगिकता खत्म हो जाए और किसी अन्य प्रकार की राजनीतिक व्यवस्थाएँ जन्म ले लें। हर राजनीतिक व्यवस्था एक लंबे अंतराल में धीरे-धीरे विकसित होती है और मानव अपने हितों, आकांक्षाओं एवं परिस्थितियों के अनुसार उन व्यवस्थाओं को अपनाता है। राज्य की प्रकृति के समान राजनीतिक इकाइयों का अस्तित्व हम ग्रीस में 500-100 ईसा पूर्व समय काल में देख सकते हैं जहाँ आधुनिक राज्यों जैसी ही कुछ व्यवस्थाएँ मौजूद थीं। इस समय काल के दौरान ग्रीस में नगर राज्य या पोलिस मौजूद थे जिनमें सबसे प्रमुख स्पार्टा, एथेंस और कोरिय थे। हालांकि, जैसे कि पहले बताया गया कि ये व्यवस्थाएँ विशेषतात्म्क एवं कार्यात्मक रूप से आधुनिक राज्यों से काफी भिन्न थे एवं इनकी तरह संप्रभु नहीं ये। गरीस के इस नगर राज्य आधारित व्यवस्था का अंत रोमन सामाज्य के वर्चस्व के विस्तार के साथ हुआ, पश्चिम एशियाई और उत्तरी अफ्रीका के बहुत बड़े भाग इस सामाजय के अधिपत्य थे।
रोमन सामाज्य विभिन्न राजनीतिक इकाइयों को अपने अधिपत्य में लेकर उन्हें अपने अधीन दर्जा देता था बजाए उनके साथ समान स्तर पर समायोजन करके। इस संदर्भ में अन्य राजनीतिक व्यवस्थाओं के पास मुख्यतः दो ही उपाय बचते थे या तो रोमन सामराज्य के अधिपत्य और अपनी अधीनता को स्वीकार करना या उसके विरुद्ध शस्त्र उठाकर जवाबी हिंसा करना। इसी प्रकार के विरोधों के नतीजे में ही सदियों तक चले रोमन सामाज्य का अंत भी हुआ। रोमन सामाज्य के पतन के पश्चात् दो नए सामाज्यों का उदय हुआ एक पश्चिम यूरोप में और दूसरा पूर्व का बाईजानटाईन साम्राज्य। इसके अतिरिक्त मध्य पूर्व मे इस्लामिक प्रकृति के सामाज्य भी थे और भारत एवं ईरान की समानांतर सभ्यताएँ भी जारी थीं। इसी संदर्भ में हम चीनी सामाज्य को भी देखते हैं जो सबसे प्राचीनतम सामाज्यां में से एक रहा जिसके अनेकानेक शासक रहे। संपूर्ण मध्यकालीन युग इन्हीं तरह के सामाज्यवादी व्यवस्थाओं व उनके मध्य हुए संघर्षों का गवाह रहा। इस समय काल में राज्य सामाज्यों के रूप में अस्तित्व में थे। परंतु वे आधुनिक समझ के अनुसार स्वतंत्र व संप्रभु नहीं थे न ही उनकी कोई सुनिश्चित सीमाएँ व क्षेत्रीयता थी अर्थात् जिस प्रकार की राजनीतिक स्वतंत्रता एवं क्षेत्रीय संप्रभुता आधुनिक राज्यों के संबंध में पाई जाती है वैसी वेस्टफेलिया से पूर्व के समय काल के इन सामाज्यों में अनुपस्थित थी। यह समय काल संघर्ष, विवाद, संकट एवं युधों का भी समय काल रहा।
वैस्टफेलिया की संधि एवं आधुनिक राज्य व्यवस्था का उदय
वर्तमान की अंतर्राष्ट्रीय राज्य व्यवस्था की स्थापना वर्ष 1648 वेस्टफेलिया संधि के हस्ताक्षर होने से ही संबंधित है। इस संधि के साथ ही 1618 से चल रहे तीस वर्षीय युद्ध का अंत हो गया, जो धार्मिक कारणों से जारी था। तीस वर्षों तक चला यह युदध रोमन सामाज्य के अंदर हैप्सबर्ग के कैथोलिक और बोहिमिया के प्रोटेस्टेंट के बीच विवाद पर आधारित था। छोटे दर्जे के विवाद से शुरू हुआ यह संघर्ष धीरे-धीरे अत्यधिक बड़े राजनीतिक उथल-पुथल एवं युद्ध में तब्दील हो गया जिसमें कई अन्य कर्ता भी शामिल हो गए। एक तरफ कैथोलिक पक्ष में ऑस्ट्रिया व स्पेन शामिल थे तो वहीं दूसरी ओर प्रोटेस्टेंट के पक्ष में डेनमार्क, फ्रांस, और स्वीडन खड़े थे। अतः इस युद्ध में सम्पूर्ण यूरोप ही शामिल हो गया था और यूरोप का अधिकतर भाग इस युद्ध की चपेट में आकर तबाह भी हो गया था। वेस्टफेलिया संधि को हस्ताक्षरित कर सभी यूरोपीय शक्तियों ने आपस में एक-दूसरे की संप्रभूता एवं स्वतंत्रता का सम्मान करने का निर्णय व आश्वासन लिया तथा शांति की स्थापना की। इसके बाद एक नई प्रकार की राजनीतिक इकाई की स्थापना हुई जिसकी प्रकृति एवं संरचना पहले से भिन्न थी, जो असल में आधुनिक राज्य था। इन आधुनिक राज्यों की मुख्य विशेषता इनकी संप्रभुता थी। इसके अतिरिक्त इस संधि के बाद राज्यों के मध्य कूटनीति एवं मध्यस्थता में भी वृद्धि हुई। राज्यों एवं उनमें निवासित जनसंख्या के मध्य एक नये प्रकार के संबंधों का विकास भी हुआ। साथ ही अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में नये प्रकार के कानूनों और संरचनाओं की भी स्थापना हुई। वर्तमान की सबसे महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्था संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना होना भी इसी का नतीजा माना जा सकता है। आज की अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था और इसमें होने वाली सभी घटनाओं की जड़े कहीं-न-कहीं वेस्टफेलिया की संधि से ही जुड़ी हुई हैं। वेस्टफेलिया की इस शांति संधि के पश्चात राज्य ही अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में एकमात्र वैधानिक प्राधिकार एवं सत्ता के स्रोत के रूप में उभर कर सामने आया। अब केवल संप्रभु राष्ट्र राज्य ही युधों पर जा सकते हैं, गठबंधन में आ सकते हैं और विभिन्न संघ काहिस्सा बन सकते हैं। अंततः इस संधि के माध्यम से संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता, राजनीतिक स्वतंत्रता एवं समानता के सिद्धांतों की अंतर्राष्ट्रीय राज्य व्यवस्था में स्थापना हुई। उत्तर वेस्टफेलिया की राज्य व्यवस्था
1648 से आरम्भ वेस्टफेलियन व्यवस्था अगली कुछ ही शताब्दियों में यूरोप से निकलकर पूरे विश्व में स्थापित हो गयी और इस व्यवस्था की प्रासंगिकता अनेक कारणों से बढ़ी। पहला, इसने वैश्विक राजनीति को धर्म व परम्पराओं से पृथक करके राज्य "केटि किया। दूसरा, इस संधि व व्यवस्था ने अंतर्राष्ट्रीय संबंध में संप्रभुता के सिद्धांत को मुख्य रूप से स्थापित किया। तीसरा, इसने यह विचार दिया कि वैश्विक राज्य के दायरे मर सभी राज्यों का दर्जा सामान होगा, अर्थात समानता को बढ़ावा। इन्हीं विशेषताओं के कारण धीरे धीरे एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में भी वेस्टफेलिया व्यवस्था का विस्तार होता गया। इस व्यवस्था के बाद प्रचलित कूटनीतिक चलनों ने प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान व उसके बाद अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को स्थापित करने का प्रयास किए गए। प्रथम विश्वयुद्ध के बाद स्थापित राष्ट्र संघ (लीग ऑफ नेशंस) और द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद 1945 स्थापित संयुक्त राष्ट्र संघ (यूनाइटेड नेशंस) वेस्टफेलिया शांति की विशेषताओं को परिलक्षित करते हैं।
वेस्टफेलिया की संधि ने ही उतर वेस्टफेलिया विश्व की राह तय की और इस उत्तर वेस्टफेलिया विश्व में संघर्ष और सहयोग के साथ साथ सह-अस्तित्व की भावना ही वर्तमान सच्चाई है। परन्तु कुछ विशेष प्रकार के मुद्दों और घटनाओं के कारण समानता के सिद्धांत से शुरू हुई इस व्यवस्था में थोड़ी पदसोपनीयता की उपस्थिति दर्ज होती है।
वेस्टफेलिया व्यवस्था के समक्ष समस्याएँ एवं संकट
विभिन्न विचारकों और नीति निर्धारकों के मध्य इस प्रश्न पर विवाद है कि क्या वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था आज भी वेस्टफेलिया व्यवस्था से प्रभावित हो रही है? वर्तमान विश्व वैश्वीकरण के प्रभाव के अंतर्गत कार्यरत है, साथ ही यह बहुराष्ट्रीयता के साथ-साथ संकीर्णता का भी अनुपालन कर रहा है। आज कई गैर राज्य कर्ता जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठन एवं बहुराष्ट्रीय एजेंसियों संप्रभु राज्य के साथ प्रतिद्तंदविता में संलग्न हैं। वैश्विक संस्थाओं एवं संगठनों की संख्या में भी अत्यधिक वृद्धि हुई है। वैश्वीकरण के असर के फलस्वरूप राजनीति राज्य की सीमाओं के इतर भी संचालित हो रही है, अनेकानेक सहयोग आधारित संगठनों के माध्यम से। आज सभी देश एक जटिल अंतर्राष्ट्रीय अंतरनिर्भर शासन में संलग्न हैं जिसमें बहुराष्ट्रीय एजेंसियों, अंतर्राष्ट्रीय संघ एवं गैर राष्ट्रिय संगठन भी सम्मिलित होते हैं। अर्थात् समकालीन विश्व वेस्टफेलिया के राज्य आधारित व्यवस्था को एक हद तक चुनौती दे रहा है।
वैश्वीकरण के प्रभाव केवल वैश्विक गतिविधियों को ही नहीं अपितु उस सता को भी चुनौती दे रहे हैं जो राष्ट्र राज्यों के फैसलों में निहित होती है। मौजूदा दौर में नौतिगत निर्णय व राज्यों के फैसलों में केवल राज्य ही केन्द्रीय भूमिका में नहीं रहा अपितु राज्य के अलावा भी कई कर्ताओं की भूमिका स्थापित हुई है। 1990 के दशक से ये भूमिकाएँ अधिक पैमाने पर बढ़ने लगी और राज्य की संप्रभुता को इससे खतरा स्पष्ट रूप से पेश आने लगा। अतः यह कहा जा सकता है कि बदलते दौर में वेस्टफेलिया द्वारा स्थापित राज्य की संप्रभुता में बहुत बदलाव हुए हैं और इसे चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा है। साथ ही द्वितीय विश्वयुद्ध के उपरांत राज्य द्वारा अनुपालित स्व केन्द्रित व स्वहित का व्यवहार भी सीमित हुआ है क्योंकि राज्य को कई वैश्विक नियमों का पालन एवं वैश्वीकृत व्यवस्था का दबाव झेलना पड़ा है। शीत युदध के दौरान भी जहाँ एक तरफ शक्ति प्रदर्शन के उद्देश्य से संघों का निर्माण हुआ तो वहीं दूसरी तरफ संघर्षों को कम करने व सहयोग स्थापना भी विभिन्न संगठनों की स्थापना की गई। शीत युद्ध के अंत तक आते-आते अंतर्राष्ट्रीय संगठनों जैसे-WTO, IMF, WHO की भूमिका में इजाफा हुआ तो वहीं क्षेत्रीय संगठनों जैसे यूरोपीय संघ, आसियान, सार्क, नाटो आदि की उपयोगिता में भी वृद्धि हुई।
विचारकों एवं विभिन्न विशेषज्ञों का मत है कि वेस्टफेलियन व्यवस्था अपने दौर में बेहद प्रभावशाली एवं क्रांतिकारी ज़रूरत थी। इसने अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध, राजनीति एवं कूटनीति को उन्नत किया, एक ऐसा विचार व व्यवस्था जो 17वीं शताब्दी से पहले अस्तित्व में नहीं थी। और यह वेस्टफेलिया का मॉडल वर्तमान समय में भी बेहद प्रासंगिक बना हुआ है।
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